मैं अहिल्या नहीं बनूंगी
किसी इंद्र की वासनाओं पर
अपना तिरस्कार, नहीं सहूंगी
कल भी मैं शुद्ध, पुनीत, पवित्र थी
और मैं कल भी रहूंगी
कब तक किसी गौतम के श्राप से
यूंही पत्थर बनी रहूंगी
क्यों मैं अपने उद्धार के लिए
राम की प्रतिक्षा करूंगी
किसी के पद स्पर्श से
कैसे मैं खुद को शुद्ध कहूँगी
मैं अपनी निष्कलंकता के लिए
कब तक जग से लड़ूंगी
अब मैं अहिल्या नहीं बनूंगी
ऋषिता सिंह
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