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जून 2016 ~ Lav Tiwari ( लव तिवारी )

Lav Tiwari On Mahuaa Chanel

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गुरुवार, 30 जून 2016

भारत का लाचार एवं बेबस किसान

नब्ज काटी तो खून लाल ही निकला सोचा था सबकी तरह ये भी बदल गया होगा बदलने की सबसे जादा प्रवित्ति राजनैतिक दल के नेताओ की होती है , चाहे वो कोई दल हो, आइये बात करते है #बीजेपी की बदलाव भरी निति का आज कल सुनाने को मिल रहा है #केंद्र_सरकार के #कर्मचारियों के बेतन की बढ़ोतरी , जो 7 वा बेतन आयोग के लगाने केंद्र सर्कार के कर्मचारियों को होड़ लगी है की कब वेतन बड़ कर मिले , वही दूसरी ओर #किसान तेरी कौन सुनेगा, तपती धरती, अनचाहे मौसम के वो #खौफ़नाक मंजर जो महीनो...

मंगलवार, 28 जून 2016

भारत और महाभारत

*दुर्योधन और राहुल गांधी* -                            दोनों ही अयोग्य होने पर भी सिर्फ राजपरिवार में पैदा होने के कारन शासन पर अपना अधिकार समझते हैं। *भीष्म और आडवाणी* -                        कभी भी सत्तारूढ़ नही हो सके फिर भी सबसे ज्यादा सम्मान मिला। उसके बाद भी जीवन के अंतिम पड़ाव पे सबसे ज्यादा असहाय दिखते...

सोमवार, 27 जून 2016

राजनीति की आड़ में पार्टियों के समाज के प्रति ग़लत अभिधारणा

हैरत हुई गा़लिब #मस्जिद मे देखकर ऐसा भी क्या हुआ कि खुदा याद आ गया ग़ालिब साहब के शायरी में जो जिक्र है की कभी ख़ुशी में हम भगवान या खुदा को याद नहीं करते,  #दुःख, #विपत्ति ,#निराशा या कोई बड़ी उपलब्धि को पाने की बात में अक्सर ख़ुदा या भगवान का जिक्र किया जाता है , उसी तरह के हालात सभी #राजनैतिक दलो की है, उन्हें भी हम वोट के समय चुनाव के समय किसी #ख़ुदा या भगवान से कम नजर नही आते, और बाद की हाल तो आप सभी मित्रो को पता ही है , वैसे ख़ुदा या भगवन की...

बुधवार, 22 जून 2016

राजनीति के आधार पर बटता भारत देश

तुझे देखकर बस यही ख़याल करता हु "राहुल" के मेरे हर दर्द की वजह भी तू है, दवा भी तू। ऐसे कई अनगिनत राहुल और राजनितिक विशेषज्ञ अपनी अपनी रोटिया सेकने के फ़िराक में है और देश की फ़िक्र वो क्या करेगे जो खुद ही सत्ता के लालच का प्रयोग कर देश की सम्पति को लूटते है ,और बाद में देश को लड़ने झगड़ने पर मजबूर कर रहे है देश की राजनीती की उतनी विशेष जानकारी तो नहीं है लेकिन सोशल मीडिया पर बने कुछ अपने दोस्तों की मानसिकता और आचरण का पता लग गया है हर एक व्यक्ति राजनितिक...

तुम्हारी यादों के साथ बारिश का खुशनुमा मौसम

तुम्हारी स्मृति में बंद किताबो में एक सूखे फूल की वो टूटे पंखुड़ियों का समूह तुम्हारे जीवन में कुछ पल होने का याद दिलाता है, वो पल आज भी उसी तरह महसूस होते है और तुम्हारी नटखट और खूबसूरत अदाओ को याद दिलाते है , उन्ही यादो के खूबसूरत पल में एक पल ये भी था कि जिंदगी भले रूठ जाय, पर प्रियतम तुम न रुठोगी, मगर  आज बारिश की चंद बूदों की खुशनुमा अहसास तुमारी यादो के एक बार फिर से तजा कर दिया, ये बारिश भी क्या अजीब ढंग से जिंदगी के दोनों पहलुओ को बया...

शुक्रवार, 17 जून 2016

समाज के प्रति निःस्वार्थ भाव की सेवा

शारीरिक श्रम एवं मानसिक श्रम से हमने लोगो को अपने व्यक्तिगत विकास की परिभाषा लिखते हुए देखा है , बच्चों का वह बड़ा समूह जो पाठशाला का रुपरेखा को भी नहीं देखा हो और अगर देखा भी होगा तो किताबी ज्ञान के अलावा कुछ भी नहीं, यहाँ बच्चों को ज्ञान के साथ संस्कार एवं समाज में समाज के प्रति निःस्वार्थ भाव की सेवा का जो बीज आज के इस बिगड़ते समाज को प्रवीण तिवारी Praveen Tree ने दिया है उसे देखकर मन प्रफुल्लित हो जाता है, गर्मी के दिनों में राहगीरों को प्याऊ के...

बुधवार, 15 जून 2016

तेज धुप गर्म मौसम और रिक्शा वाला

इस 42 से 48 डिग्री #तापमान में सड़कें जल रहीं..गर्म हवा और लूह से हाल बेहाल है. वहीं कुछ लोग हैं जो बिना #धूप-छाँव की परवाह किये सड़क पर अपने काम में लगे हैं... धूप में जल रहे हैं...कन्धे पर फटा गमछा..और पैरों में टूटी चप्पल पहने धीरे से पूछ रहे.."कहाँ चलना है भइया.फिल्म सिटी 16 नॉएडा ."? आइये तीस रुपया ही दिजियेगा।" इसी बीच कोई आईफोन धारी आता है अपने ब्युटीफुल गरलफ्रेंड के साथ..और अकड़ के कहता है.."अरे..हम जनवरी में आये थे तब बीस रुपया दिए थे बे....कइसे...

शनिवार, 11 जून 2016

बिकाऊ मीडिया सलीम खान

सलीमखान(सलमान के पिता) द्वारा  पत्रकारोको/मिडियाको करारा थप्पड़.. आज कलम का कागज से "" मै दंगा करने वाला  हूँ,"" . मीडिया की सच्चाई को मै "" नंगा करने वाला हूँ "" . मीडिया जिसको लोकतंत्र का "" चौंथा खंभा होना था,"" खबरों की पावनता में "" . जिसको गंगा होना था "" आज वही दिखता है हमको "" वैश्या के किरदारों में,"" . बिकने को तैयार खड़ा है "" गली चौक बाजारों में"" . दाल में काला होता है "" तुम काली दाल दिखाते हो,"" . सुरा सुंदरी उपहारों की "" खूब...

शुक्रवार, 10 जून 2016

राजनितिक पार्टियो के आधार पर बिखंडित समाज

#राजनीती  एवं राजनीतिक #पार्टियो का जो भी मतलब हो , लेकिन मेरे शब्दों में ये #समाज में #बिखण्डन करने कुछ #असामाजिक लोगों का समूह है , इस बात की पुष्टि जैसे हम और आप सभी #फेसबुक पर अच्छे दोस्तों की तरह व्यवहार करते है एक दूसरे की पोस्ट लाइक करना एवं कमेंट करना, लेकिन राजनितिक मत के आधार पर हर एक व्यक्ति का मत अलग अलग है , #ज्ञान, #नैतिक #तर्क और #सामजिक आधार पर अगर मत होतो स्वाभाविक है उसे स्वीकारा जा सकता है , लेकिन मेरे द्वारा यह देखा गया...

गुरुवार, 9 जून 2016

तुम्हारी स्मृति - लव तिवारी

तुम्हारी स्मृति जगमगाते शहर में बारिश का अनचाहा मौसम , जब  तुम  भीगते हुए अपने गेसुओं  को लहराते तो खूबसूरती और सादगी की एक अनमोल सी झलक मेरे ह्रदय को स्पर्श कराती हुयी आखो को एक खुशनुमा अहसास दिलाती है लेकिन दुःख की बात यह है ये बारिश एक तरफ लहलहाते  हुए खेतो की वो मंजर जो कुछ ही दिनों बाद खलिहान का रूप देने को है , इस पर बारिश की बूदों का मतलब साफ है कि ये हमें बेबसी और उजड़े आलम के सिवाय हमारे सपनो की जो हमने पिछले कुछ ...

रविवार, 5 जून 2016

भारत में राजनिति की दुर्गम स्थिति

लम्बा सफर और सफ़र के साथी मोबाइल फ़ोन और कुछ किताबे , किताबो को लेकर एक विशेष रोचक बात जहाँ में है  किताबो में जो बात है वो कही और नहीं, पुरे सफ़र किताबो के सहारे  तो नहीं गुजारी जा सकती , फिर क्या किताब के साथ मोबाइल फ़ोन का जिक्र किया था हमने, अक्सर सफ़र को रोचक और यादगार बनाने जे लिए मोबाइल फ़ोन में पुराने फिल्मो का कुछ बेहतरीन कलेक्शन होते है , आज के सफ़र में एक फ़िल्म सूत्रधार को देखने और भारतीय राजनीती की मिलती जुलती मिशाल को दर्शाती इस फ़िल्म...

शनिवार, 4 जून 2016

आँखे फेर लेता है मुझको अब देख कर वो यूँ

आँखे फेर लेता है मुझको अब देख कर वो यूँ जैसे सदियों पहले उसने, दोस्ती मुझसे तोड़ी है.. दर्द अपनों ने दिया रोज़ आज किसी गेर ने दी है तो इतनी ताजुब क्यों हो ? ये बात कोनसी बड़ी है ?.. हज़ार दर्द हों सीने में, जी भर आया हो जीने में फिर भी हँस देना, सभी के बस का ये कमाल थोड़ी है... कभी स्याही हुई खत्म कभी हाथ में हुई पीड़न पर दर्द दिल का रितिका ने, लिखनी कब छोड़ी है.. ...

गुरुवार, 2 जून 2016

सुभाष चंद्र बोस नेताजी और हिटलर

एक बार नेताजी हिटलर को पहली बार मिलने जर्मनी गये, तो हिटलर के आदमियों ने उन्हें बाहर प्रतीक्षा हॉल में बैठा दिया। नेताजी उसी दौरान बैठे बैठे किताब पढ़ने लगे। थोड़ी देर बाद एक आदमी आया हिटलर का हम शक्ल बनकर और नेताजी के साथ बात कर के चला गया। नेता जी ने कोई भाव व्यक्त नहीं किया, थोड़ी देर के बाद दूसरा आदमी हिटलर के वेश में आकर नेताजी से हिटलर बन कर बात की।नेता जी ने उसको भी कोई भाव नहीं दिया.... इस तरह एक के बाद एक कई बार हिटलर के वेश धारण कर के उनके...

न जी भर के देखा न कुछ बात की बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की- निदा फ़ाज़ली

न जी भर के देखा न कुछ बात कीबड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की कई साल से कुछ ख़बर ही नहींकहाँ दिन गुज़ारा कहाँ रात की मैं चुप था तो चलती हवा रुक गईज़ुबाँ सब समझते हैं जज़्बात की सितारों को शायद ख़बर ही नहींमुसाफ़िर ने जाने कहाँ रात की @ निदा फ़ाज़ली ...

बुधवार, 1 जून 2016

बचपन की कुछ यादों के साथ -कोई लौटा दे वो मेरे बीते हुए दिन- लव तिवारी

आज वक्त के इस आइने में हमारे बीते हुए कल 90 दशक की तस्वीर चाहे कितनी ही पुरानी हो गई हो पर जब भी सामने आती है ढेर सारी यादे ताज़ा हो जाती हैं, और यदि यादे अगर बचपन की हो तो अलग ही मज़ा आता है, इन तस्वीरों में बड़े भाइयो के साथ की कुछ तस्वीर है अभी भी मुलाकात होती है हम सब में लेकिन उम्र के साथ मिलने और जीने के लहजे बदल गए फिर जिंदगी की भाग दौर में रोटी दाल की फ़िक्र भी तो है , कुछ बचपन की लाइन जैसे-“अक्कड़-बक्कड़  बम्बे बो अस्सी नब्बे पूरे सौ, सौ...