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lav Lav Tiwari ( लव तिवारी )

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शुक्रवार, 20 दिसंबर 2024

गांव-देहात की तक़दीर बदलने वाले वो अब नहीं दिखते रचना नीरज कुमार मिश्र बलिया

"क़दम से क़दम मिलाकर चलने वाले अब नहीं दिखते!,
सातों जनम में जन्म लेकर मिलने वाले अब नहीं दिखते!,

मौसम के रंग के साथ बदल गये वादों पे वादे करने वाले!,
इस दोस्ती के दामन का नज़्म गाने वाले अब नहीं दिखते!,

जबसे किस्मत ने किया है उनके सितारों को बहुत बुलंद!,
गर्दिशों में रिश्तों के मायने लिखने वाले अब नहीं दिखते!,

जिनकी झोपड़ियां अब तब्दील हो चुकीं हैं शीश महलों में,
शीशों के घरों पर पत्थर फेंकने वाले वो अब नहीं दिखते!,

शहर की आबो-हवा ने बदल दिया है उनकी रंगत इस क़दर,
गांव-देहात की तक़दीर बदलने वाले वो अब नहीं दिखते!,"

नीरज कुमार मिश्र
बलिया


गुरुवार, 19 दिसंबर 2024

बांड़ त बांड़ तीन हाथ क पगहो जाई - लेखक डॉ एम डी सिंह

'बांड़ त बांड़ तीन हाथ क पगहो जाई'

गनपत सहाय क लइका मनसुख लाल छोटहने प से बहुत पढ़ाकू रहल। जब सभ लइका स्कूले से लउट के खरिहाने भागैं कबड्डी, बरगत्ता ,गुल्ली-डंडा खेले तभ मनसुख मुंशी जी का घरे चलि जात रहल अलजबरा पढ़े। गांव भर में हल्ला रहल कि गनपत पेसकारै रहि गइलें मनसुखा त मुनसिफ बनि के रही।

आजु-काल्हु गांव भर में चार लोगन क चरचा कहूं न कहूं रोजिन्ना होखेला । ओहमें सबसे उप्पर हईं कहनी काकी। आजु ऊ कहवां कउन कहनी मरले बानी एही बखान में खलिहर मउगिन क पुरहर दीन नीमने ओरा जाला।ओइसे गांव घर क झगड़ा कहनी काकी के रहले उनका कहनी-कहावत मा अझुरा के ओरा जाला। अभ केहू के नीक लागै चाहे बाउर हल-भल निमनै होला, से उनकर मान सबही करेला।

दूसर हउवैं खरचू सिंह। गांव जवार में उनका रोब क बाजा बाजे ला। उनका रहले गांव में केहू बहरा से आके केहू प रोब जमाले ई त होखिए ना सकत । गांव के मान-सम्मान खातिन केहू से टकरा जइहैं। मजाल का उनके रहले गांव का ओर केहू आंखि उठा के ताक सके , एकदम सीना तान के बीच मा ठाढ़ हो जइहैं। बबुआन हउवैं, बड़ खेतिहर हवैं, पढ़ला-लिखला के बाद नोकरी में जाए क नाम लिहलें त बाबा अड़ंगा लगा देहलन 'हमार एक्कैगो पोता, उहो नोकरी करी ? इज्जत ,जायदाद, नोकर -चाकर का नइखे?' से ऊ गांवें में रहि गइलैं। बलाक , बीडिओ, तहसील, पुलुस, चउकी-थाना हर गांव क एगो दोसरका ठीहा-ठेकान होलन। उहवों खरचू सिंह क थोर-ढेर चली जाला। एही से परधानी जबले गांवें में आइल, बाबा-दादा के जमाना से उनहीं के घरे खूंटा गाड़ि के रहि गइल। मरदन क किछु दीन उनका बखान मा बीत जाला। जे जब्बर होला सबका पेंच में आपन टांग ढीले से कहां रोक पावे। से अइसन मनई के कोट-कचहरी का फेर में पड़ल कउनो मुसकिल ना। से खरचुओ के कपारे मुकदमन क मउर लदलै रहेला। बाकिर ऊ गनपत सहाय के रहला निफिकिर रहेलंऽ, आखिर कवना दीन खातिन बानैं ऊ? गांव क शान उनका रहले बनल रहेला।
तीसर हउवैं गनपत सहाय। जबले अदलती मा पेसकार का भईलैं गांव, कोट-कचहरी के आपन चट्टी-चउराहा बूझि लिहलस।गनपतो कब्बो गांव के नाम प पाछे ना भइलैं। जरि-मरि के जइसे बुझाइल गांव क आगि वकीलन के तापे ना दिहलन।

एह तरे घरे खातिन काकी, लड़े खातिन खरचू आ बहरा जरे खातिन गनपत। ई तीनो गांव क मान, शान आ जान कहालें त कउनो हइमस खाए वाली बात ना। गांव मस्त काहे ना रही ?

एही बीच दीन बीतले का संघहीं मनसुखो क नावं मूहें-मूहें उधियाए लागल। खेलन्तुआ, झगड़न्तुआ लइका बेचारा स मनसुख लाल नेखा बने बदे झपिलावल जाए लगलैं। मनसुख बारह में जीला टाप कइलस त वकालत में बिसविदालय।ओह दीन गांव भर क मूहमागल मुराद पुरा गइल जेहि दिन ऊ जजी क इन्तिहानो में अउवल आइल। गांव भर मिठाई बटलस, जइसे सभकर लइका जज हो गइल होखै। मनसुख के गेना क माला से बोझि, कान्हे पर लाद, मय गांव से ले के चट्टी चउराहा तक घुमलैं मनई। कनिया स खिड़की-झरोखा से झांकि-झांकि चिहात रहलीं त रहगीर जहाँ रहलन ओहीं ठाढ़ होके।

अतवार के दिन खरिहाने में गांव आ जर-जवार क मरद-मेहरारू, लइका-सयान मनसुख क बखान करे खातिन जुमलैं। बलॉक परमुख राम अवतार सिंह, बीडीओ रोशन अली आ पांच- छव गो परधान,कहनी काकी, गनपत सहाय अउर खरचू सिंह, विधायक सरीखन महतो का सदारत में तकथन से बनल ऊंच आसन प बिरजलैं त बाकी लोग नीचे आगा कुरसी-दरी प बइठलैं। मनसुख लाल ,गनपत सहाय अउर माई चंपा के सभ कोई माला पहिना के तीनों क खूब बखान कइलस।

अखीर में सरीखन महतो बोले खातिन उठलन। बोलत-बोलत बहक गइलैं। कहत का बानैं 'गांव-जवार क लइका जज हो गइल बा, अभ केहू के डेराए-ओराए क जरूरत ना बा,मडरो करि के आ जाई त जमानत चुटकी में मिलि जाई।'ऊहां जुटल सभकर मुह भक से रहि गइल। महतो के भी लागि गइल 'किछु उल्टा बोला गइल बा', जबले संभलतैं काकी फनफनाइल उठि त जाति बा 'हटु अवर्रा,तोहनिन के ना सुधरबा सभ।'

विधायक के हाथे से मइकिया छोरि के मय आलम का ओरि मूह करि के धिरवत का बाड़ी 'कुल्ही जाने गंठिया ला लोग इनहन के चक्कर में पड़ला त "बांड़ त बांड़ तीन हाथ क पगहो जाई।' तूंहू ए गनपत! अपना लवंडा के समुझा दीहा।'

सभ सन्न रहि गइल ,महतो हउहा के काकी क गोड़ थइलन, 'गलती हो गइल बूआ ,एतना आलम देखि के जीभि बिछिला गइल।'' काकी उनही के गांव क बिटिया रहलिन, विधायक क बूआ लागत रहलीं ,पता रहल बूआ केतना खरखर हीये।

काकी सभकरा प छा गइलिन।

( पूंछ कटे बैल को बांड़ कहा जाता है। यदि वह रस्सी सहित भी भागे तो जल्द पकड़ा या संभाला नहीं जा सकता)

(आपन लीखल आगा आवति पोथी 'कहनी काकी' से )

डॉ एम डी सिंह


होम्योपैथिक चिकित्सक, लेखक एवं समाजसेवी परम आदरणीय डॉ एम डी सिंह- लेखक लव तिवारी

गाजीपुर के ख्याति प्राप्त होम्योपैथिक चिकित्सक, लेखक एवं समाजसेवी परम आदरणीय डॉ एम डी सिंह की बेहतरीन पुस्तक समग्र योग सिद्धांत एवं होम्योपैथिक दृष्टिकोण व भोजपुरी काव्य संग्रह चिल्होर आशिर्वाद के रुप मे हम दोनों भाइयों को प्राप्त हुई।

महान चिकित्सक के रूप में डॉक्टर मुनि देवेंद्र सिंह उर्फ एम. डी सिंह पूर्वांचल क्षेत्र के बहुचर्चित नाम है। सुबह 7:00 से लेकर शाम 7:00 बजे तक वर्ष भर निरन्तर विभिन्न प्रकार की रोगियों के इलाज के साथ-साथ भारत देश के एकमात्र होम्योपैथी चिकित्सक हैं जो रोगी को दवा के नाम भी पर्ची पर अंकित करते हैं जिससे भविष्य में रोगी को अगर दवा की जरुरत दुबारा पड़े एवं वो परदेस में हो तो उसे दवा किसी भी जगह से मंगवाने में दिक्कत का सामना न करना पड़े।

पर्यावरणविद, उत्कृष्ट समाजसेवा के साथ-साथ लेखन के रूप में आदरणीय डॉक्टर साहब ने हिंदी की दो काव्य संग्रह मुट्ठी भर भूख, और समय की नाव पर, दो भोजपुरी काव्य संग्रह कमशः चिल्होर तथा कुक्कुर एवं दो गजल संग्रह खुन्नस एवं रोजानामचा है। तमाम उत्कृष्ट लेखनी एवं रचनाओं को अपने मे समाहित किये हुए डॉ साहब समय-समय पर रोग एवं उनकी होम्योपैथिक इलाज के संबंध में चिकित्सा लेख को लिखते है जो आम जनमानस के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होते हैं। करोना काल में गाजीपुर के हजारों लोगों के जीवन रक्षक परम आदरणीय डॉक्टर साहब पर भगवान काशी विश्वनाथ एवं माता पार्वती के विशेष आशीर्वाद की कृपादृष्टि बनी रहे। हर हर महादेव




बुधवार, 18 दिसंबर 2024

सर्दी के मौसम में उच्च रक्तचाप; कारण, निवारण तथा होम्योपैथिक चिकित्सा- डॉ एम डी सिंह ग़ाज़ीपुर


ठंड पड़ने लगी है। बरसात के बाद हमने अभी अपनी दिनचर्या में बहुत बदलाव नहीं किया है। मौसम की तरह हमें भी अपनी दिनचर्या में बदलाव लाने की जरूरत है।

आमतौर पर सर्दी के मौसम में बीमारियां कम हो जाती हैं। खासतौर से बैक्टीरिया और पैरासाइट्स के कारण उत्पन्न होने वाली बीमारिॅयां इस मौसम में कुछ कम हो जाती हैं। क्योंकि मच्छर , मक्खी, पिस्सू इत्यादि इन रोगों के वाहक इस मौसम में कम हो जाते हैं ।बारिश खत्म हो चुकी होती है और सर्दी के वजह से मनुष्य भी जल का प्रयोग कम करता है, जिससे अनावश्यक जलजमाव रुक जाता है। परिणाम स्वरूप जल जनित बीमारियां कम हो जाती हैं।

किंतु सर्दी के मौसम में अन्य बीमारियों की भरपाई रक्त संचार संबंधी शारीरिक गड़बड़ियां कर देती हैं।इनमें उच्च रक्तचाप प्रमुख है।

सर्दी के मौसम में उच्च रक्तचाप के कारण-
1- ठंड के कारण धमनियों का संकुचित हो जाना। जिसके कारण रक्त के प्रवाह को सामान्य बनाए रखने के लिए मस्तिष्क और हार्ट को अधिक कार्य करना पड़ता है।

2- रक्त में गाढ़ापन और कभी-कभी थक्के बनना। इससे भी शिराओं और धमनियों में रक्त संचार धीमा और बलपूर्वक होने लगता हैं जो ब्रेन, हार्ट, किडनी एवं फेफड़े चारों के लिए घातक है।

3- धमनियों में अवरोध के कारण मस्तिष्क में रक्त संचार की कमी। जिसके कारण मस्तिष्क सुस्त होने लगता है। जिसकी पूर्ति ब्रेन हार्ट रेट और रक्त संचार को बढ़ाकर करता है।

4- पसीने की कमी। पसीने से नमक काफी अधिक मात्रा में शरीर से बाहर जाता है। किंतु जाड़े के मौसम में पसीना नहीं निकलता जिसके कारण भी नमक का कंसंट्रेशन रक्त में बढ़ जाता है जो उच्च रक्तचाप का एक प्रमुख कारण है।

5- सर्दी के मौसम में दिन छोटे होने के कारण काम के घंटे कम हो जाते हैं जो व्यवसाय के लिए नुकसानदेह हैं। इसके कारण व्यक्ति में सोचने की प्रक्रिया बढ़ जाती है जो अवसाद का कारण बनती है, और मस्तिष्क की यही अति सक्रियता उच्च रक्तचाप का कारण।

6- व्यायाम की कमी। जाड़े के मौसम में ठंड और आलस्य के कारण मनुष्य लिहाफ़ से बाहर नहीं निकलना चाहता। वार्मअप, व्यायाम और योगासन जैसी सही और रक्त संचार को सक्रिय रखने वाली प्रक्रियाएं घट जाती हैं, जो रक्त के जमाव को प्रोत्साहित करती हैं ।फल स्वरूप उच्च रक्तचाप प्रभावी हो जाता है।

7- फास्ट फूड और तैलीय भोजन का प्रयोग बढ़ना। इससे लिवर फंक्शन प्रभावित होता है। रक्त वाहिकाओं में कोलेस्ट्रोल का डिपाजिशन होने लगता है जो सहज रक्तचाप को बढ़ावा देता है।

8- मुख्य शरीरसंचालक अंगों को रक्त की कमी हो जाना। शरीर के हर अंग को सही ढंग से कार्य करने के लिए एक निश्चित मात्रा में रक्त की आवश्यकता होती है। जिसके ना मिलने के कारण उनकी कार्य क्षमता घट जाती है। जैसे किडनी फंक्शन कमजोर होने से शरीर में प्रोटीन , क्रिएटिनिन और यूरिया की मात्रा बढ़ जाती है, जो ब्रेन टाक्सीमियां की प्रमुख कारण है। जिसके फलस्वरूप रक्तचाप का बढ़ना स्वाभाविक है।

शीतकालीन उच्च रक्तचाप के दुष्प्रभाव-

1- ब्रेन हेमरेज अथवा ब्रेन स्ट्रोक---
रक्तचाप के बढ़ जाने से मस्तिष्क की धमनियां फट सकती हैं। जाड़े के दिनों में मॉर्निंग वाक अथवा टॉयलेट में इसे अक्सर होते हुए पाया जाता है।

2- हार्ट अटैक अथवा हार्ट ब्लॉक--
रक्त के थक्के जम जाने, कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ जाने, अथवा हार्ट को जमे हुए रक्त को संचालित करने के लिए ज्यादा काम करना पड़ता है। जिसके कारण उसके मस्कुलेचर को कोरोनरी आर्टरी प्रचुर मात्रा में रक्त प्रदान नहीं कर पाती। यही एंजाइना, हार्ट ब्लॉक एवं हार्ट अटैक का कारण बनता है।

3- हाइपर एसिडिटी--
मस्तिष्क की अति सक्रियता के कारण आमाशय में एच सी एल और पेप्सीन स्राव बढ़ जाता है जो हाइपरएसिडिटी का कारण बनता है और पाचन को प्रभावित करता है।

4-- लिवर फंक्शन का दुष्प्रभावित होना--
जाड़े के दिनों में फैट का ज्यादा सेवन करने के कारण पोर्टल आरट्री एंगार्ज्ड हो जाती है जो हाई ब्लडप्रेशर के साथ-साथ पाइल्स का भी कारण बनती है।

5- सर दर्द ,अवसाद ,बेचैनी और बात बात पर गुस्सा करना।

बचाव--
1- ठंडक से बचा जाय।
2- सुबह अच्छी तरह वार्म अप करके ही बाहर टहलने निकला जाय।
3- भरसक रोज सुबह घर में ही व्यायाम किया जाय।
4- सुबह पूरे शरीर में तेल की मालिश कर यदि संभव हो तो कुछ समय तक धूप का सेवन किया जाय।
5- स्नान से पहले तेल मालिश अवश्य करें।
6- हंसने और खिलखिलाने का औसर तलाशा जाय। जिससे औसाद से बचा जा सकेगा।
7- हरी सब्जियों सलाद फल और दूध का सेवन किया जाय।
8- शहद का सेवन करें। भोजन में नमक की मात्रा कम करें।
9- गर्म वस्त्रों अथवा अन्य साधनों से शरीर के तापमान को नियंत्रित किया जाय।
10-भोजन में विटामिन डी ,सी और बी12 की मात्रा कुछ बढ़ाई जाय।
11- फास्ट फूड और अत्यधिक तैलीय भोजन से बचें।

होम्योपैथिक चिकित्सा-

अपने होम्योपैथिक चिकित्सक की राय से एकोनाइट, जेल्सीमियम, आरम मेटालिकम, बेराइटा म्यूर,आर्सेनिक एल्ब, लैकेसिस , थूजा, क्रेटेगस आक्स, आर्निका माण्ट , जिंजिबर, वेरेट्रम विरिडी, राउल्फिया सर्पेन्टाइना , लाइकोपस भी, ऐड्रीनलिन, एवं इग्नेशिया इत्यादि मे से कीई चुनी हुई औषधि ।

डॉ एम डी सिंह
प्रबंध निदेशक एम डी होमियो लैब प्राइवेट लिमिटेड महाराजगंज गाजीपुर उत्तर प्रदेश
wwwmdhomoeo.com
पिन 233001




शुक्रवार, 29 नवंबर 2024

मैं आत्मा हूँ लेखक श्री माधव कृष्ण ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश

मैं आत्मा हूँ

बात २०१५ की है. मैंने सिंगापोर और सिटीबैंक की नौकरी छोड़ दी थी और गाजीपुर आ चुका था. मेरी पुत्री आद्या अभी २ साल की थी इसलिए उसे कोई फर्क नहीं पड़ा. लेकिन मेरा पुत्र अव्यय, जो कि ११ वर्ष का हो चुका था, इस परिवर्तन को स्वीकार नहीं कर सका.

जब उसकी कक्षा में अध्यापक उससे उसकी जाति पूछते थे तो वह चिढ़ जाता था. नाम के आगे कोई सरनेम नहीं होने से कभी कभी उसके मित्र मजाक उड़ाते थे और पूछते थे कि, "अव्यय कृष्ण! यह कैसा नाम है? जाति छिपाने का अर्थ है कि तुम चमार हो."

वह कभी रोकर पूछता था कि जाति क्या है और चमार कौन होते हैं, तो मैं उसकी पीड़ा समझ पाता था. उसे यह समझने में अनेक वर्ष लग गए कि जाति के बिना भी जिया जा सकता है; और यह कि हम रैदास की भी वंशज हैं, श्रीकृष्ण के भी, कबीर के भी, सुभाषचंद्र बोस के भी और भगवान राम के भी।

अपनी नयी यात्रा में मैंने अव्यय को जबरदस्ती सम्मिलित कर लिया था, और उसका दंश वह झेल रहा था. उसने सिंगापोर का वह संसार देखा था जहां जातियां नहीं पूछी जाती थीं, योग्यता सब कुछ थी और राष्ट्रीयता भारतीय थी. आद्या छोटी थी और शिखा बहुत परिपक्व, इसलिए ये दोनों मेरी यात्रा में सहजता से सहयात्री बन गए, लेकिन अव्यय!

एक दिन वह सुबह सुबह विद्यालय जाने के लिए तैयार हो रहा था. उसे किसी बात पर गुस्सा आया था और वह अपनी माँ से चिल्ला चिल्ला कर रोष व्यक्त कर रहा था. माँ बाप को बच्चों के चिल्लाने और झगड़ने पर परेशान नहीं होना चाहिए. जब तक वे अपनी भावना माँ या पिता किसी से भी साझा कर रहे हैं, तब तक सब कुछ ठीक है.

यदि माँ पिता बच्चों को उनके सहज स्वभाव और सहज अभिव्यक्ति के साथ स्वीकार नहीं करते, बार-बार रोकते टोकते हैं तो धीरे धीरे बच्चे उनसे या तो दूर हो जाते हैं, या कृत्रिम. दोनों ही खतरनाक है. दूर होने का अर्थ है - वे उन लोगों के पास जायेंगे जो उनकी सुनेंगे और जब बाहरी लोग हमारे बच्चों के जीवन में घुस आते हैं तो वे किसी भी तरह से हमारे बच्चों के जीवन को गलत दिशा में मोड़ सकते हैं.

कृत्रिम होने का अर्थ है असहज होना, असहजता बच्चों में एक ग्रंथि बनाती चली जाएगी जिसमें वे खुद को समग्रता से स्वीकार नहीं कर पायेंगे. खुद को गलतियों, असफलताओं और विशेषताओं के साथ स्वीकार न कर पाने के कारण ही, आज अनेक बच्चे और किशोर आत्महत्या कर रहे हैं. मैं इस विषय में सौभाग्यशाली हूँ कि मेरी पत्नी शिखा के पास अव्यय की बातें सुनने और गुस्सा झेलने का असीम धैर्य और पर्याप्त समय था.

जब अव्यय विद्यालय जाने के लिए तैयार हो रहा था तभी एक आध्यात्मिक संस्था के वयोवृद्ध स्वयंसेवक अपनी मासिक पत्रिका देने के लिए घर आये. मैं उनसे बैठकर बात कर रहा था. उन्हें अव्यय के चिल्लाने की आवाज सुनायी दी. उन्होंने पूछा, “कौन बच्चा इतने गुस्से में है? क्या यही तरीका है अपनी माँ से बात करने का?”

“मेरा पुत्र है, अव्यय.” मैंने झेंपकर कहा.

“बुलाइए उसको. मैं समझाता हूँ. बच्चों को बचपन से आध्यात्मिक शिक्षा देनी चाहिए. हम सभी अपने स्वरूप से भटक चुके हैं. इसीलिये हम जन्म-मृत्यु के भंवर में पड़कर भवसागर में डूब रहे हैं. आप उसको लेकर मेरी संस्था में आया कीजिये.”

उनका वचन तो अच्छा था लेकिन मैं डर रहा था. मुझे लगा कि यदि अव्यय को उन्होंने यह शाश्वत ज्ञान इस समय सुनाया तो समकालीन परिस्थिति में उसे संभालना मुश्किल होगा, और शायद उसका परशुराम स्वरुप सामने न आ जाय. यह भी संभव था कि उसका कामरेड समग्र क्रान्ति कर बैठे.

बहरहाल, अब एक वरिष्ठ चाचाजी की आज्ञा थी तो बेटे को अकेले में ले जाकर समझाया, “अव्यय! प्लीज चलो. चाचा जी बुला रहे हैं. कुछ समझाएं तो चुपचाप सुन लेना.” मैं मिन्नतें कर रहा था.

“नहीं, मुझे नहीं जाना, क्यों आ जाते हैं ये लोग सुबह-सुबह? मुझे देर हो रही है. गाजीपुर में सब केवल समझाने में लगे हैं. कोई कुछ बदलता तो है नहीं.” मुझे उसकी बात सही तो लग रही थी. बिना आमन्त्रण के जाना भी नहीं चाहिए और सलाह भी नहीं देनी चाहिए. लेकिन मामला अभी फंसा हुआ था. बहरहाल, बहुत समझाने पर पापा की इज्जत रखने के लिए अव्यय विद्यालय का बस्ता टाँगे हुए सामने आया.

“प्रणाम बाबा.”, अब वह गाजीपुर के माहौल में अभिवादन करना सीख चुका था.

“खुश रहो बेटा! मुझे तुमसे कुछ बातें करनी हैं जो तुम्हारे जीवन में आगे काम आएँगी. बोलो, क्या तुम जानते हो कि तुम कौन हो?”, चाचाजी ने एक लम्बे एकल एकतरफा व्याख्यान का अवसर भांपते हुए आराम से पूछा.

“जी मैं जानता हूँ. मैं यह शरीर नहीं, आत्मा हूँ. मैं आत्मा हूँ.”, अव्यय के अंदर बैठे आदि शंकर ने बहुत सहजता से कहा.

मेरी हंसी छूट गयी. मैं ठहाके मारकर हंसने लगा और चाचा जी हाथ जोड़कर खड़े हो गए. उन्होंने कहा, “मैं किसको समझाने चला था? इस उम्र में यह महाज्ञान! धन्य हैं आप.” और वह चले गए.

इस घटना को आज 9 वर्ष बीत चुके हैं. अब भी मैं जब इसे सोचता हूँ तो हँसे बिना नहीं रह पाता. मैं जब उसे छोड़ने के लिए विद्यालय ले जा रहा था तब मैंने पूछा, “अव्यय! मैं खुद सकते में हूँ कि तुमने इतनी बड़ी बात इतनी आसानी से कैसे कह दी?”

उसने कहा, “पापा! मैं तुम्हारे साथ रामकृष्ण मिशन में बैठता था, तो ये सब आम बात थी. मुझे लगा कि आज बाबा बहुत चाटने वाले हैं तो उनको चुप करवाने के लिए मैंने सीधा अंतिम सत्य बता दिया.”

अब अव्यय को जब इस घटना की याद दिलाता हूँ तो हम दोनों साथ में खूब हँसते हैं. हंसना निर्विकार क्रिया है, आत्मा निर्विकार है और हम आत्मा हैं!

-माधव कृष्ण, गाजीपुर, २९ नवम्बर २०२४
The Presidium International School Ashtabhuji Colony Badi Bagh Lanka Ghazipur



बुधवार, 27 नवंबर 2024

धर्मान्तरण एक बलात्कार है जहाँ हम किसी की निर्बलता और विवशता का लाभ उठाकर छल से या बल से या धन से उसका शोषण करते हैं- माधव कृष्णा

रोहिणी मसीह

-Madhav Krishna

हम जीवन का एक हिस्सा देख पाते हैं, और दूसरा हिस्सा प्रायः अंधकार से आच्छादित रहता है। हम चाहें तो उसे देख सकते हैं लेकिन दृष्टि का विस्तार प्रायः हमारी प्राथमिकता में नहीं रहता।

गांव में अपनी दुनियां में मगन लोगों का एक समुदाय होता है। बस्ती में बसने वाले लोग प्रायः एक दूसरे के जीवन में झांकते हुए ही जीवन जी लेते हैं। ऐसा ही मेरा एक गांव था। तहसील के मुख्य चौक से जोड़ता हुआ एक संकरा सा वीरभानु सिंह मार्ग था। कहते हैं वीरभानु सिंह की चौक के पास काफी जमीन थी, और गांव से तहसील को जोड़ने के लिए योजना में उनकी आधी बिस्वा जमीन आती थी। उन्होंने अपनी आधी बिस्वा जमीन अपना नाम जीवित रखने के लिए सरकार को दान दे दी। 

मार्ग पर आरम्भ में एक संकरी गली है जिसके आरम्भ में बिन्दटोली है- भारतीय जाति-व्यवस्था का एक घृणित और पुख्ता साक्ष्य। बिन्द लोग समाज के निम्नवर्ग से आते हैं, इनकी आर्थिक दशा भी इनके सामाजिक स्थिति की तरह है।
अधिकांश लोग ठेला, रिक्शा चलाकर या दिहाड़ी श्रमिकों के रूप में रोज की रोटी इकट्ठी करते हैं। काम न मिलने पर उन्हें लुंगी पहने हुए या फटे-पुराने कपड़े पहनकर बिन्दटोली के एक कोने में जुआ खेलते हुए देखा जा सकता है। आठ-दस लोग मण्डलाकार बैठते हैं, बीच में ताश के पत्ते और १ रू. से लेकर १०० रू. तक की बाजी। जिनके पास पैसे नहीं, वो नवयुवक खड़े होकर आनन्द लेते हैं। ८ से १५ साल तक के बच्चे इन्हीं बड़ों से सीखते हैं और कंचे खेलते समय ५० पैसे से १ रू. तक की बाजी लगाते हैं। इससे कम आयु के बच्चे गलियों में यूं ही बैठे रहते हैं। मेरे पिताजी ने इन बच्चों को सड़क पर बैठकर धूलभरी रोटी उठाकर खाते हुए देखा तो कहा, ‘‘जेतना जतन, ओतने पतन। हमहन अपने बचवन के एतना बरका के रखी ला कि जमीन पर कुछो सामान गिर जाए त खाए ना देही ला जा। तब्बो हमहन क लइका ना मोटानं, अउर बिन्दवन क लइका देखा केतना मोट-झोंट होनं।’’

बहरहाल बिन्द समाज के लोग अब राजनैतिक रूप से सक्रिय हो चुके हैं और उनके कुछ स्थानीय नेताओं को राजनैतिक दलों ने अच्छे पद दिये हैं। जैसे  बाबूलाल बलवन्त एमएलसी रह चुके हैं तथा संगीता बलवन्त जी तो रेलवे बोर्ड में सलाहकार, विधायक रह चुकी हैं और अब राज्य सभा की सांसद भी हैं।

 प्रजातंत्र में सब के मत का मूल्य एक होता है। इस पर अनेक सम्भ्रान्त और शिक्षित जनों ने रोष जताया है, पर एक अशिक्षित, निर्बल, अप्रतिष्ठित व्यक्ति के पास यदि मत की शक्ति भी न हो, तो उस पर ध्यान कौन देगा? आज जैसे लोग जातियों की सभाएं बनाकर एकजुट होते हैं वैसे ही संभवतः पहले गांव में लोग अपनी अपनी जातियों के साथ पुरवा बनाकर रहने में सुरक्षित अनुभव करते थे।

बिन्द का पुरवा समाप्त होते ही एक निम्न मध्यमवर्गीय तथाकथित ऊँची जातियों के लोगों का पुरवा है। इस पुरवे में आए दिन एक नयी कहानी सुनने को मिलती थी। झूठे सम्मान और प्रतिष्ठा की कथाएं। उदाहरणतः - यदि किसी के घर अतिथि आ जाएं, तो चाय पिलाना एक न्यूनतम औपचारिक स्वागत का प्रतीक होता था लेकिन एक एक पैसे का हिसाब रखने वाला यह निम्न मध्यमवर्गीय परिवार अतिथि से बैठकर बड़ी-बड़ी बातें तो करता था, पर जब अतिथि आधे-एक घण्टे बाद जाने को तैयार होता था तो दरवाजे पर अधेड़ ग्रहिणी खीसें निपोरकर कृत्रिमता के साथ कहती थी- बैठीं, चाय बनाई।

अतिथि देव सब समझकर ‘ना कहते’ हुए निकल जाते थे। स्वागत की वाचिक औपचारिकता भी पूरी हो जाती थी, झूठी प्रतिष्ठा अपनी दृष्टि में बनी रहती थी और चायपत्ती-चीनी-दूध इत्यादि खर्च नहीं करने पड़ते थे। बिना प्रयास किए और बिना समय पैसे लगाएं, महान बनने का प्रयास ही व्यवहार और विचार के भारतीय अंतराल का कारण है।

 व्यावहारिक कारण सम्भवतः यही है कि ये परिवार सेवानिवृत्त लोगों के परिवार हैं जिनमें अब किसी को नौकरी तो नहीं मिली लेकिन प्रतिष्ठा की चाह अपनी ही है, अतः अब वास्तव में उन लोगों की चाय पिलाने की हैसियत भी नहीं रही। 

बिन्द जाति के लोगों को ‘पालगी चाचा, पालगी चाची’ कहने पर कुछ लोग नाक भौं सिकोड़ लेते थे क्योंकि वे ऊँचे व्यवहार नहीं, ऊँची जातियों में जन्म लेने का लबादा ओढ़ कर ही जिन्दा रहते थे।
चौबे जी के घर के सामने कुछ खाली जमीन थी जहां हम सभी बच्चे खेला करते थे। एकाएक एक दिन उस जगह कुछ मजदूर और एक मिस्त्री आ गए। देखते-देखते एक महीने में एक छोटी सी कोठरी बन कर तैयार हो गई। इसमें हमारे गांव के नए सदस्य आ गए। एक सम्भ्रान्त दिखने वाली ३५-४० साल की महिला, उनके एक लड़का और एक लड़की। बाद में पता चला कि इनका नाम रोहिणी है और इनके पति की मृत्यु हो चुकी है। वह एक वरिष्ठ सम्मानित नागरिक की पुत्री थीं लेकिन भारतीय समाज में पति की मृत्यु के बाद बहू-बेटियाँ परिवार पर भार बन जाती हैं। न तो उन्हें माँ-बाप-भाई-भाभियां रखना चाहते हैं न ही उनके सास-ससुर।

रोहिणी चाची को गांव वाले भी अच्छी निगाह से नहीं देखते थे। स्त्री-विमर्श के इस दौर में भी समाज एक ऐसी स्त्री को सम्माननीय नहीं मानना चाहता जो किसी पुरूष के संरक्षण में न हो। अच्छी बात यह रही कि रोहिणी चाची ने हमें अपनी भूमि का प्रयोग करने से नहीं रोका और उनके दोनों छोटे बच्चे राजू और श्वेता भी हमारे साथ खेलने लगे। राजू प्रायः पूछता कि पापा लोग कैसे होते हैं। अभावों में भी चाची जी एक गरिमामयी जीवन जीने का प्रयास कर रही थीं। एक मामूली शौचालय बनवाने में उस समय १००००-१५००० रूपए लगते थे। 

रोहिणी चाची और उनके परिवार को गांव वालों से इस बात का ताना भी मिलता था। यद्यपि वह शिक्षित महिला थीं और गांव की कोई स्त्री भी उनकी भांति शिष्ट और संयत भाषा का प्रयोग नहीं करती थी, फिर भी उनके और अन्य महिलाओं के बीच एक ऊँची दीवार थी- अभावों की और एक पुरूष के संरक्षण की।

रोहिणी चाची सबको खिचड़ी खिलाती थीं अपने बच्चों के साथ। जब यह क्रम दो-तीन सप्ताह चला तो, मुहल्ले की महिलाओं ने मेरी माताजी का ध्यान उधर खींचा, और माताजी के कर्कश और कटु शब्दों ने यह क्रम बन्द करा दिया। रोहिणी चाची परिवार को एक सम्मानजनक जीवन दिलाने के लिए संघर्ष करती रहीं, पहले  आंगनबाड़ी में काम कीं, फिर होमगार्ड आफिस में...। लेकिन कोई भी नौकरी उनके परिवार को अच्छा जीवन देने में समर्थ नहीं हो सकी। दिन बीतते रहे। एक दिन ग्रामवासियों को उन्होंने प्रार्थना सभा में आने का निमन्त्रण दिया। हम सबके लिए यह एक नई बात थी क्योंकि धार्मिक सभाओं के नाम पर सत्यनारायण भगवान की कथा से अधिक कुछ नहीं होता था। इन कथाओं में भी कुछ विचित्र कहानियों का दुहराव, पण्डित जी की टूटी फूटी घिसी पिटी संस्कृत, और मुहल्ले की औरतों का कम से कम पैसे वाला प्रसाद लाकर कथा के दौरान अनावश्यक गपशप इनसे अधिक कुछ नहीं होता था।

चाची जी के यहां प्रार्थना सभा आरंभ हुई, सभी महिलाएं जानी पहचानी थीं, और २-३ महिलाएं नई थीं। यहाँ एक नयापन था। न कोई हवन कुण्ड, न कोई चिर-परिचित देवता, वरन् दाढ़ी-मूँछों वाला एक शान्त प्रेमस्वरूप व्यक्ति का चित्र, बिल्कुल एक सन्त की भाँति। चाची जी ने इसे यीशू मसीह कह कर परिचय कराया, और बताया कि, “यह सभी का पापों से उद्धार करते हैं। यीशू जब शूली पर चढ़े तो इनके शरीर से गिरने वाली रक्त की एक-एक बूंद ने सभी मनुष्यों के पापों का दण्ड स्वयं चुकाया, कहाँ ऐसा करूणासागर मिलेगा।“ यीशू मसीह के भजन गाए जाने लगे, और एक महिला ने ओझाओं वाले अन्दाज में सिर हिलाना शुरू किया क्योंकि उसके अन्दर यीशू की पवित्र आत्मा आ गई थी।


आज तक बिना किसी पहचान और संरक्षण वाली रोहिणी चाची अचानक अद्वितीय पहचान वाली बन गईं। मेरी अम्मा के लिए वह ‘यशोमती’ भगवान की भक्त हो गईं। अन्य गांव वालों के लिए भी वह एक मनोरंजक विषय बन गईं। हालांकि आने वाले सप्ताहों में गांव वालों ने उनकी साप्ताहिक प्रार्थना सभा में आना बन्द कर दिया लेकिन किसी हिन्दू को उनकी इस सभा से गुरेज नहीं था और यह भारत में पनपे विविध धर्मों सम्प्रदायों, दर्शनों के प्रति सनातनी हिन्दू की समावेशी विचारधारा की ही एक झलक थी। या फिर महापण्डित राहुल सांकृत्यायन की भाषा में- जिस धर्म में तैंतीस करोड़ देवी-देवता, हजारों धर्मग्रन्थ और लाखों धर्मगुरू हुए हों, उसमें एक और देवता व ग्रन्थ जोड़ने से धर्म का अस्तित्व यूं ही बना रहेगा।


रोहिणी चाची के घर सभा चलती रही, और अब संख्या बढ़ने लगी। मेरी उम्र के बच्चों को यही मजा आता था कि कुछ नया हो रहा है, कुछ मैले-कुचैले कपड़े-साड़ियां पहने सामान्यतया काले रंग के लोग इन सभाओं में आते थे। ढोल-मंजीरे पर झुमाने वाले भजन गाये जाते थे और फिर ओझाई होती थी, हम सब लोग साश्चर्य देखते थे कि यीशू का नाम लेने वाला रोग मुक्त हो जाता था। जाते समय इन लोगों के हाथों में चीनी, मिट्टी का तेल इत्यादि तो मैंने स्वयं देखा था लेकिन कुछ लोगों ने कहा कि पैसे भी मिलते हैं। समाचार-पत्रों में धर्मान्तरण पर संघ परिवार के वक्तव्य हम सभी लोग देखते तो थे लेकिन उसके सम्भव प्रयास का प्रथम दृष्टांत यहां मिला।


जिस धर्म, समाज और परिवार से एक लाचार चार बच्चों की मां को इतना भी न मिला कि वह ससम्मान अपने ससुराल में या मायके में रह सके, आज ‘यशोमती’ भगवान की शरण में उसे इतना मिल रहा था कि वह जरूरतमंदों में बांट भी रही थी, और उनका स्वयं भौतिक उत्थान हो रहा था। हमारे गांव की औरतों के लिए यीशु मसीह यशोमती बन चुके थे. धर्म की आवश्यकता कब पड़ती है? भूख वास्तविक है, बच्चों को अपनी आंख के सामने अभावों में सिमटे रहना देखना वास्तविक है। अबला स्त्री समझकर प्रभुत्व जमाने का प्रयास करने वाले वास्तविक हैं। अनुभूति और आदर्शों का उच्चतम दर्शन वास्तविकता के धरातल पर न जाने क्यों खोखला और अव्यावहारिक प्रतीत होने लगता है?
अब रोहिणी चाची धर्मप्रचार के लिए चर्च और मिशनरी के लोगों के साथ गांव-गांव जाने लगीं। उनका आकर्षक व्यक्तित्व था- लम्बी गोरी, सुन्दर; भारतीय मानक के अनुसार उनका व्यक्तित्व प्रचारिका के लिए सर्वोत्तम था। अब वे अलग-अलग प्रदेशों में भी जाने लगी थीं। हमारे सामने वह छोटा सा एक कमरा एक अच्छे भवन में तब्दील हो गया। रोहिणी चाची के घर अब सम्मानजनक भौतिक सम्पदा दृष्टिगोचर होने लगी। इसी बीच गांव में एक पण्डित जी बीमार पड़े, बचने की कोई आशा नहीं थी। रोहिणी चाची बिना बुलाए उनके घर पहुंची, रोग के लक्षण पूछीं और कुछ ‘यशोमती’ के मन्त्र बड़बड़ाते हुए ‘टेबलेट्स’ की एक पत्ती निकालीं। और बोलीं कि प्रभु यीशू में विश्वास रखें, आप ठीक हो जाएंगे। प्रभु यीशू ने ऐसे बहुत सारे ‘केसेस सॉल्व’ किये हैं। शायद भोजपुरी लोगों में हिंगलिश अधिक प्रभाव डालती है.


पण्डित जी अपने जीवन भर की आस्था और कर्मकाण्डों को किनारे रखकर, कृतज्ञता भाव से प्रभु यीशू मसीह का नाम लेते हुए टैबलेट गटक गए। अब इसे धर्म-भ्रष्ट होना कहेंगें या नहीं, पर उन्हें जाना था और वे चले गए इस संसार से। रोहिणी चाची ने इसे प्रभु की इच्छा बताया और कहा कि आप लोगों को प्रभु में विश्वास करने में देर हो गई। एक बार बनारस में होने वाली एक बहुत विशाल प्रार्थना सभा के लिए वे मेरे एक वृद्ध रिश्तेदार के पास पहुंचीं जिन्हें लकवा मार दिया था। जैसा मैंने कहा- मृत्यु और लकवा जैसे रोग वास्तविक हैं जो आजीवन पालन की गई आस्था, अनुभूति और कर्मकाण्डों पर भारी पड़ते हैं।
इस बार रोग भारी पड़ा। मेरे वृद्ध रिश्तेदार जब उनके विश्वास दिलाने पर सभा में गए, तो एक प्रसिद्ध धर्मप्रचारक पादरी ने उन्हें प्रभु यीशू का नाम लेकर एक घण्टे का जप करने को कहा, और कहा कि आंखें खोलने पर आप चल पाओगे। उन्होंने ऐसा करने का प्रयास किया क्योंकि उस समय मंच पर ‘मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम्’ वाले चमत्कार हो रहे थे। लेकिन एक घण्टे बाद जब वह अपनी व्हीलचेयर से उठना चाहते थे तो गिर पड़े। उनका वक्तव्य था- ‘‘यार, धर्म से भी गिरे और व्हीलचेयर से भी।’’


मेरा एडमिशन नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी राउरकेला ओड़िसा में हो गया, और कभी-कभार ही आने पर छुट्टियों में उनसे मुलाकात हो पाती थी। आज भी उनसे मिलने पर जीसस और बाइबिल पर चर्चाएं होती हैं और जीसस उनके स्वाभाविक जीवन और संस्कार का हिस्सा बन चुके हैं। वे ‘प्रभु आशीष दें’ कहकर आशीर्वाद देती हैं और जीवन से सन्तुष्ट लगती हैं। पता चला कि उनकी एक बेटी मिशनरी कॉलेज से पढ़कर एक सरकारी विद्यालय में शिक्षिका बन गई है और सबसे छोटा बेटा मिशनरी कॉलेज से पॉलिटेक्निक करके एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में सफल इंजीनियर हो गया है। सबकी शादी हो गई है, और चाची अपने मिशन में लगी हैं. उन्होंने मुझे भी बहुत प्यार से ईसाई बनने के लिए प्रेरित किया लेकिन मैंने उनसे वह एक सिद्धांत पूछा जो हिन्दू धर्म में नहीं है, तो उन्होंने हंसकर ‘प्रभु आशीष दें’ कह दिया.


ओड़िसा में हमारा कॉलेज आदिवासी क्षेत्र में था, और उसी समय एक आस्ट्रेलियन मिशनरी को सपरिवार हिन्दू धर्मान्धों ने जला दिया था। तब छात्र रात में छात्रावास के अंदर धर्मान्तरण-मदर टेरेसा के वास्तविक इंटेन्ट या नीयत पर चर्चाएं करते थे। लेकिन उन चर्चाओं के मूल से वास्तविकता गायब रहती थी, और वह वास्तविकता थी भूख, गरीबी, असुरक्षा। मुझे समझ नहीं आता था कि छात्रावास के मेस में काम करने वाले दुबले-पतले आदिवासी नौकरों को हम क्यों नहीं देख पाते जो हमारी थालियों में से बचा खाना एक पॉलिथिन में डालकर, उसे अपने घर ले जाते थे। इसका एक ताजा उदाहरण दिखा जब अष्टभुजी कॉलोनी बड़ीबाग गाजीपुर में मंदिर के पास पागल कुत्ते के काटने से रैबीज ग्रसित गाय अचेत मरणासन्न पड़ी थी और अखलाक को मार देने वाला गोरक्षादल गायब था। लेकिन मंदिर में भगवान कृष्ण के भजन गूंज रहे थे।


धर्मान्तरण के सिद्धांत से मैं कभी सहमत नहीं हो सका. इसी एक सिद्धांत पर बाबा साहेब अम्बेडकर मुझे गांधी से बहुत पीछे दिखाई देते हैं. हम जिस धर्म में, समाज में, देश में पैदा हुए, उससे पलायन करके कहीं और जाना ठीक नहीं. मैं बिना धर्म बदले ही मोहम्मद साहब, मूसा, ईसा, नानक, जरथुस्त्र, कनफूसीयस इत्यादि के सिद्धांतों को पढ़ता हूँ और अमल करता हूँ. क्योंकि मूलतः सभी एक हैं. धर्मान्तरण एक बलात्कार है जहाँ हम किसी की निर्बलता और विवशता का लाभ उठाकर छल से या बल से या धन से उसका शोषण करते हैं, उसे उसकी संस्कृति और समाज से दूर करते हैं. खुद से पूछना चाहिए यह भी, और वह भी कि ऐसे शोषितों के लिए हम, हमारी सरकार क्या कर रही है?


नाम: डॉ माधव कृष्ण
सम्पर्क: 7007115974, 9628130664



सोमवार, 18 नवंबर 2024

नही गम बस खुशी देते हो मेरी जिंदगी को एक हँसी देते हो रचना लव तिवारी ग़ाज़ीपुर

नही गम बस खुशी देते हो
मेरी जिंदगी को एक हँसी देते हो

तुम्हे देख कर मिलता है एक सुकून दिल को
मेरे धीमी धड़कनों को एक गति देते हो

हमें उम्मीद है वफ़ा की उम्रभर तुझसे
मेरे थके आँखो को रोशनी देते हो

चैन मिलता हौ तुम्हे याद करके सोने से
मेरे ख़्वाब मेंरे नींद को तुम मंजिल देते हो।।
🙏🙏🙏



शुक्रवार, 1 नवंबर 2024

दीप जले- डाॅ एम डी सिंह

 दीप जले

रजनी के गांव में प्रकाश पर प्रतिबंध टले

दीप जले दीप जले दीप जले दीप जले


कजरारी छांवों में

अंधियारी नावों में

आंखों से ओझल उन 

सुरमई दिशाओं में


दिवस के पड़ावों में सूरज के पांव ढले

दीप जले दीप जले दीप जले दीप जले


प्रकाश बिन बत्तियां

डूबने को किश्तियां 

जुगनू भी कस रहे

मनुष्यों पर फब्तियां 


किचराई आंखों को अमावस न और छले

दीप जले दीप जले दीप जले दीप जले


मन के अंधियारे में

दुख के गलियारे में

विध्वंस गीत गा रहे

जंग के चौबारे में


बिछी हुई चौपड़, न शकुनी चाल और चले 

दीप जले दीप जले दीप जले दीप जले


डाॅ एम डी सिंह 


(दीपावली की बहुत-बहुत बधाइयां )

रविवार, 20 अक्टूबर 2024

सूर्य वंदना :रचना डॉ एम डी सिंह ग़ाज़ीपुर उत्तरप्रदेश

सूर्य वंदना :

उदित हो मार्तंड
अंधेरा हो खंड-खंड
जागरण का धुन बजे
काली रात की भीत पर
प्रकाश का मंच सजे
टूटे निद्रा का घमंड
उदित हो मार्तंड

कलियों पर फूलों पर
हरित पर्ण शूलों पर
उड़ चले बगूलों पर
उगो-उगो भास्कर
नाव के मस्तूलों पर
नदियों के उसूलों पर
दातून नीम बबूलों पर

जागो हे दिनमान
भोर का फैले वितान
तितलियों की आहट से
मधुबन में फिर हो हलचल
मधुपों की गुनगुनाहट से
पौधों से मिले किसान
जागो हे दिनमान

डाॅ एम डी सिंह



बुधवार, 16 अक्टूबर 2024

शब्दविलीन हो जाएं चलिए डॉ एम डी सिंह ग़ाज़ीपुर उत्तरप्रदेश

शब्दविलीन हो जाएं चलिए

प्रेम-मोहब्बत की बातों में
नटखट सी दिखती रातों में
चलिए कुछ हलचल करते हैं
सुप्त हुए रिश्ते- नातों में

जूलियट किसलिए रूठी है
लैला भी क्यों कर झूठी है
रांझा भी नाराज चल रही
मैना की नजर अनूठी है

फिर से हुआ रोमियो जाए
मजनू फिर घर वापस आए
उड़े नींद हीरे की फिर से
तोता ,मैना पर भरमाए

वैलेंटाइन को दिल देकर
वैलेंटाइन का दिल लेकर
शब्दविलीन हो जाएं चलिए
मनसरोवर में भीग भेकर

डॉ एम डी सिंह



रविवार, 13 अक्टूबर 2024

अवध में राम जनमलें चइता डॉक्टर एम डी सिंह गाजीपुर उत्तर प्रदेश

चइता

बजत बा बधाई दशरथ के भवनवा हो रामा
अवध में राम जनमलें

पाके पूत दशरथ मन फफाइल
कउशिल्या क अघाइल कोंखवा हो रामा
अवध में राम जनमलें

परजा खुश चउआ चुरुंग छरकलैं
सूरुज चमकलैं भलही॔ टहकोरवा हो रामा
अवध में राम जनमलें

सबही नाचत सबही गावत बा
कैकेई झुलावत हईं पलनवा हो रामा
अवध में राम जनमलें

देवता फुल बरसावटत बाड़ैं 
विष्णु अइलैं जगत बन ललनवा हो रामा
अवध में राम जनमलें 

डाॅ एम डी सिंह



ग़ज़ल डॉ एम डी सिंह ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश

ग़ज़ल 

रातें देखी हैं सहर भी देखेंगे
तेरी बातों का असर भी देखेंगे

आए हैं हम देखने पर उतर जो 
नजारे ही नहीं नजर भी देखेंगे

हर गली-नुक्कड़ हर मोड़ पर तेरा 
गुरूर ही नहीं सबर भी देखेंगे

दरो-दीवार चाहे सलाखें दिखा 
ख़िदमत बस नहीं कहर भी देखेंगे

अबे सुन यार ग़ज़लगो आज तेरा
दीवान भी हम बहर भी देखेंगे

सहर-सुबह, सबर- संतोष, 
ख़िदमत- आव-भगत
दरो दीवार- घर द्वार, 
सलाखें -जेल ,कहर- आतंक
ग़ज़लगो- ग़ज़ल गाने वाले
दीवान- गजल संग्रह
बहर- शेर की एक-एक लाइन का तरीका

डाॅ एम डी सिंह



फगुनहटा रचना डॉक्टर एम डी सिंह गाजीपुर उत्तर प्रदेश

फगुनहटा

दिनवा हउवै अबले बदराइल
फगुनहटा बाय कहाँ हेराइल

सियार सिवाने लउके लगलैं
खरहा खर में छउंके लगलैं
पिल्ली छहगो पिल्ला दिहलसि
मनई रहि-रहि ठउंके लगलैं

सरसों पक्कल न रहिला लदराइल
फगुनहटा बाय कहाँ हेराइल

ऊंखि छोड़ि दिहले सिवान बा
गदरा धइ लिहले दुकान बा
बेतुक क दई पाथर पड़लैं
मूड़ थाम बइठल किसान बा

गोंहू लरकल जउवो सुरकाइल
फगुनहटा बाय कहाँ हेराइल

हइदेखा ना अजब तमाशा
लसराइल बा अबो कुहासा
अजुए जरावल जाई सम्मत
बुन्नी फोड़ति बाय बताशा

लवना- पल्लो कुल्ही मेहराइल
फगुनहटा बाय कहाँ हेराइल


फगुनहटा- फागुन में चलने वाली हवा
बदराइल- बादलों से भरा हुआ
हेराइल- खोया हुआ, सिवान- गांव की सरहद
खरहा- खरगोश,खर- घास,छंउके लगलैं- कूदने लगे
पिल्ली- कुतिया,ठंउकना- ठिठकना
रहिला- चना,लदराना- पेट का भरपूर हो जाना
गदरा -हरी मटर, दई- इंद्र देवता,मूड़-सर
लरकना - लोट जाना, सुरकाइल- जिसके दानों को बिना डंठल तोड़े मुट्ठी से खींच लिया गया हो
लसराइल- गोंद की तरह चिपक जाना
सम्मत- होलिका, बुन्नी- बारिश की बूंदे
लवना-पल्लो- जलावन की लकड़ी और पत्तियां
मेहराइल- नम हो जाना

डॉ एम डी सिंह


जिंदगी रचना डॉक्टर एम डी सिंह गाजीपुर उत्तर प्रदेश

जिंदगी

होती नहीं यार कभी फेल जिंदगी
है हार जीत की नियत खेल जिंदगी

चढ़ते-उतरते भीड़ हम मंजिलों के
दौड़ रही पटरियों पर रेल जिंदगी

छोड़ना न चाहे कोई स्वप्न में भी
ऐसी है खूबसूरत जेल जिंदगी

अंधडों से लड़ कर भी बुझ नहीं रहे
भर रही है दीप-दीप तेल जिंदगी

रच रही मृत्यु नई रोज साजिशें
है मगर फिर भी हेला हेल जिंदगी

डॉ एम डी सिंह



तो अच्छा पुरुष का पुरुष होना स्त्री का स्त्री डॉ एम डी सिंह गाजीपुर उत्तर प्रदेश

तो अच्छा

पुरुष का पुरुष होना
स्त्री का स्त्री
दिखना भी वैसे ही
जीना भी उसी तरह
स्तृत्व और पौरुष दोनों के लिए
जैव संरचनात्मक परिपूर्णता की
आधारभूत परिकल्पनाएं
निष्क्लेष बनी रहें निरंतर तो अच्छा

स्त्रियां पुरुष सा होना क्यों चाहतीं
पुरुष स्त्री सा दिखने को लालायित क्यों
जननी होना अथवा जनक
जीवन के आधारभूत प्रतिष्ठान
कम ज्यादा किसका सम्मान
प्रकृति प्राकृतिक रहे तो अच्छा

स्वभाव समभाव से उलझ रहा क्यों
स्वभाव सदैव गुरुतर है
समभाव ईर्ष्यापूरित
सम होने की लालसा कैसी
स्व जैसा भी हो
दिग दिगंत में रहे प्रज्वलित
गर्व अपने होने का रहे तो अच्छा

उद्विग्न तुम क्यों सखी
उत्तप्त तुम क्यों सखे
जग तुम, तुम सा
सरल सहज
अनवरत रहे तो अच्छा

डॉ एम डी सिंह


देख रही जनता चुपचाप : डॉ एम डी सिंह

देख रही जनता चुपचाप :

विचारो की तलवार खींच कर
विकारों की सलवार फींच कर

डटे हुए मझधार में अब तक
नौका और पतवार भींच कर

दलों के सिपहसालार अनहद
दिखा रहे शब्द हुंकार मीच कर

सब देख रही जनता चुपचाप
उगाते खरपतवार सींच कर

वह रस्सी ढूंढ रहे हैं नेता
ला सके जो सरकार घींच कर
डाॅ एम डी सिंह



अपने मन से लड़े कभी क्या - डॉ एम डी सिंह ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश

अपने मन से लड़े कभी क्या ?

अपनी कही बात पर अड़ना बहुत सरल है
अपनी गढ़ी सड़क पर चलना बहुत सरल है
अपनी मनमानी पर लड़ना बहुत सरल है
अपने मन से लड़े कभी क्या ?

जिन्दों के घर जिंदे कितने गिना कभी क्या
हंसतों के घर हंसी कितनी सुना कभी क्या
अपनों में है अपना कौन चुना कभी क्या
खुद पचड़े में पड़े कभी क्या ?

हम दास मलूका के अजगर क्यों लगते हैं
हम मुरदा राहों के रहबर क्यों लगते हैं
हम डाउन संबंधों के सरवर क्यों लगते हैं
इस उलझन में गड़े कभी क्या ?

बात पते की बतला जाना बहुत सरल है
बात-बात पर कसमें खाना बहुत सरल है
सपनों को सपने दिखलाना बहुत सरल है
आप फ्रेम में जड़े कभी क्या ?
डाॅ एम डी सिंह


छोड़ मोबाइल खेलों खेल - डॉ एम डी सिंह ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश

खेलो खेल :

चोर पुलिस और जेलर जेल
छोड़ मोबाइल खेलो खेल

राजू राघव रघ्घू रहमान
सोनी सिद्धू पिंकी सलमान
यह पहले बनेंगे चोर सभी
सिपाही बने आज मुस्कान

टीचर जेलर पढ़ाई जेल
छोड़ मोबाइल खेलो खेल

फिर चोर सभी छुप जाएंगे
कहीं दिखे पकड़े जाएंगे
जब पुलिस पकड़ कर लाएगी
सब कविता एक सुनाएंगे

न सुना सके तो होंगे फेल
छोड़ मोबाइल खेलो खेल

डाॅ एम डी सिंह



जीने के लिए तो एक खतरा काफी है- डॉ एम डी सिंह ग़ाज़ीपुर उत्तरप्रदेश

सूर्ख जर्द कमजोर न एक तगड़ा काफी है
हलाल होने को तो एक बकरा काफी है

हुस्न की फिराक में है तो बचके रह यार
दिल चाक करने में एक नखरा काफी है

दुश्मनी की दीवार गिरानी तुझे तो लड़
दोस्ती के लिए तो एक झगड़ा काफी है

सुन बे शराबी तुझे पता नहीं हो शायद
मदहोशी के लिए एक कतरा काफी है

मार डालेगी तुझे ये खुशियों की चाहत
जीने के लिए तो एक खतरा काफी है

सूर्ख - लाल
जर्द - पीला
चाक करना- टुकड़े-टुकड़े करना
डाॅ एम डी सिंह



राम जीवात्मा है- डाॅ एम डी सिंह ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश

राम !

मन-दशानन रावण है
मनपुरी-मस्तिष्क-लंका का शासक
राम जीवात्मा है
देंह-देश-अयोध्या का राजा

सीता जिसकी चेतना है
इंद्रियों की स्वामिनी
उठा ले गया जिसे हर कर मन-रावण
कर उत्कट धनुर्धर जीवात्मा राम को विह्वल

कदम-कदम चल रहा साथ
लक्ष्यक-लक्ष्मण है तंत्रिका तंत्र का स्वामी
भरण-पोषण का भार भरत पर छोड़
सुरक्षा की जिम्मेदारी प्रतिरक्षक
सेनापति शत्रुघ्न को सौंप
भटक रहे दोनों वन-कोशिकाओं में

उर धरे रम्यक राम को प्रस्तुत
हनुमान ब्रह्म है
मन नगरी लंका तक ले जाने को उत्सुक

घेरे जिसकी सीमाओं को
इच्छाओं का अथाह सागर
उठ रहीं जिसमें विकराल
आशंकाओं-चिंताओं की लहरें

कर समित सागर को
स्थापित कर परमब्रह्म शिव स्वयंभू 'मैं' को
आह्वाहित कर अंतरशक्ति दुर्गा को
कर प्रचंड प्रहार रावण पर
विजयी हो बनेगा
चक्रवर्ती सम्राट
राम !

(कल विजयदशमी के दिन अपने मित्र विंध्याचल पर्वत के पास चला गया। सुबह से शाम तक उसके साथ राम चर्चा और उसके-अपने हाल-चाल में इस तरह व्यस्त हुआ कि किसी को विजयदशमी की बधाई न दे सका। क्षमा करें,)
डाॅ एम डी सिंह



शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2024

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भारत माता के प्रति भावना क्या है 🚩

RSS की प्रार्थना का हिन्दी में अनुवाद ... पढ़ो और सोचिये  कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भारत माता के प्रति भावना क्या है 🚩

1. नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे, त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोsहम्। 🚩
हे प्यार करने वाली मातृभूमि! मैं तुझे सदा (सदैव) नमस्कार करता हूँ। तूने मेरा सुख से पालन-पोषण किया है। 🚩

2. महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे, पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते।। १।। 🚩
हे महामंगलमयी पुण्यभूमि! तेरे ही कार्य में मेरा यह शरीर अर्पण हो। मैं तुझे बारम्बार नमस्कार करता हूँ। 🚩

3. प्रभो शक्ति मन्हिन्दुराष्ट्राङ्गभूता, इमे सादरं त्वाम नमामो वयम् त्वदीयाय कार्याय बध्दा कटीयं, शुभामाशिषम देहि तत्पूर्तये। 🚩
हे सर्वशक्तिशाली परमेश्वर! हम हिन्दूराष्ट्र के सुपुत्र तुझे आदर सहित प्रणाम करते है। तेरे ही कार्य के लिए हमने अपनी कमर कसी है। उसकी पूर्ति के लिए हमें अपना शुभाशीर्वाद दे। 🚩

4. अजय्यां च विश्वस्य देहीश शक्तिम, सुशीलं जगद्येन नम्रं भवेत्, श्रुतं चैव यत्कण्टकाकीर्ण मार्गं, स्वयं स्वीकृतं नः सुगं कारयेत्।। २।। 🚩
हे प्रभु! हमें ऐसी शक्ति दे, जिसे विश्व में कभी कोई चुनौती न दे सके, ऐसा शुद्ध चारित्र्य दे जिसके समक्ष सम्पूर्ण विश्व नतमस्तक हो जाये। ऐसा ज्ञान दे कि स्वयं के द्वारा स्वीकृत किया गया यह कंटकाकीर्ण मार्ग सुगम हो जाये। 🚩

5. समुत्कर्षनिःश्रेयसस्यैकमुग्रं, परं साधनं नाम वीरव्रतम्
तदन्तः स्फुरत्वक्षया ध्येयनिष्ठा, हृदन्तः प्रजागर्तु तीव्राsनिशम्। 🚩
उग्र वीरव्रती की भावना हम में उत्स्फूर्त होती रहे, जो उच्चतम आध्यात्मिक सुख एवं महानतम ऐहिक समृद्धि प्राप्त करने का एकमेव श्रेष्ठतम साधन है। तीव्र एवं अखंड ध्येयनिष्ठा हमारे अंतःकरणों में सदैव जागती रहे। 🚩

6. विजेत्री च नः संहता कार्यशक्तिर्, विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम्। परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं, समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम्।। ३।। ।। भारत माता की जय।। 🚩
हे माँ  तेरी कृपा से हमारी यह विजयशालिनी संघठित कार्यशक्ति हमारे धर्म का सरंक्षण कर इस राष्ट्र को वैभव के उच्चतम शिखर पर पहुँचाने में समर्थ हो। भारत माता की जय।.. 🚩

अब आप ही विचार करे कि RSS की विचारधारा कैसी है... 🚩🚩
नफरत और घृणा का चश्मा उतार कर संघ को देखने की कोशिश करें। साथ ही संघ को समझना है तो संघ की शाखाओं में आकर समझें।
संघ ने कभी यह दावा नहीं किया वो हिंदू समाज का प्रतिनिधित्व करता है बल्कि यह समझता है कि संघ समाज का हिस्सा है और राष्ट्रीय मुद्दों के लिए समाज ही प्रतिनिधित्व करता है। । संघ व्यक्ति निर्माण पर अपना ध्यान केंद्रित करता है। समाज को दोष देना निष्क्रिय लोगों का काम है संघ चाहता है व्यक्ति निर्माण के रास्ते में समाज शक्तिशाली, संगठित एवं राष्ट्र के लिए काम करने वाला हो। जो संघ को साधारणतया नहीं समझता है वह भी जातिवाद का लांछन तो कभी नहीं लगाता क्योंकि वह जानता है किस संघ में जातिवाद कोई स्थान नहीं है। व्हाट्सएप पर पोस्ट करने वाले को एक साधारण आदमी जितना ज्ञान होना तो आवश्यक है।



शुक्रवार, 4 अक्टूबर 2024

शिवशंकर -माधव कृष्ण ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश

शिवशंकर

-माधव कृष्ण

लेकर सबका दुःख सीने में विष घोर हलाहल पीने में
क्या खूब मजा है, देखो तो! शिवशंकर बनकर जीने में

सब कुछ है मन आसक्त नहीं
सब स्वीकृत कुछ बेवक्त नहीं
ऋषि मूर्ख पुरातन अधुनातन
सुर असुर शक्त या शक्त नहीं.
यह एकमेव सत्ता विभक्त
कुछ स्वामिभक्त कुछ अंधभक्त
कुछ अनुरक्तों की श्रेणी में
कुछ खोये हैं बनकर विरक्त.
मैं सबमें हूँ सब मुझमें हैं मैं सबसे हूँ सब मुझसे हैं
हम एकरूप हैं, भेद कहाँ अंगूठी और नगीने में...

सावन की हरियाली फुहार
गर्मी की तपती सूर्यधार
मादक शीतलतम शरद चन्द्र
अभिषेक कर रहे लगातार.
है सबसे शून्य अपेक्षा ही
स्वागत है दक्ष-उपेक्षा की
तपपूत भगीरथ! कमी कहाँ?
गंगा सी तरल शुभेच्छा की.
भस्मासुर अर्जुन आते हैं जो किया वही सुख पाते हैं
द्रष्टा ने देखा एक ज्योति बेढंगे और करीने में...

यह जग है पत्थर बरसेंगे
कुत्ते श्रृगाल भी गरजेंगे
पर मेरी अनुपम शांति देख
इस शांति के लिए तरसेंगे.
यह सफ़र अभी रेतीला है
आगे चश्मा है गीला है
दलदल मैदान पहाड़ी या
अन्धेरा है चमकीला है.
चलने का अनुपम सुख देखूँ या व्यथितमना हो सुख बेचूं
जब साफ़ साफ़ सब देख रहा अन्तर्मन के आईने में...

मैं अमरनाथ का एकाकी
निर्जन मसान का दिगवासी
सब जलते हैं सब गड़ते हैं
मैं शून्य पूर्ण नित अविनाशी.
यात्रा अनंत जन्मों की है
सुख दुःख वेदना मरण की है
पर सारभूत शिव बच जाता
मंजिल बस इसी समझ की है.
परदा उठना परदा गिरना अंतिम सच है अभिनय करना
फिर आत्मलीन हो बहा दिया निंदा संसार पसीने में...

-माधव कृष्ण
४ अक्टूबर २०२४, गाजीपुर


गुरुवार, 19 सितंबर 2024

जैसी भी हो मगर भा गई जिंदगी- रचना बीना राय ग़ाज़ीपुर उत्तरप्रदेश

भा गई जिंदगी

धीरे धीरे समझ आ गई जिंदगी
जैसी भी हो मगर भा गई जिंदगी

है मजा इसमें गिरने सम्हलने में
हौसले के साथ तन्हा चलने में

भीड़ से खुद ही कतरा गई जिंदगी
जैसी भी हो मगर भा गई जिंदगी

चोट देकर के इसने तराशा बहुत
मिल गया रब मिली जब निराशा बहुत

क्यों कहें कि सितम ढा गई जिंदगी
जैसी भी हो मगर भा गई जिंदगी

स्वरचित नज़्म

बीना राय
गाज़ीपुर, उत्तर प्रदेश



गुरुवार, 12 सितंबर 2024

कवि लेखक एवं प्रख्यात समाजसेवी परम आदरणीय बड़े भैया श्री नीरज सिंह अजेय जी का साहित्यिक एवं सामाजिक संक्षिप्त परिचय

कल दिनांक 11 सितंबर 2024 को जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान मोहनिया कैमूर के द्वारा Self- Esteem Based Life Skill Programme ( Who I Am) के अंतर्गत शिक्षकों का जिला स्तरीय एक दिवसीय गैर आवासीय प्रशिक्षण का आयोजन किया गया, इस आयोजन में गाजीपुर जिले के वरिष्ठ समाजसेवी परम आदरणीय बड़े भैया श्री नीरज सिंह 'अजेय' जी का स्नेह औऱ आशीर्वाद प्राप्त हुआ। पूर्वांचल के प्रख्यात समाजसेवी भैया एवं इनके संस्था द्वारा किये गए प्रसंसनीय कार्य निम्नवत है।

1- 2020 से मातृ भूमि की रसोई का संचालन किया जा रहा है जो गरीब निर्बल जन को मुफ्त भोजन देती है।
2 शादी सहयोग बैंक के द्वारा गरीब असहाय लड़कियों के शादी में आर्थिक मदद।

3- रक्तदान शिविर- पांचवीं बार 14 जुलाई 2024 को रक्तदान शिविर के द्वारा जरुरतमंद लोगो की मदद।

4- शिक्षक की अहम दायित्व का निर्वहन करते हुए समय समय पर वृक्षारोपण करना।

पेशे से शिक्षक स्वभाव से लेखक,कवि एवं समाजसेवी नीरज भैया ग्राम पोस्ट अलीपुर मदरा तहसील जखनियां जिला ग़ाज़ीपुर के निवासी है। आप जैसे महान व्यक्तित्व का आशीर्वाद मेरे लिए परम् शौभाग्य की बात है। ईश्वर आप जैसे महान समाजसेवी को और भी शक्तिशाली एवं समर्थवान बनाएं जिससे आप इस तरह बेहतर कार्य को निरंतर अंजाम दे।
ॐ जय श्री #सीताराम, हर हर #महादेव #राधेकृष्ण
#समाजसेवी #वृक्षारोपण #रक्तदान #शिविर #कवि #लेखक #जखनिया #गाजीपुर #उत्तरप्रदेश






शनिवार, 7 सितंबर 2024

छुपके छुपाइके नजरिया से हमके लेले अइह गजरा बजरिया से- रचना श्री विद्यासागर स्नेही जी

छुपके छुपाइके नजरिया से
हमके लेले अइह गजरा बजरिया से

गजरा ले आके पिया केश में लगइह
प्यार विश्वास के उमिरिया बढ़इह
बाजी प्रीत के गीत सेजरिया से
हमके लेले अइह गजरा बजरिया से

गजरा त ह पिया प्यार के निशानी
करिह ना कबहूँ तूं येसे बेइमानी
ना त गिर जइब हमरी नजरिया से
हमके लेले अइह गजरा बजरिया से

हमरा के हरदम दिलवा में रखिह
सागर सनेही से बाकी कुछ सीखिह
रहिह बन्हल तूं प्रेम की रसरिया से
हमके लेले अइह गजरा बजरिया से

रचना श्री विद्यासागर स्नेही जी





काहें लायो नथुनिया उधार बालमा ताना मारेला हमके सोनार बालमा- रचना विद्यासागर स्नेही

काहें लायो नथुनिया उधार बालमा
ताना मारेला हमके सोनार बालमा

नथुनी पहिनि हम गइलीं बजरिया
जइसे पड़ल मुअना के नजरिया
अंगुरी देखावे बार बार बालमा
काहें लायो नथुनिया उधार बालमा
ताना मारेला हमके सोनार बालमा

एक बात कहीं हम तोहसे सजनवा
अबला के आबरू, ह असली गहनवा
मान, मर्यादा ह सिंगार बालमा
काहें लायो नथुनिया उधार बालमा
ताना मारेला हमके सोनार बालमा

सागर सनेही संइया मान मोर बतिया
देई द उधार चाहे बेंचि द जजतिया
भलही घर में लागी केवाड़ बलमा
काहें लायो नथुनिया उधार बालमा
ताना मारेला हमके सोनार बालमा

रचना - विद्यासागर स्नेही


सोमवार, 2 सितंबर 2024

लेकिन दुःख है अब भारत में हम सब नए अछूत हैं- रचना अज्ञात

नए अछूत

हमको देखो हम सवर्ण हैं
भारत माँ के पूत हैं,
लेकिन दुःख है अब भारत में,
हम सब 'नए अछूत' हैं;

सारे नियम और कानूनों ने,
हमको ही मारा है;
भारत का निर्माता देखो,
अपने घर में हारा है;
नहीं हमारे लिए नौकरी,
नहीं सीट विद्यालय में;
ना अपनी कोई सुनवाई,
संसद में, न्यायालय में;
हम भविष्य थे भारत माँ के,
आज बने हम भूत हैं;
बेहद दुःख है अब भारत में;
हम सब 'नए अछूत' हैं;

'दलित' महज़ आरोप लगा दे,
हमें जेल में जाना है;
हम-निर्दोष, नहीं हैं दोषी,
यह सबूत भी लाना है;
हम जिनको सत्ता में लाये,
छुरा उन्हीं ने भोंका है,
काले कानूनों की भट्ठी,
में हम सब को यूं झोंका है;
किसको चुनें, किन्हें हम मत दें?
सारे ही यमदूत हैं;
बेहद दुःख है अब भारत में;
हम सब 'नए अछूत' हैं;

प्राण त्यागते हैं सीमा पर,
लड़ कर मरते हम ही हैं;
अपनी मेधा से भारत की,
सेवा करते हम ही हैं;
हर सवर्ण इस भारत माँ का,
एक अनमोल नगीना है;
अपने तो बच्चे बच्चे का,
छप्पन इंची सीना है;
भस्म हमारी महाकाल से,
लिपटी हुई भभूत है;
लेकिन दुःख है अब भारत में,
हम सब 'नए अछूत' हैं..

देकर खून पसीना अपना,
इस गुलशन को सींचा है;
डूबा देश रसातल में जब,
हमने बाहर खींचा है;
हमने ही भारत भूमि में,
धर्म-ध्वजा लहराई है;
सोच हमारी नभ को चूमे
बातों में गहराई है;
हम हैं त्यागी, हम बैरागी,
हम ही तो अवधूत हैं;
बेहद दुःख है अब भारत में,
हम सब 'नए अछूत' हैं🙏🏻

समस्त सवर्ण समाज के सभ्य बंधुओ को समर्पित, कृपया इस कविता को बिना परिवर्तित किये अपने सभी लोगों को पोस्ट जरूर करे !🙏


कौन रोता है किसकी दुनिया उदास है- रचना लव तिवारी ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश

कौन रोता है किसकी दुनिया उदास है।
इसका ख़ुदा क्यों नही इसके पास है।

बड़ी मरुवत,बड़े बत्तर हालात हैं इसके।
इसका बचपन क्यों नही इसके पास है।

किससे मन्नत मांगू जो इसके हक में हो।
मैं आदमी ही हूँ, कुछ नही मेरा पास है।

जिंदगी अगर दे तो जीने सलीका दे मालिक।
मैं इसके लिए क्या करूँ जो मेरे हाथ है।

एक अगर ऐसा हो तो कुछ सोचा भी जाये।
तेरी दुनिया, तेरे दर पर तो लाखों उदास है।

रचना- लव तिवारी गाज़ीपुर उत्तर प्रदेश




शुक्रवार, 30 अगस्त 2024

कितने कमाल लगते हो हुस्न में बेमिसाल लगते हो। रचना लव तिवारी

कितने कमाल लगते हो
हुस्न में बेमिसाल लगते हो।

आदत किसी और कि न बिगड़े।
रोशन जहाँ के आफताब लगते हो।

अंधरे रात के उजाला बनकर
चाँदनी रात के माहताब लगते हो।

किसको मालूम है कितनो की हसरत हो तुम।
मुझसे दूर रह कर भी मेरे पास लगते हो।

दुनियाभर की हर ख़ुशी तुम्हें ख़ुदा बक्शे।
तूम इस जहाँ में अपने खास लगते हो।

ऐसी खूबसूरती का क़ायल मरते दम तक रहेगा लव।
मेरी दुनिया मेरी चाहत मेरे दिल के पास रहते हो।

आफ़ताब- सूर्य
महताब- चंद्रमा
रचना- लव तिवारी गाज़ीपुर
उत्तर प्रदेश