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जुलाई 2025 ~ Lav Tiwari ( लव तिवारी )

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बुधवार, 30 जुलाई 2025

कउवा कान ले के भागल धावल सगरी गाँव- डॉ एम डी सिंह

 कउवा कान ले के भागल धावल सगरी गाँव 

अइसे गहि के केहू छींकल जागल सगरी गाँव 


एक चिचिअइले समै चिचिआइल अरे बाप रे बाप 

भइल बउंका के पाछे देखा पागल सगरी गाँव 


लउर कपारे भेंट ना अस  बाप बाप चिल्लाइल

बिना मउअत के मउअत देवे लागल सगरी गाँव 


होरहा होरहा होरहा,  भइल  सिवाने हल्ला  

एक कियारी रहिला जम्मल धांगल सगरी गाँव 


बरध बंहेतरा बहक केहू क कइलस बड़ हेवान 

कान धरि के  राम दुहाई मांगल सगरी गाँव 


डॉ एम डी सिंह



साप्ताहिक मानव धर्म संगोष्ठी-माधव कृष्ण जुलाई २०२५ गाजीपुर

 साप्ताहिक मानव धर्म संगोष्ठी


स्थान: द प्रेसीडियम इंटरनेशनल स्कूल योग कक्ष, अष्टभुजी कॉलोनी, बड़ी बाग, लंका, गाजीपुर 


दिन: शनिवार, 26 जुलाई 2025

समय: शाम 7 बजे से 9 बजे तक


आयोजक: नगर शाखा, श्री गंगा आश्रम, मानव धर्म प्रसार


साप्ताहिक संस्कारशाला के कुछ निष्कर्ष


मानव धर्म प्रसार


1. जापान के बौद्ध संत की तरह बुद्ध के विचारों का प्रसार बुद्ध की करुणा दृष्टि अपनाकर ही हो सकता है।

2. शिव का नाम जपने के बाद शिव की तरह कल्याणकारी हो जाना है। महर्षि दधीचि शिवभक्त थे। शिव को जपने का परिणाम यह हुआ कि दधीचि ने अपने आराध्य की भांति ही लोककल्याण के लिए बिना कुछ सोचे अपना शरीर दे दिया।

3. गुरुनानक देव की इच्छा थी कि अच्छे लोग अपनी अच्छाई के साथ फैल जाएं, और बुरे लोग एक स्थान पर सीमित रहें ताकि उनकी बुराई से समाज का अहित न हो।

4. ईश्वर का सर्वत्र और सबमें दर्शन करना चाहिए। यही सबसे बड़ा और सहज ध्यान है।

5. निस्वार्थ प्रेम देने वाला ही गुरु है।

6. प्रेम एकरस होता है। जो चढ़ती उतरती है वह मस्ती नहीं है। प्रेम की मस्ती तो हमेशा चढ़ी रहती है।

7. सादे कपड़े पहनो, बेईमानी का अन्न न खाओ, खुद तकलीफ सह लो, दूसरों को सुख दो, भिखारी खाली हाथ न जाए, कोई बेकसूर होने के बाद भी गाली दे तो भी हाथ जोड़ लो तो भजन खुल जाता है। चिड़ियों और चींटियों को जहां देखो, भोजन दे दो। दीनता और शांति से भजन में प्रगति होती है।

8. सुमिरन का अर्थ है परमात्मा का स्मरण। अपना कार्य करते हुए प्रभु का स्मरण करना ही सिमरन है। सांस सांस सिमरन करे, वृथा न जाए सांस। प्राप्त पर्याप्त है, इसलिए ईश्वर को हमेशा स्मरण करते रहना चाहिए।

9. भजन के साथ आत्मावलोकन भी आवश्यक है।  मन की गति गहन है।

10. सदा सकारात्मक दृष्टिकोण होना चाहिए।

11. कर्म का अटल सिद्धांत है, जो करोगे सो भरोगे।


कुछ कहानियां


अमीर खुसरो पहले मुल्तान के हाकिम के यहां नौकरी करते थे, किंतु किसी कारण उन्होंने नौकरी छोड़ दी और वह अपना सारा सामान ऊंटों पर लादकर अपने गुरु हजरत निजामुद्दीन से मिलने दिल्ली की ओर निकल पड़े। इधर हजरत निजामुद्दीन के पास एक गरीब आदमी आया और बोला, मालिक मेरी लड़की की शादी तय हो गई है। यदि आप कुछ मदद कर सकें, तो मैं आपका शुक्रगुजार रहूंगा। हजरत बोले, आज तो मेरे पास देने के लिए कुछ नहीं है, तुम कल आना।

वह आदमी जब दूसरे दिन गया, तो हजरत बोले, आज भी मुझे कुछ नहीं मिला। इस प्रकार तीन दिन बीत गए, लेकिन हजरत के पास भेंट चढ़ाने के लिए कोई नहीं आया। आखिर चौथे दिन जब वह गरीब वापस जाने लगा, तो उन्होंने उसे अपनी जूती ही दे दी। बेचारा मायूस तो हुआ, पर जूती लेकर ही चल पड़ा। रास्ते में खुसरो का काफिला आ रहा था। खुसरो को लगा कि कहीं से पीर की खुशबू आ रही है, किंतु पीर (हजरत निजामुद्दीन) कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे। जब वह आदमी इनके सामने से गुजरा, तो वे समझ गए कि खुशबू इसी आदमी के पास से आ रही है।


उन्होंने इसे रोककर पूछा, आप कहां से आ रहे हैं? उसने सारी बात बता दी। तब खुसरो बोले, क्या तुम इस जूती को बेचोगे? उस आदमी ने कहा, ‘आप वैसे ही ले सकते हैं’, लेकिन खुसरो ने पत्नी, दो बच्चों और खुद के लिए एक-एक ऊंट रखकर बाकी सारे ऊंट और उन पर लदा सामान उस आदमी को दे दिया। वह उन्हें दुआ देता हुआ चला गया। खुसरो जब दिल्ली पहुंचे, तो उन्होंने हजरत के चरणों पर वह जूती रख दी। तब उन्होंने पूछा, इसके बदले क्या दिया है तुमने? खुसरो ने सारी चीजें गिना दीं। खुसरो का अपने प्रति यह उत्कट प्रेम देख उनके मुख से निकला, इसकी कब्र मेरी कब्र के पास ही बनाना।

*****

एक फकीर था जापान में, वह बुद्ध के ग्रंथों का अनुवाद करवा रहा था। पहली बार जापानी भाषा में पाली से बुद्ध के ग्रंथ जाने वाले थे। गरीब फकीर था, उसने दस साल तक भीख मांगी। दस हज़ार रुपए इकट्ठे कर पाया, लेकिन तभी अकाल आ गया, उस इलाके में अकाल आ गया।

उसके दूसरे मित्रों ने कहा कि नहीं-नहीं, ये रुपए अकाल में नहीं देने हैं, लोग तो मरते हैं जीते हैं, चलता है सब। भगवान के वचन अनुवादित होने चाहिए, वह ज्यादा महत्वपूर्ण है।

लेकिन वह फकीर हंसने लगा। उसने वे दस हज़ार रुपए अकाल के काम में दे दिए। फिर बूढ़ा फकीर, साठ साल उसकी उम्र हो गई थी, फिर उसने भीख मांगनी शुरू की। दस साल में फिर दस हज़ार रुपये इकट्ठे कर पाया कि अनुवाद का कार्य करवाए, पंडितों को लाए। क्योंकि पंडित तो बिना पैसे के मिलते नहीं हैं। पंडित तो सब किराए के होते हैं। तो पंडित को तो रुपया चाहिए था, तो वह अनुवाद करे पाली से जापानी में। फिर दस हजार रुपये इकट्ठे किए, लेकिन दुर्भाग्य कि बाढ़ आ गयी और वे दस हजार रुपये वह फिर देने लगा।

तो उसके भिक्षुओं ने कहा:यह क्या कर रहे हो? यह जीवन भर का श्रम व्यर्थ हुआ जाता है। बाढ़ें आती रहेंगी, अकाल पड़ते रहेंगे, यह सब होता रहेगा। अगर ऐसा बार-बार रुपए इकट्ठे करके इन कामों में लगा दिया तो वह अनुवाद कभी भी नहीं होगा।

लेकिन वह भिक्षु हंसने लगा। उसने वे दस हज़ार रुपए फिर दे दिए। फिर उम्र के आखिरी हिस्से में दस-बारह साल में फिर वह दस-पंद्रह हज़ार रुपए इकट्ठे कर पाया। फिर अनुवाद का काम शुरू हुआ और पहली किताब अनुवादित हुई। तो उसने किताब में लिखा :थर्ड एडिशन, तीसरा संस्करण।

तो उसके मित्र कहने लगे :पहले दो संस्करण कहाँ हैं? निकले ही कहाँ? पागल हो गए हो? यह तो पहला संस्करण है।

लेकिन वह कहने लगा कि दो निकले, लेकिन वे निराकार संस्करण थे। उनका आकार न था। वे निकले, एक पहला निकला था जब अकाल पड़ गया था, तब भी बुद्ध की वाणी निकली थी। फिर दूसरा निकला था जब बाढ़ आ गई थी, तब भी बुद्ध की वाणी निकली थी, लेकिन उस वाणी को वे ही सुन और पढ़ पाए होंगे जिनके पास मैत्री का भाव है। यह तीसरा संस्करण सबसे सस्ता, सबसे साधारण है, इसको कोई भी पढ़ सकता है, अंधे भी पढ़ सकते हैं, लेकिन वे दो संस्करण वे ही पढ़ पाए होंगे जिनके पास मैत्री की आंखें हैं।




प्रेम और विवाह- माधव कृष्ण ३० जुलाई २०२५ गाजीपुर

जब यात्रा अनंत जन्मों की हो जिसका आधार विशुद्ध प्रेम हो तब वर्ष नहीं गिने जाते। लेकिन फिर भी विवाह की वर्षगांठ मनाई जाती है। अभी एक साहित्यिक संगोष्ठी में दो साहित्यकारों ने 'साहित्य की जाति और धर्म' विषय पर बोलते हुए मेरे अंतरजातीय विवाह का उदाहरण सामने रखा। अंतरजातीय विवाह: यह एक दृष्टि है विभिन्न जातियों में होने वाले विवाह को देखने की। मुझे इस दृष्टि से कोई शिकायत भी नहीं है लेकिन सच तो यह है कि यह दृष्टि जातिवादी दृष्टि है। जो जाति देखने का आदी है वह विवाह को इस श्रेणी में देखकर बांधेगा ही, अंतरजातीय विवाह।


फिल्म हाउसफुल ५ में अक्षय कुमार का एक संवाद है: "प्वाइंट ये नहीं है जिस पर तू स्ट्रेस कर रहा है।" हां, बिलकुल! बिंदु वह नहीं है जिसे आप रेखांकित कर रहे हैं। मूल बिंदु है प्रेम, और यह उपेक्षित होता रहा है।  प्रेम और विवाह, ये दोनों स्थिर और उबाऊ संस्थाएं नहीं हैं। प्रेम और विवाह, दोनों निरन्तर गतिशील, विकासशील और प्रवहमान संस्थाएं हैं। इसलिए जब प्रेम और विवाह एक साथ घटित होते हैं जिसके लिए समाज ने प्रेमविवाह शब्द चुना, तो यह किसी भी मनुष्य के जीवन की एक कोमलता से परिवर्तन कर देने वाली घटना बन जाती है। यह संवेदनाओं का धर्म और चरमोत्कर्ष है।


कुछ लोगों ने हमेशा व्यवस्थित विवाह और प्रेम विवाह के बीच आपसी समझ, मनमुटाव, परिवार का ध्यान इत्यादि के आधार पर एक लकीर खींचने का प्रयास किया है। लेकिन मैं ऐसे किसी अंतर को नहीं देखता। दोनों का केंद्र विवाह है, एक साथ रहने और एक दूसरे के लक्ष्य में सहयोग करने का अदम्य संकल्प। एक में प्रेम विवाह के पूर्व घटित होता है और दूसरे में विवाह के बाद प्रेम घटित होता है। दोनों में असीम धैर्य, आपसी समझ और निर्वहन की अटूट क्षमता आवश्यक है। इसीलिए भारतीय मानस ने विशेष निर्वहन या विवाह जैसे शब्द की संरचना की।


कुछ लोगों ने कहा कि, प्रेम विवाह सामाजिक संरचना को तोड़ देते हैं। यह सच है। जब एक कथावाचक को जाति पूछकर मारा जाता हो या जब किसी गांव में एक मवेशी के चरने पर दो जातियों में खूनी संघर्ष हो जाता हो या जब किसी एक जिले में एक योग्य प्रतिनिधि को दूसरी जाति के लोग वोट नहीं देते हैं, तब क्या सामाजिक संरचना बची रहती है? ऐसी सड़ी गली सामाजिक संरचना को तो ध्वस्त होना ही चाहिए। आश्चर्य है कि, सामाजिक संरचना के नाम पर हम वह सब कुछ बचा लेना चाहते हैं जो विद्वेष और विभाजन का स्रोत है; और इसे बचाने के नाम पर हम हर उस कृत्य और विचार का विरोध करते हैं जिसका आधार विशुद्ध प्रेम है, जिसके अंदर दो समुदायों को जोड़ने की क्षमता है।


भारत की सांस्कृतिक परम्परा में आठ विवाहों की सूची है: ब्राह्म, दैव, आर्ष, प्राजापत्य, आसुर, गांधर्व, राक्षस, पैशाच। अंतिम दो को अधर्म पर आधारित विवाह माना जाता है क्योंकि इसमें कन्या की इच्छा नहीं होती और उसका हरण कर लिया जाता है। सर्वश्रेष्ठ ब्राह्म विवाह माना जाता है क्योंकि श्रेष्ठ सद्गुणों से युक्त वर और वधू को पारस्परिक और सामाजिक सहमति के बाद विवाह की संस्था में प्रवेश दिया जाता है। लेकिन आज के समय में लड़के या लड़की की सहमति या इच्छा न होने के बाद भी विविध दबावों के द्वारा एक दूसरे के साथ विवाह करने के लिए विवश किया जाता है। जब तक सामाजिक दबाव, लोकलाज, अशिक्षा, खाप या जातीय पंचायतें शक्तिशाली रहे, तब तक ऐसे विवाह को लोग धर्मसम्मत समझते रहे और लोग इन्हें निभा भी लेते थे।  


भय के कारण निर्वाह कर लेने वाले विवाह को किस श्रेणी में डालेंगे, यह तो पाठक ही निर्णय करेंगे। प्रायः कुछ वर्षों पूर्व बिहार में ऐसे विवाह आम बात हो चुके थे जिसमें किसी सजातीय योग्य वर की सूचना पाकर रणवीर सेना या माओवादी संगठन के लोग बीच राह से ही उनका अपहरण कर लेते थे और उनका विवाह अपने समूह की कन्या से विधिवत करा देते थे। उड़ीसा में पढ़ते समय मेरी भेंट एक ऐसे सज्जन के संबंधी से हुई। उन्हें लड़की से साथ तीन दिन तक एक कमरे में विवाह के बाद बंद रखा गया। उनके परिवार वालों को सूचना दी गई और धमकी दी गई कि लड़की के साथ कुछ भी गलत होने पर अतिवादी कदम उठाए जाएंगे। वे लोग आज प्रसन्नतापूर्वक हैं लेकिन ऐसे विवाह को राक्षस विवाह कहते हैं। इसका आरंभ ही अधर्म पर आधारित है।


अब जब संविधान और प्रशासन अधिक शक्तिशाली हो गए हैं, तब ऐसे विवाहों की वास्तविकता सामने आ रही है। अब तक हम सभी जिसे आदर्श विवाह समझते रहे, उनमें संबंध विच्छेद, मन मुटाव और हत्या जैसे समाचार आम बात हो चुके हैं। सद्गुणों से युक्त रहने पर और पारस्परिक सहमति के बाद संविधान भी वयस्कों को स्वेच्छया विवाह की अनुमति देता है। समाज की इस पर मिश्रित  प्रतिक्रिया है। मुंबई और दिल्ली जैसे आर्थिक रूप से समृद्ध और गतिशील महानगर प्रेम विवाहों को पूरी स्वीकृति दे चुके हैं लेकिन वाराणसी, गाजीपुर जैसे जातियों को प्रधानता देने वाले शहरों  में  अभी भी व्यापक स्तर पर इन्हें अस्वीकार कर दिया जाता है। ऐसा नहीं है कि यह अस्वीकार्यता केवल जातीय विषमता के कारण है।


यह अस्वीकार्यता पारस्परिक अविश्वास, प्रेम के नाम पर लड़कियों को ठगने वाले और उनकी भावना के साथ खेलने वाले लड़कों के कारण भी है। जैसे रावण ने साधु के छद्म वेश में माता सीता का अपहरण किया और माना जाता है कि तब से लोगों ने साधु वेश पर ही अविश्वास करना शुरू कर दिया, लेकिन धन्य हो स्वामी विवेकानंद और महर्षि दयानंद जैसे साधुओं का जिनके कारण समाज में साधुवेश की प्रतिष्ठा बनी रही; वैसे ही कुछ छद्म प्रेमियों के कारण वास्तविक प्रेम को पूरी तरह से नकार देना भी अनुचित होगा। इसके उदाहरण भी असंख्य हैं जैसे भाजपा के पूर्व नेता सिकंदर बख्त जिन्होंने एक हिंदू से विवाह किया और अंत तक निभाया, पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी जिन्होंने श्रीमती सोनिया जी से प्रेम विवाह किया और आदर्श दंपति बने रहे।


महाभारत के आदिपर्व के संभवपर्व में दुष्यंत द्वारा विवाह का प्रस्ताव रखने पर शकुन्तला उनसे अपने पिता ऋषि कण्व की प्रतीक्षा करने के लिए कहती हैं। दुष्यन्त क्षत्रिय हैं और शकुन्तला ब्राह्मण। वैसे यह और बात है कि शास्त्रों ने कन्या की जाति को नकार दिया है। सभी की भांति यह भी उसके गुण आचरण पर निर्भर करता है। दुष्यन्त राजा थे, सम्भवतः विचलित हुए हों कि कहीं ऋषि कण्व विवाह से मना न कर दें। इसका प्रमाण भी मिलता है कि विवाह के बाद राजा दुष्यंत चिंता करते हुए नगर गए कि यह सुनने के बाद तपस्वी महर्षि कण्व क्या करेंगे। इसलिए उन्होंने उनकी अनुपस्थिति में ही विवाह करने के लिए कहा तब शकुंतला ने पिता का भय दिखाया। उस समय दुष्यंत ने गांधर्व विवाह का प्रस्ताव रखा और इसे शास्त्र संस्तुत और धर्म सम्मत बताया। इसका मूल यह श्लोक है:


आत्मनो बंधुरात्मैव गतिरात्मैव चात्मन:

आत्मनो मित्रमात्मैव तथाssत्मा चात्मन: पिता

आत्मनैवात्मनो दानम् कर्तुमर्हसि धर्मतः 


आत्मा ही अपना बंधु है। आत्मा ही अपना आश्रय है। आत्मा ही अपना मित्र है। वही अपना पिता है। अतः स्वयं का धर्मपूर्वक दान किया जा सकता है। आज का प्रेम विवाह शास्त्रीय संदर्भों में ब्राह्म विवाह और गांधर्व विवाह का मिश्रित रूप है। इस संदर्भ को उठाने की आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि मानवीय भावनाएं, घटनाएं हमेशा एक जैसी रही हैं, सनातन रही हैं। बदला केवल समाज और सामाजिक नियम है। इसलिए इन विशुद्ध मानवीय भावनाओं को यथार्थ की अभिव्यक्ति और शक्ति देने के लिए तब धर्मशास्त्र होते थे और उनके नियमों का संदर्भ दिया जाता था। इस श्लोक में भी धर्मतः का प्रयोग हुआ क्योंकि गांधर्व विवाह भी तभी अनुमन्य है जब उसमें धर्म के नियमों का पालन हो अन्यथा उसे पैशाच या राक्षसी विवाह माना जायेगा। आज की परिस्थितियों में धर्म का स्वरूप संविधान ने ले लिया है इसलिए आज ऐसे विवाहों की स्वीकार्यता धर्म के स्थान पर संविधान के नियमों के आलोक में होनी चाहिए। इसलिए धर्मतः के स्थान पर नियमतः शब्द का प्रयोग होना चाहिए।


भारतीय संविधान में, विवाह का अधिकार अनुच्छेद २१ के तहत जीवन के अधिकार का एक हिस्सा माना जाता है, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गरिमा की रक्षा करता है। विवाह के अधिकार में संविधान कुछ मूल बिंदुओं को रेखांकित करता है: (१) व्यक्तिगत स्वतंत्रता: हर वयस्क को अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने का अधिकार है।  (२) गरिमा: विवाह का अधिकार व्यक्ति की गरिमा और स्वायत्तता का एक अभिन्न अंग है। (३) भेदभाव का अभाव: किसी भी व्यक्ति को, चाहे वह लिंग, जाति, धर्म या किसी अन्य आधार पर, विवाह करने से नहीं रोका जा सकता। (४) सुरक्षा: यदि कोई जोड़ा, अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने के बाद, परिवार या समाज से धमकी या उत्पीड़न का सामना करता है, तो उन्हें सुरक्षा प्रदान करना राज्य का कर्तव्य है।


दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक मामले में कहा कि विवाह का अधिकार "मानवीय स्वतंत्रता की घटना" है और इसे माता-पिता या समाज की स्वीकृति की आवश्यकता नहीं है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी कहा कि एक वयस्क का अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने का अधिकार संविधान द्वारा संरक्षित है। शास्त्रों और संविधान द्वारा मानवीय भावनाओं को अपने कोमलतम और मृदुतम स्वरूप में सुरक्षित और संरक्षित करने के लगातार प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन यथार्थ और भौंडे यथार्थ के मध्य संघर्ष ने स्थिति को अभी तक जटिल बनाया हुआ है। हिन्दू और मुस्लिम के बीच प्रेम विवाह हुए तो एक बड़े स्तर पर लव जिहाद जैसा नेटवर्क भी लगातार पकड़ा जा रहा है। जातियों के बीच प्रेम विवाह हो रहे हैं लेकिन जातीय पंचायतें द्वारा सम्मान के लिए हत्या के मामले भी सामने आ रहे हैं।


ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजे

इक आग का दरिया है और डूब के जाना है


इन सभी विसंगतियों में एक आशा की किरण यही है कि लोग फिर भी प्रेम कर रहे हैं, क्षुद्र बंधनों को काटकर विवाह कर रहे हैं, आपसी मनमुटाव और अपेक्षाओं को किनारे रखकर निर्वाह कर रहे हैं और एक ऐसे अंधकारमय समाज में प्रेम का दीपक जलाए हुए हैं जिसके आलोक में संसार की सभी जातियों और संप्रदायों की संकीर्णता देखी और जलाई जा सकती है। कौन नहीं चाहता विश्व नागरिक बनना! आज अपने वैवाहिक वर्षगांठ की फोटो देखकर और साहित्य संगोष्ठी के उन वक्तव्यों के कारण मुझे गाजीपुर की धरती के ही महातपस्वी कण्व ऋषि का वह वाक्य याद आ गया जिसमें उन्होंने अपनी पुत्री शकुन्तला से कहा था,


त्वयाद्य भद्रे रहसि मामनादृत्य य: कृत:

पुंसा सह समायोगों न स धर्मोंपघातक:


स्त्री और पुरुष का प्रेम और धर्म पर आधारित विवाह धर्म का अपघातक नहीं है। इससे धर्म नष्ट नहीं होता। एकमात्र शर्त है प्रेम जिसमें यह देख लेने की क्षमता हो कि लड़का दुष्यंत जैसा धर्मात्मा और श्रेष्ठ पुरुष हो, योग्य हो। प्रेम अंधा नहीं होता। प्रेम सूक्ष्मदर्शी होता है। उसमें सूक्ष्म तत्वों को देखने की सामर्थ्य होती है। प्रेम मूर्ख भी नहीं होता। उसमें शकुंतला जैसे प्रश्न पूछने और अधिकार मांगने की बुद्धि होती है। प्रेम घटित होता है लेकिन प्रेम में पड़ना और प्रेम विवाह करना एक सूझबूझभरा निर्णय होता है। यह आकस्मिक दुर्घटना नहीं है। शकुंतला जैसी सदाचारिणी लड़की ही प्रेम के पवित्र आचार को समझ सकती है। विवाह के बाद लक्ष्य की एकाग्रता, केंद्र में आध्यात्मिकता और पारस्परिक सम्मान ही सब कुछ हैं। शकुन्तला ने अपने पिता कण्व से दो आशीर्वाद मांगे: राजा दुष्यंत सदा धर्म में स्थिर रहें, और कभी भी राज्य से भ्रष्ट न हों। यही वैशेषिक दर्शन में धर्म की परिभाषा है:"यतो अभ्युदय निःश्रेयस" का अर्थ है कि धर्म वह है जो मनुष्य को सांसारिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार की उन्नति और कल्याण की ओर ले जाता है।  


प्रेम और विवाह भी वही सार्थक हैं जिसमें पति और पत्नी एक दूसरे को सांसारिक और आध्यात्मिक दोनों उन्नतियों के मार्ग पर ले जाएं। यह आवश्यक नहीं कि आपने प्रेम के बाद विवाह किया या विवाह के बाद प्रेम, आवश्यक यह है कि आपने अपने सिर में भरे तमाम विकारों को अहंकार के साथ काटकर फेंका या नहीं। फिलहाल जातीय संकीर्णताओं को समाप्त करने के लिए प्रेम और विवाह से अधिक कारगर और कुछ नहीं दिखता। शकुन्तला की बात भी सुन लें जो उन्होंने विस्मृति के शिकार राजा दुष्यंत की सभा में कहा था, पति ही पत्नी के भीतर गर्भरूप से प्रवेश करता है और पुत्ररूप में जन्म लेता है।  पत्नी पति का आधा अंग है। वह धर्म अर्थ और काम का मूल है और संसार सागर से तरने की इच्छा रखने वाले पुरुष के लिए प्रमुख साधन है। पत्नी के साथ पुरुष सुखी और प्रसन्न रहते हैं क्योंकि पत्नी ही घर की लक्ष्मी है। क्रोधित होने पर भी पत्नी के साथ कोई अप्रिय व्यवहार नहीं करना चाहिए।  पत्नी धन, प्रजा, शरीर, लोकयात्रा, धर्म, स्वर्ग, ऋषि और पितर इन सबकी रक्षा करती है। ये वाक्य भी उन सभी लोगों के लिए आलोक स्तंभ हैं जो विवाह, पति और पत्नी को हल्के में लेते हैं या उनका अपमान करने लगते हैं। अंत में मेरे प्रिय कबीर:


प्रेम न बाडी उपजे, प्रेम न हाट बिकाय ।

राजा परजा जेहि रुचे, सीस देहि ले जाय॥


माधव कृष्ण, ३० जुलाई २०२५, गाजीपुर



बुधवार, 16 जुलाई 2025

मोटर न्यूरॉन डिसीज़ एवं मस्कुलर डिस्ट्रॉफी बीमारी को पहचाने फर्जी के डॉक्टर वैद एवं झाड़ फूक से बचें- लव तिवारी

motor neurone disease
स्टेफेन हॉकिंग्स ( फिजिक्स वैज्ञानिक) ऐसा नाम जो एक भयानक बीमारी मोटर न्यूरॉन डिसीज़ से प्रभावित थे। आज इसी तरह के बीमारी से ग्रसित एक छोटी बच्ची जो जिंदगी और मौत के बीच मे सांसे ले रही है उसके परिजनों से मिलना हुआ। बच्ची ने पिछले 14 दिनों से अन्न त्याग रखा है।

मानसी वर्मा
उम्र- 8 वर्ष
माता- श्री मति रिंकी वर्मा
पिता- श्री सन्नी वर्मा
वर्तमान पता- मुक्तिपुरा मरकिंगंज ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश
स्थाई पता - ग्राम रुकुनदिनपुर पोस्ट नोनहरा ग़ाज़ीपुर

Motor Neurone Disease में डॉक्टरों और इंटरनेट के द्वारा प्राप्त जानकारियो से यह पता चलता है कि इस बीमारी में नसे सुख जाती है जिससे ब्लड का संचार शरीर मे न होने के कारण मनुष्य कुछ ही वर्ष में मरणासन अवस्था को प्राप्त कर लेता है। सही मायने में ये कहिये की इस जैसी खतरनाक बीमारियों का उपचार अभी तक मेडिकल साइंस के पास नही है लेकिन विदेशों में इस तरह के भयानक बीमारी पर शोध किये जा रहे है।

इस तरह की एक और भयानक बीमारी जिसका नाम है मस्कुलर डिस्ट्रॉफी है, इस बिमारी के भी लगभग 9 प्रकार है जिसमे DMD Duchene Muscular Dystrophy एवं LGMD Limb Gard Muscular Dystrophy के मरीज ज्यादा संख्या में है। इंटरनेट और पिछले कई वर्षों तक इस बीमारी से ग्रसित होने के कारण इस बीमारी के प्रकार और उसकी कुछ जानकारी हमें भी ज्ञात है। जैसा कि एक आप सब ने सुना होगा कि एक छोटी बच्ची को सोशल मीडिया कंपेन से इकट्ठा करके 16.5 करोड़ की दवा के माध्यम से उपचार हुआ है और वो पहले से बेहतर है। हमें ये आशा है कि भविष्य हमारे लिए एक बेहतर इलाज के साथ सुखद परिणाम वाला होगा।

भारत या अन्य कई देशों के पास इन जैसे खतरनाक बीमारियों से निपटने के कोई उपाय नही है। और रोगी के परिजन कुछ लुटेरों डॉक्टरों के झांसे में आ कर लाखों रुपये खर्च कर देते है। पैसा खर्च के साथ अगर रोगी को आराम मिले तो पैसे का सदुपयोग समझ मे आता है।

बीमारी से प्रभावित रोगी के परिजन के एक सवाल ने मुझे इस पोस्ट को लिखने पर मजबूर कर दिया। उसने मुझसे पूछा कि कोई ऊपरी चक्कर तो नही है। परिजनों को फिर से यह बात समझा रहा हूँ कि यह एक भयानक बीमारी है औऱ फर्जी डॉक्टरों के साथ आप लोगों झाड़ फूक टोना ऊपरी चक्कर के चक्कर मे आकर अपने पैसे का दुरुपयोग न करें।

भारतीय प्राइवेट लुटेरे डॉक्टर के सम्बंध में भी एक बात कहूंगा। वो अच्छी तरह से जानते है कि इस तरह के बड़े बीमारी का उपचार उसके पास या किसी के पास नही फिर भी वो आप को मूर्ख बनाकर पैसा ऐठते है। कोरोना काल मे आप सभी ने प्राइवेट हॉस्पिटल और डॉक्टरों के आतंक का रूप रेखा देख चुके है।।

परिजन क्या करें।- हर परिजन अपने बच्चे को बचाने का अंत समय तक प्रयास करता है। लेकिन प्रयास का परिणाम अगर सही न हो तो प्रयास करना मेरी नजर में सही नही है। रोगी के परिजनों को यह सुझाव है भारत के बड़े सरकारी अस्पतालों के विशेषज्ञ के सम्पर्क में आप रह सकते है जैसे ऐम्म्स दिल्ली, नीमांस बेंगलुरु, सी एम सी वेल्लोर, कोई कि बीमारी के संभावित कोई भी जानकारी और उनके उपचार के सम्बंध की जनकारी आपको यही से पता लग सकती है।।

#लवतिवारी #युवराजपुर #ग़ाज़ीपुर २३२३३२



मंगलवार, 15 जुलाई 2025

इस क़दर आइना से वो डरने लगे छुप छुप करके अब तो संवरने लगे

इस क़दर आइना से वो डरने लगे  

छुप छुप करके अब तो संवरने लगे


चांद निकला सफ़र पे लिये रोशनी 

दाग़ उसका दिखाकर वो हंसने लगे


तोड़ना जोड़ना जिनकी फितरत रही 

टूट कर अब तो ख़ुद ही बिखरने लगे


कैसा अंधों का ये तो शहर हो गया 

खोटे सिक्के धड़ल्ले से चलने लगे


खूब कोशिश से वे तो सुधर ना सके 

 वक्त बदला तो "सागर"सुधरने लगे





नाम पाक नापाक इरादा तेरा पाकिस्तान रे भूल रहा है शायद तेरा बाप है हिन्दुस्तान रे

नाम पाक नापाक इरादा तेरा पाकिस्तान रे।

भूल रहा है शायद तेरा बाप है हिन्दुस्तान रे।।


भेष बदलकर धोखा देना आदत तेरी पुरानी है 

मां का दूध पिया है गर तो करता क्यों नादानी है 

दम है प्यारे पास तुम्हारे आजा रण मैदान रे

भूल रहा है शायद तेरा बाप है हिन्दुस्तान रे


याद करो सन् पैंसठ को लाहौर में घुस कर मारे थे 

चरणों में गिर कर तेरे आका रक्षा करो पुकारे थे

दया लगी दे दिये जीत कर फिर से तुझको दान रे

भूल रहा है शायद तेरा बाप है हिन्दुस्तान रे


सन् एकहत्तर में फिर से जो तुमने की मनमानी 

तेरी ऐसी तैसी कर के हमने याद दिला दी नानी 

बांट दिया दो टुकड़ों में, तोड़ दिया अभिमान रे

भूल रहा है शायद तेरा बाप है हिन्दुस्तान रे


पहल गांव में पहल घिनौना तेरी जाति बताता है 

कुत्ते की दुम सीधी करना हमको भी तो आता है 

अबकी "सागर" रेलेंगे मिट जाये नाम निशान रे

भूल रहा है शायद तेरा बाप है हिन्दुस्तान रे



रोइ रोइ करें बेटी फोन अपनी माई के बछिया तोहार अइली घर में कसाई के

 रोइ, रोइ करें बेटी फोन अपनी माई के

बछिया तोहार अइली घर में कसाई के


भेजलू बनाके, सजाके बहू रानी

सासु, ननदिया बनवली नौकरानी

कहिके भिखारिन  मारें झोंटा झोटियाइके

बछिया तोहार अइली घर में कसाई के


माह  छगो बीतल माई अइले गवनवा

मुहंवा से बोलल नाहीं अबले सजनवा

मारेलं लाते, लबदा रोज खिसियाइके

बछिया तोहार अइली घर में कसाई के


डरे नाहीं आवे नीद सुन महतारी

हमरा बा शक कहियो दिहं जारी, मारी

जनवा बचाल माई हमके बोलवाइके

बछिया तोहार अइली घर में कसाई के


 कुछ नाहीं कहब भले आधा पेट खाइब

भउजी के छाड़ी,  पहिनी दिनवा बिताइब

सागर सनेही "माई रोकिल तबाही के

बछिया तोहार अइली घर में कसाई के




सुसुकि सुसिक रोंवे दुअरा पे बाबुल घरवा में रोवताड़ी माई न रे आज होइगइली बिटिया पराई न रे

सुसुकि सुसिक रोंवे दुअरा पे बाबुल

घरवा में रोवताड़ी माई न रे 

आज होइगइली बिटिया पराई न रे।


रहि रहि धधके करेजवा में अगिया

एक ही कोयल बिन सून भइली बगिया    

ना जाने फिर कब चहकी चिरइया,        

         जाने बहार कब आई न रे

आज होइगइली बिटिया पराई न रे


रखलीं जतन से बड़ा रे जोगा के

बहिंया के पलना में झुलना झुलाके

अंखिया से दूर गइली दिल के दुलरुई

केकरा से दुखवा बताईं न रे

आज होइगइली बिटिया पराई न रे


प्रीतिया के रीतिया ह गजबे निराली

कहीं के कली कहीं फूल बन जाली

"सागर सनेही" नेह दूनों ओर बांटे

दूगो परिवार के मिलाई न रे

आज होइगइली बिटिया पराई न रे।



माई महिमा ह जग में अपार बालमा एके मानेला सगरी संसार बालमा

 माई महिमा ह जग में अपार बालमा

एके मानेला सगरी संसार बालमा


मथवा मुकुट सोहे ललकी चुनरिया

कंगना कलाई सोहे अंगुरी मुनरिया

ऊ त शेरवा पर बाड़ी सवार बालमा

माई महिमा ह जग में अपार बालमा


दुर्गति हारिणी कहीं दुर्गा कहइली

कहीं विन्ध्य वासनी के नाम से पुजइली

भरल रहेला उनके दरबार बालमा

माई महिमा ह जग में अपार बालमा


एक बात अउरी सब कहेला सजनवा

दुख दूर होइ जाला कइके दरशनवा

भरे अनधन से ओकर भंडार बालमा

माई महिमा ह जग में अपार बालमा


सागर सनेही राख मनवा में आश हो

मनसा पुरइहें माई कर विश्वास हो

हई आश विश्वास के आधार बालमा

माई महिमा ह जग में अपार बालमा



पीके शराब संइया देलें रोज गरिया करम हमार फूटल बा ए महतरिया

 पीके शराब संइया देलें रोज गरिया

करम हमार फूटल बा ए महतरिया


टोकला पर कहें पीहीं आपन कमाई

देले नाहीं पइसा हमके तोर बाप माई

बोलबी जो ढेर खइबी लबदा के मरिया

करम हमार फूटल बा ए महतरिया


घर में ना बाटे अब एगो बरतनवा

धीरे धीरे बेंचि दिहलस सगरी गहनवा

अब त बेचे की खातिर मांगे मोरी सारिया

करम हमार फूटल बा ए महतरिया


मना अगर करीं त तूरे लागे बक्सा

कहेला कि मारि के बिगाड़ देइब नक्शा

काटे खातिर लेके दउरे फरुहा,कुदरिया

करम हमार फूटल बा ए महतरिया


बलमा बेदर्दी के कइसे समझाईं

"सागर सनेही" कुछ रउयें बताईं

हमरा के सूझे नाहीं कवनो डहरिया

करम हमार फूटल बा ए महतरिया



शनिवार, 12 जुलाई 2025

आजकल के बच्चे नही समझ सकते एक पिता का प्रेम त्याग तकलीफ़ और समर्पण

ट्रेन में समय गुजारने के लिए बगल में बैठे बुजुर्ग से बात करना शुरु किया मेरी पत्नी नें " आप कहाँ तक जाएंगे दादा जी "

" इलाहाबाद तक । "

उसने मजाक में कहा " कुंभ लगने में तो अभी बहुत टाइम है । "

" वहीं तट पर बेठकर इंतजार करेंगे कुंभ का

बेटी ब्याह लिए हैं , अब तो जीवन में कुंभ नहाना ही रह गया है । "

" अच्छा परिवार में कौन कौन है । "

" कोई नहीं बस बेटी थी पिछले हफ्ते उसका ब्याह कर दिया । "

" अच्छा ! दामाद क्या करता है । "

" उ हमरी बेटी से पियार करता है । " कहते हुए उन्होंने नम आंखें पंखे पर टिका दी ।

थोड़ी देर की चुप्पी के बाद जब नीति ने उनके कंधे पर हाथ रखकर धीरे से कहा " दुख बांटने से कम होता है बाबा" तो आंखों से आँसुओ का सैलाब उमड़ पड़ा उनकी । थोडा शांत होने के बाद उन्होंने बताया " बेटी ने कहा अगर उससे शादी नहीं हुई तो जहर खा लेगी । बिन मां की बच्ची थी उसकी खुशी के लिए सबकुछ जानते हुए भी मैंने हां कह दी और पूरे धूमधाम से शादी की व्यवस्था में जुट गया जो कुछ मेरे पास था सब गहने जेवर आवभगत की तैयारियों में लगा दिया । तभी ऐन शादी के एक दिन पहले समधी पधारे और दहेज की मांग रख दी । जब मैंने मना किया तो बेटी ने कहा आपके बाद तो सब मेरा ही है तो क्यों नहीं अभी दे देते । तो हमने घर और जमीन बेचकर नगद की व्यवस्था कर दी । "
" सबकुछ तो उसका ही था बेबकूफ लडकी, आपको मना करना चाहिए था कह देते आपके मरने के बाद सब बेचकर ले जाए " नीति ने कसमसाते हुए कहा
बुजुर्ग मुस्कुरा उठे नीति के इस तर्क पर " कोई बाप अपने सुख के लिए बेटी के गृहस्थी में क्लेश नहीं चाहता बेटा । "

" हद है मतलब उस लडकी के दिल में आपके लिए जरा भी प्यार नहीं
" नहीं ऐसा नहीं है विदाई के वक्त बहुत रोई थी । "
"और आप "
उन बुजुर्ग ने एक फीकी मुस्कान बिखेरी " हम तो निष्ठुर आदमी है हमारी पत्नी सुधा जब उसको हमरी गोद में छोडकर अर्थी पर लेटी थी

उसकी लाश सामने रखी थी और तब भी हम रोने के बदले चुल्हे के पास बैठकर बेटी के लिए दूध गरम कर रहे थे । "

आजकल के बच्चे नही समझ सकते एक पिता का प्रेम त्याग तकलीफ़ और समर्पण 🙏🏻🙏🏻



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