बुधवार, 29 अप्रैल 2020
जब कोई मरता है तो हम वास्तविकता को जीते हैं - लव तिवारी
आदमी वास्तविक बातो को जान कर भी अंजान बना फिरता है। मै दुसरो की नही जानता मैं अपने बारे में लिख रहा हूँ। जब कोई व्यक्ति विशेष कोई भी हो चाहे वो अपने परिवार का या फिर कोई सेलिब्रिटी जब हम उनके मृत्यु की खबर सुनते है तो कुछ देर तक हम अपने जीवन की वास्तविकता को पहचानते है और फिर वही भाग दौड़ की जिंदगी में भूल जाते है।
अगर व्यक्ति हर दम अपने जीवन के बारे में न सोच कर वास्तविक सच के बारे में सोचे कि मृत्यु अटल है। और एक न एक दिन सबको इस दुनिया को छोड़ कर जाना है । तो वो प्रसिद्धि प्राप्त करने का प्रयास तो करेगा लेकिन उस प्रसिद्धि के साथ अन्याय या किसी मनुष्य जन को पीड़ा देकर धन अर्जित नही करेगा। इस महान आत्मा से प्रभावित हो कर मै इस पोस्ट को लिख रहा हुँ, था साथ यह भी प्रार्थना करता हु की भगवान इस महान आत्मा को अपने यहाँ स्थान दे। मैं जो बात कहना चाहता हूँ उस बात की पुष्टि आप को नीचे लिखे दिए वाक्यों में हो जाएगी कौन है वो जो वास्तविक जीवन के सत्य को छोड़कर कर अन्यायी बनकर कैसे लोगो को प्रताड़ित और प्रभावित करते है।
बड़े उधमी- एक कहानी से रूबरू करता हु जिससे आप को मेरी बातों में स्पष्ठता दिखाई देगी। एक बार की बात है मैं अपने भाई के साथ नोएडा स्थित एक कवि सम्मेलन में गया था। वहाँ एक बूढ़ा उधमी जो गेट पर खड़ा होकर एक संत जन की पुस्तक और भागवत गीता को फ्री में बाट रहा था। मैंने पूछा बाबू जी ये क्या है तो बोला हरि भक्ति और सामाजिक सेवा में अब अपने जीवन को जिंदगी के बचें समय और अर्जित धन को लगाना चाहता हुँ। उस व्यक्ति की इतनी जानकारी तो नही थी लेकिन ये आभास था मुझे कि जीवन मे इतने लोगो को प्रताड़ित कर कर धन को अर्जित किया है। और जब बृद्ध अवस्था आयी तो इसे जीवन के वास्तविक रहस्य का पता चला है। कई मजदूरों को उनके कंपनी के द्वारा बेतन नही दिया जाता है। और कई मजदूरों को उनके कार्य के अनुसार भी बेतन नही दिया जाता है। अगर मजदूर अपने अधिकार की बात करे या बेतन बढ़ाने की बात करे तो उसे अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ जाता है। इन असहायों को प्रताड़ित कर बने उधमी जब बुजुर्ग हो जाते है या उनके जीवन के कुछ दिन ही शेष रह जाते है तो उन्हें अपने पाप के प्रयाश्चित के लिए गीता और कुरान की मुफ्त किताब के साथ कई धर्मिक कार्यो कलाप में सहभागी बनते देखा है
राजनेता- राजनेता सबसे बड़े चोर उच्चके है। इनकी चोरी तो कई गुनी होती है इनका अन्याय को बताने के लिए शब्द कम पड़ जाते है। करोड़ो के घोटालों का गबन कैसे कर जाते है। और कितने मजदूरों और देश की जनता के पैसों को हड़प जाते है । इसका अंदाजा न आप लगा सकते है न हम । अगर इन्हें भी इस बात की जानकारी हो कि हमे भी दिन वही जाना है जहाँ सब जाते है और जीवन की वास्तविकता से अगर रूबरू हो तो इन्हें भी इस तरह के अन्याय को नही करना चाहिए जिसे वो करके गरीबो की आह लेते है।मैंने ऐसे नेता का नाम भी कम सुना है जिसने अपने सम्पतियों का दान किसी गरीब जन की सेवा में किसी ट्रस्ट एवं समुदाय को दान में दिया हो लेकिन कुछ है जो अपने जीवन के अंत समय मे इस तरह के कार्यो को अंजाम देते है।
3- अधिकारी एवम कर्मचारी गण- किसी भी विभाग के अधिकारियों एवं कर्मचारियों को भी मैंने अपने जीवन मे देखा है कि करोड़ो रूपये के गबन के साथ कई जगह जमीन जायजाद और अन्य बेशकीमती चीजो में गरीबो के पैसा का दुरुपयोग करते है और गरीबो की आह लेते है। बाद में ये भी अन्य की तर्ज पर अपने जीवन के अंत दौर में अन्याय द्वारा अर्जित धन के कुछ भाग को गरीब जन के लिए ट्रस्ट या समुदाय को दान कर देते है।
भारत देश मे ये कहावत पूर्ण रूप से सत्य प्रदर्शित होती है। किसी को पीने को पानी नही और कोई दूध से नहा रहा है। यही इस कलयुगी जीवन की वास्तविक सच्चाई है। अगर हर व्यक्ति को इस बात का ज्ञान हो कि जीवन मे सबकुछ छोड़ कर यही चले जाना है और म्रत्यु के उस वास्तविक सत्य को समझे तो कभी न वो अन्याय करेगा न कभी कोई गरीब को सताएगा। अगर ऐसा नही होता तो हमारे भारत की तस्वीर ही कुछ और होती।
मैं गांव हूँ (अपने गाँव की याद में) - अज्ञात
मैं गाँव हूँ - अपने गाँव की याद में
मैं वहीं गाँव हूँ जिसपर ये आरोप है कि यहाँ रहोगे तो भूखे मर जाओगे।मैं वहीं गाँव हूँ जिस पर आरोप है कि यहाँ अशिक्षा रहती है
मैं वहीं गाँव हूँ जिस पर असभ्यता और जाहिल गवाँर का भी आरोप है
हाँ मैं वहीं गाँव हूँ जिस पर आरोप लगाकर मेरे ही बच्चे मुझे छोड़कर दूर बड़े बड़े शहरों में चले गए।जब मेरे बच्चे मुझे छोड़कर जाते हैं मैं रात भर सिसक सिसक कर रोता हूँ ,फिरभी मरा नही।मन में एक आश लिए आज भी निर्निमेष पलकों से बांट जोहता हूँ शायद मेरे बच्चे आ जायँ ,देखने की ललक में सोता भी नहीं हूँ लेकिन हाय!जो जहाँ गया वहीं का हो गया।मैं पूछना चाहता हूँ अपने उन सभी बच्चों से क्या मेरी इस दुर्दशा के जिम्मेदार तुम नहीं हो ?
अरे मैंने तो तुम्हे कमाने के लिए शहर भेजा था और तुम मुझे छोड़ शहर के ही हो गए।मेरा हक कहाँ है?
क्या तुम्हारी कमाई से मुझे घर,मकान,बड़ा स्कूल, कालेज,इन्स्टीट्यूट,अस्पताल,आदि बनाने का अधिकार नहीं है?ये अधिकार मात्र शहर को ही क्यों ? जब सारी कमाई शहर में दे दे रहे हो तो मैं कहाँ जाऊँ?मुझे मेरा हक क्यों नहीं मिलता?
इस कोरोना संकट में सारे मजदूर गाँव भाग रहे हैं,गाड़ी नहीं तो सैकड़ों मील पैदल बीबी बच्चों के साथ चल दिये आखिर क्यों?जो लोग यह कहकर मुझे छोड़ शहर चले गए थे कि गाँव में रहेंगे तो भूख से मर जाएंगे,वो किस आश विस्वास पर पैदल ही गाँव लौटने लगे?मुझे तो लगता है निश्चित रूप से उन्हें ये विस्वास है कि गाँव पहुँच जाएंगे तो जिन्दगी बच जाएगी,भर पेट भोजन मिल जाएगा, परिवार बच जाएगा।सच तो यही है कि गाँव कभी किसी को भूख से नहीं मारता ।हाँ मेरे लाल
आ जाओ मैं तुम्हें भूख से नहीं मरने दूँगा।
आओ मुझे फिर से सजाओ,मेरी गोद में फिर से चौपाल लगाओ,मेरे आंगन में चाक के पहिए घुमाओ,मेरे खेतों में अनाज उगाओ,खलिहानों में बैठकर आल्हा खाओ,खुद भी खाओ दुनिया को खिलाओ,महुआ ,पलास के पत्तों को बीनकर पत्तल बनाओ,गोपाल बनो,मेरे नदी ताल तलैया,बाग,बगीचे गुलजार करो,बच्चू बाबा की पीस पीस कर प्यार भरी गालियाँ,रामजनम काका के उटपटांग डायलाग, पंडिताइन की अपनापन वाली खीज और पिटाई,दशरथ साहू की आटे की मिठाई हजामत और मोची की दुकान,भड़भूजे की सोंधी महक,लईया, चना कचरी,होरहा,बूट,खेसारी सब आज भी तुम्हे पुकार रहे है।
मुझे पता है वो तो आ जाएंगे जिन्हे मुझसे प्यार है लेकिन वो?वो क्यों आएंगे जो शहर की चकाचौंध में विलीन हो गए।वही घर मकान बना लिए ,सारे पर्व, त्यौहार,संस्कार वहीं से करते हैं मुझे बुलाना तो दूर पूछते तक नहीं।लगता अब मेरा उनपर कोई अधिकार ही नहीं बचा?अरे अधिक नहीं तो कम से कम होली दिवाली में ही आ जाते तो दर्द कम होता मेरा।सारे संस्कारों पर तो मेरा अधिकार होता है न ,कम से कम मुण्डन,जनेऊ,शादी,और अन्त्येष्टि तो मेरी गोद में कर लेते। मैं इसलिए नहीं कह रहा हूँ कि यह केवल मेरी इच्छा है,यह मेरी आवश्यकता भी है।मेरे गरीब बच्चे जो रोजी रोटी की तलाश में मुझसे दूर चले जाते हैं उन्हें यहीं रोजगार मिल जाएगा ,फिर कोई महामारी आने पर उन्हें सैकड़ों मील पैदल नहीं भागना पड़ेगा।मैं आत्मनिर्भर बनना चाहता हूँ।मैं अपने बच्चों को शहरों की अपेक्षा उत्तम शिक्षित और संस्कारित कर सकता हूँ,मैं बहुतों को यहीं रोजी रोटी भी दे सकता हूँ।
मैं तनाव भी कम करने का कारगर उपाय हूँ।मैं प्रकृति के गोद में जीने का प्रबन्ध कर सकता हूँ।मैं सब कुछ कर सकता हूँ मेरे लाल!बस तू समय समय पर आया कर मेरे पास,अपने बीबी बच्चों को मेरी गोद में डाल कर निश्चिंत हो जा,दुनिया की कृत्रिमता को त्याग दें।फ्रीज का नहीं घड़े का पानी पी,त्यौहारों समारोहों में पत्तलों में खाने और कुल्हड़ों में पीने की आदत डाल,अपने मोची के जूते,और दर्जी के सिरे कपड़े पर इतराने की आदत डाल,हलवाई की मिठाई,खेतों की हरी सब्जियाँ,फल फूल,गाय का दूध ,बैलों की खेती पर विस्वास रख कभी संकट में नहीं पड़ेगा।हमेशा खुशहाल जिन्दगी चाहता है तो मेरे लाल मेरी गोद में आकर कुछ दिन खेल लिया कर तू भी खुश और मैं भी खुश।
अपने गाँव की याद में
🙏🙏🙏🙏🙏
झूम के जब रिन्दों ने पिला दी-कैफ़ भोपाली
झूम के जब रिन्दों ने पिला दी
शेख़ ने चुपके चुपके दुआ दी
झूम के जब रिन्दों...
एक कमी थी ताज महल में
हमने तेरी तस्वीर लगा दी
झूम के जब रिन्दों..........
आप ने झूठा वादा कर के
आज हमारी उम्र बढ़ा दी
झूम के जब रिन्दों............
तेरी गली में सजदे कर के
हमने इबादतगाह बना दी
झूम के जब रिन्दों.............
-कैफ़ भोपाली
मंगलवार, 28 अप्रैल 2020
चराग आफ़ताब ग़ुम बड़ी हसीन रात थी-सुदर्शन फ़ाकिर
चराग आफ़ताब ग़ुम बड़ी हसीन रात थी,
शबाब की नक़ाब गुम बड़ी हसीन रात थी।
मुझे पिला रहे थे वो कि ख़ुद ही शमा बुझ गई,
गिलास गुम,शराब गुम, बड़ी हसीन रात थी।
चराग आफ़ताब ग़ुम............
लिखा था जिस किताब में कि इश्क़ तो हराम है
हुई वही किताब गुम बड़ी हसीन रात थी।
चराग आफ़ताब ग़ुम...............
लबों से लब जो मिल गए,लबों से लब ही सिल गए
सवाल गुम, जवाब गुम, बड़ी हसींन रात थी।
चराग आफ़ताब ग़ुम..................
वो काग़ज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी- सुदर्शन फ़ाकिर
ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन
वो काग़ज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी
मुहल्ले की सबसे पुरानी निशानी
वो बुढ़िया जिसे बच्चे कहते थे नानी
वो नानी की बातों में परियों का डेरा
वो चेहरे की झुर्रियों में सदियों का फेरा
भुलाये नहीं भूल सकता हैं कोई
वो छोटी सी रातें, वो लंबी कहानी
कड़ी धूंप में अपने घर से निकलना
वो चिड़िया, वो बुलबुल, वो तितली पकड़ना
वो गुड़िया की शादी में लड़ना झगड़ना
वो झूलों से गिरना, वो गिर के संभलना
वो पीतल के छल्लों के प्यारे से तोहफ़े
वो टूटी हुई चूड़ियों की निशानी
कभी रेत के उँचे टीलों पे जाना
घरौंदे बनाना, बनाकर मिटाना
वो मासूम चाहत की तस्वीर अपनी
वो ख्वाबों खिलौनों की जागीर अपनी
ना दुनियाँ का ग़म था, ना रिश्तों के बंधन
उस मोड़ से शुरू करें फिर ये ज़िन्दगी- सुदर्शन फ़ाकिर
उस मोड़ से शुरू करें फिर ये ज़िन्दगी
हर शै जहाँ हसीन थी, हम तुम थे अजनबी
लेकर चले थे हम जिन्हें जन्नत के ख़्वाब थे
फूलों के ख़्वाब थे वो मुहब्बत के ख़्वाब थे
लेकिन कहाँ है इनमें वो पहली सी दिलकशी
रहते थे हम हसीन ख़यालों की भीड़ में
उलझे हुए हैं आज सवालों की भीड़ में
आने लगी है याद वो फ़ुर्सत की हर घड़ी
शायद ये वक़्त हमसे कोई चाल चल गया
रिश्ता वफ़ा का और ही रंगो में ढल गया
अश्कों की चाँदनी से थी बेहतर वो धूप ही
उस मोड़ से शुरू करें फिर ये ज़िन्दगी
हर शै जहाँ हसीन थी, हम तुम थे अजनबी
अश्क - आँसू, शै - वस्तु, पदार्थ, चीज़
धन का मद एवं शक्ति के घमंड के कारण मानव को ब्रह्म शक्ति से दण्डित करना पड़ता है- लव तिवारी
श्री कृष्ण और सुदामा जी बहुत भाव मित्र थे, अक्षय तृतीया के दिन सुदामा जी श्री कृष्ण जी के मेहमान बने कृष्णा जी के साथ भोजन करते बात करते, अचानक एक दिन सुदामा जी ने पूछा कि आप अन्तर्यामी है, परम पूज्य ज्ञानी है, फिर आप ने महाभारत युद्ध क्यों होने दिया, श्री कृष्ण हलके से मुस्कराए और कहा कि हे सखा कौरवों को आत्यंधिक घमंड हो गया था, वो खुद के सामने ईश्वर को नगण्य मानने लगे, साथ में पांडवो को भी अपनी ताकत और ज्ञान का अभिमान हो रहा था, मै बहुत समझता लेकिन सब मद में चूर थे,इस लिए महाभारत युद्ध होना जरूरी था उन सब को अंतर ज्ञान मिला कि वो सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं है।।
अनाचार कोई शक्ति नहीं है विनाश का आरंभ है, अनाचार जब कोई जीव सुरु करता है तब वो खुद अपने पाप ग्रत में जाता है, जीव हिंसा, धन का मद, शक्ति का घमंड, जब जीव में अधिक बढ़ता है, उसे ब्रह्म शक्ति से दण्डित करके ज्ञान देना पड़ता है।।
आज के समय में वायरस ने इंसान को इंसानियत सीखा दी है, तागत और धन का घमंड चूर चूर कर दिया है, देश दुनियां को समझा दिया है, ईश्वर है और उसकी शक्ति को आप पार नहीं पा सकते।।
आप प्यार और घर में रह कर भी ईश्वर को प्राप्त कर सकते है ।।
जय श्री कृष्णा
कोरोना वायरस की तरह चायनीज़ व्यजन भी कर रहा है स्वास्थ पर असर- लव तिवारी
आदिकाल में ऋषियों मुनियों एवं भारतवंशियों द्वारा कन्द मूल फल खाकर भोजन का निर्वहन करते थे। धीरे धीरे व्यवस्था में परिवर्तन हुआ और भोजन के कुछ औऱ उच्चतम व्यवस्था की गई जो जीव और शरीर दोनों के लाभप्रद थी।
गरिमा विक्रांत सिंह हिंदी फिल्म के साथ कई धारवाहिको में अभिनय किया है- लव तिवारी
जन्म दिवस विशेष-
गरिमा विक्रांत सिंह अपने गांव की बहू है एवं प्रथम युवराजपुर की महिला है जिन्होंने भारतीय फिल्म जगत के हिंदी फिल्म एवं कई भारतीय धारावाहिको में काम किया है यह एक ऐसी भारतीय अभिनेत्री हैं, जो कि जीवन के ओके के गुस्ताख दिल में सरस्वती के रूप में अपनी भूमिका के लिए सबसे प्रसिद्ध हैं। वह छोटी बहू सीजन 2, (ज़ी टीवी), फिर सुबह हो जी (ज़ी टीवी), रहे तेरा आशीर्वाद (रंग), चांद के पार चलो इमेजिन, और परिवार (ज़ी टीवी) जैसी शो में दिखाई दीं। उसने राजकुमार संतोषी की फिल्म हल्ला बोल के साथ भी काम किया है एवं इश्क के रंग सफेद में दुलारी ( एक विधवा की माँ) की भूमिका निभाई थी। गरिमा विक्रांत सिंह जी ने निमकी मुखिया में बिहार की महिला की भूमिका निभाई जिन्हें बहुत ही पसंद किया गया । आइये उनके जन्म दिन पर उन्हें जन्म दिवस की बधाई के साथ ईश्वर से यही प्रार्थना करे कि वो जीवन में और भी प्रगति करें तथा अपने साथ हमारे गांव युवराजपुर का नाम रोशन करें।
युवराजपुर ग़ाज़ीपुर उत्तर_प्रदेश २३२३३२
सोमवार, 27 अप्रैल 2020
दूसरों के विचारों को प्रगट करने की अभिव्यक्ति का जरूर सम्मान करें- लव तिवारी
किसी के विचारों से सहमत होना एक बात है और किसी के विचारों को सुनना दूसरी बात। आप भले ही दूसरों के विचारों से सहमत न हों कोई बात नहीं, लेकिन एक बार दूसरों के विचारों को सुन अवश्य लेना चाहिए। ये बात सच है कि हर आदमी आपके स्तर की बात नहीं कर सकता मगर बिना सुने उसका स्तर भी तो नहीं जाना जा सकता है।
विचार किसके हैं ? से ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि विचार कैसे हैं ? मित्र भी अगर बुरे विचारों को रखकर गलत सलाह देता हो तो उस सलाह को त्याग देना ही हितकर है। और शत्रु भी यदि अच्छी सलाह देता है तो वो भी श्रेयस्कर है।
यदि लोगों के बीच आप ही बात करते रहोगे तो आप केवल वही दुहरायेंगे जो आप जानते है परन्तु दूसरों को सुनोगे तो जरूर कुछ नया सीखने को मिलेगा।
जिन्दगी की आधी शिकायतें ऐसे ही दूर हो जाएँ अगर लोग एक दूसरे के बारे में बोलने की वजाय एक दूसरे से बोलना सीख जाएँ। दूसरों के विचारों को प्रगट करने की अभिव्यक्ति का जरूर सम्मान करें।✍🏻🙏🏻
विचार किसके हैं ? से ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि विचार कैसे हैं ? मित्र भी अगर बुरे विचारों को रखकर गलत सलाह देता हो तो उस सलाह को त्याग देना ही हितकर है। और शत्रु भी यदि अच्छी सलाह देता है तो वो भी श्रेयस्कर है।
यदि लोगों के बीच आप ही बात करते रहोगे तो आप केवल वही दुहरायेंगे जो आप जानते है परन्तु दूसरों को सुनोगे तो जरूर कुछ नया सीखने को मिलेगा।
जिन्दगी की आधी शिकायतें ऐसे ही दूर हो जाएँ अगर लोग एक दूसरे के बारे में बोलने की वजाय एक दूसरे से बोलना सीख जाएँ। दूसरों के विचारों को प्रगट करने की अभिव्यक्ति का जरूर सम्मान करें।✍🏻🙏🏻
मन होता है किसी अस्सी साल के बुजुर्ग से घण्टों बातें करूँ - आलोक कुमार (प्रधान जी)
घर के किसी कोने में फेंके हुए ओखरी, जाता, चाकी, खुरपी, हंसुआ देखकर आज भी कदम ठिठक से जाते हैं। इन सब के हथो से अपने पुरखों की स्मृतियों का धूल झाड़ते हुए आज भी महसूस होता है...आजी बाबा के हाथों का स्नेहिल स्पर्श..
और आज तो गजब हुआ, जब बड़ी मम्मी को चाकी चलाता देखकर मै अपने आप को रोक नहीं पाया उसे चलाने से मम्मी हँसने लगी थी...
बड़े पापा और पापा जिस स्कूटर को चलाकर मुझे कभी गाज़ीपुर या अन्य जगहों पर घुमाने ले जाते थे, उस टूट चूके स्कूटर को आज भी धोकर चलाने का मन होता है।
मन होता है किसी अस्सी साल के बुजुर्ग से घण्टों बातें करूँ और अंत में पूछूँ दूँ कि आप जब पहली बार सिनेमा देखने गए थे...तो कौन सी फ़िल्म देखे और कौन सी धोती पहनकर गए थे..?
क्या आजी ने उस धोती का भी लेवा-गुदड़ी बना दिया है..?
लेकिन ये आज तक समझ में नहीं आया कि कैसे पूछ दूँ कि आप रामचरित मानस पढ़कर रोने क्यों लगतें हैं...?
एक बार आजी से कहा कि इसके पहले आपके सारे दांत टूट जाएं मुझे आपसे सीखना है..सारे सोहर,सारे जतसार..हल्दी मटकोर और बियाह के गीत...जीऊतिया और पिंड़ीया की सारी कथाएं और तुलसी बिवाह के सारे रिवाज.।
मईया तो मारने को दौड़ा ली थी, जब एक दिन कह दिया कि "सुनो..इससे पहले की तुम स्वर्ग सिधार जाओ..या तो तुम अपने जैसा कटहल का अंचार लगाना सीखा दो, या फिर मरने से पहले इतना अंचार लगा दो कि तुम्हारे जाने के बाद अंचार कभी खत्म न हो...
लेकिन ये क्या..इधर यादों की खिड़की में अभी भी वो झोला टँगा है,जिसमें पाँच किलो आटा और चार किलो चावल लेकर गांव से इलाहाबाद आया था..
इलाहाबाद आकर पता चला कि मम्मी ने तो बिन बताए आटे में आलू और चावल में दाल दे रखा है..दो पुड़िया मसाला और एक डिब्बे में अंचार भी है..
अंचार तो कई साल पहले ही खत्म हो गया है..लेकिन कई कमरे बदलने के बाद भी उस डिब्बे से अंचार की वो सुगंध कभी खत्म न हुई..न ही कभी डिब्बे को और न ही कभी उस फटे झोले को फेंकने की हिम्मत हुई..
कई बार मैं सोचता हूँ कि ये मुझे कौन सा रोग है..क्या मुझे एक सौ अस्सी साल पहले पैदा होना चाहिए था..?
ये क्यों मुझे पुरानी चीजें एक-एक करके खींचतीं हैं..पुराने गानें, पुरानी फिल्में, पुरानी किताबें और पुराने लोग...पुरानी बातें और पुराने प्रेमी..
क्या मैं पागल हूँ.. ?
दरअसल मैं पागल नहीं हूँ..न ही कोई पुराने गानें, पुरानी फिल्में, पुरानी किताबें और पुराने लोग...और पुरानी चीजें पुरानी होतीं हैं...
दरअसल मनुष्य की आवश्यकताएं रोज नयी होती जातीं हैं। बहुत सारी पुरानी चीजें किसी के लिए नयी होतीं जातीं हैं। और शायद यही डर है कि मैं नए में पुराना और पुराने में नया खोज लेना चाहता हूँ..
मैं चाहता हूँ मैं बन जाऊं पुराने जमाने का नया और नए जमाने का एक पुराना आदमी..🤗🙏
रविवार, 26 अप्रैल 2020
भारत विश्व गुरु एवं कर्म योगी बने जिससे भारत के साथ भारत विश्व का कल्याण कर सके - लव तिवारी
भारत विश्व गुरू-
1-भारत की भौगोलिक संरचना अन्य देशों से भिन्न जितना ऊंचा हिमालय महान उतना गहरा हिन्द महासागर जैसा शील का; जितना पहाड़ उतना मैदान के बीच मानसूनी जलवायु जिसमें चार ऋतुएँ जो आध्यात्मिक चिंतन के अनुकूल .
2- गंगा जी के जल की अन्य नदियों से भिन्नता ,जिस पर पली-बढ़ी मानव इतिहास की सभ्यता तप,त्याग के पुरूषाथ॔ के बल पर उतपन्न नैसर्गिक ज्ञान जो ऋषि-मुनियों के बार बार ज्ञान से सिद्ध होकर वेद,उपनिषद, पुराण, स्मृतियों, टीकाओं आदि सेआधुनिक एक्ट ,नियम ,उपनियम की तरह एक वसुंधरा पर मानव जाति के लिये जीवन जीने का समाधान देता है .
3- भारत की संस्कृति बसुधैव कुटुम्बकम नीति पर है जो पृथ्वी पर सभी जीव- जन्तुओ को देने के साथ मानव को अपने हिस्से का संसाधन लेने की बात करती है ।क्योंकि संसाधन सदा ही आवश्यकता को ही पूरा कर सकते है इक्षाओ को नही प्रकृती के सरंक्षण पर बल ।राजनीतिक सीमाओं से परे प्राकृतिक संरक्षण पर बल.
4- भारत के संविधान में भी आधुनिक शब्दावली के साथ परम्पराओ को अपनाया गया है जो जरूरत के अनुसार तालमेल बैठाने की क्षमता के साथ है .
5- भारत में राजनीति से ज्यादा राजधर्म की बात की गयी है ।
6-पंथ से जादा धर्म (स्वभाव)को महत्व दिया गया है जिसमे धर्मनीति के पुरूषाथ॔ मे धर्म पर आधारित अर्थ की बात है अर्थात कोई मिलावट नही स्वाभाविक वस्तुएं- सेवाए जो उनका गुण है। अर्थात नैतिकता प्रधान अर्थव्यवस्था जो टिकाऊपन लिये हो .
7- सर्वोदय की गरिमामयी अवधारणा को साकार रूप देने वाली लघुकुटीर मध्यम उद्यमों पर कर्म योगी की हर क्षेत्र मे बल
उपरोक्त "सप्तरत्न" पर ही भारत फिर से दुनिया को मार्ग दर्शन कर सकता है इसके लिये जो जहाँ है कर्म योगी बने जिससे भारत विश्व कल्याण कर सके ।
दूरदर्शिता मे ही मानव जाति की सुरक्षा है।
एक मुख्यमंत्री गमछा ओढ़े बीस घंटे काम कर रहा है योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश - लव तिवारी
10:51 pm
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तमाम लक्जरी सेमी लक्जरी गाड़ियां शो रूम के बाहर वाले खुले खेत में खड़ी खड़ी धूल फांक रहीं हैं ।
मजदूर जो दिल्ली नोएडा लखनऊ से पैदल चलकर गोरखपुर पटना दरभंगा बस्ती देवरिया पंहुचे हैं वो पता नहीं वापस अब काम पर जाएंगे या नही!
प्राइवेट कंपनी में काम रहे आधे कर्मचारियों पर तलवार लटक गयी है, पता नहीं उनकी नौकरी बचेगी या नहीं । नॉएडा में
पूरे भारत में अर्थव्यवस्था की जान कहे जाने वाले व्यापारियों के गोदाम में उनकी औकात के अनुसार लाखों करोडों का माल फंसा हुआ है, जिसमे आधा माल एक्सपायर ही होना है।
वो हजारों ठेले वाले वो टन टन टन टन करते हुए आप की जीभ के स्वाद के साथ साथ अपने बच्चों का पेट पालते थे, वो उतना ही कमाते थे की दो जून की रोटी खा सकें उनका काम पूर्णतया बंद है! खाने के लाले हैं ।
भारत की होटल टेक्सटाइल्स और ट्रवेल एजेंसी पूरे रूप से बंद है ......
लाखों मजदूर आज वहां फंसे हैं जहां उनका रोजगार बंद है, सभी रिक्शा वालों के रिक्शे खड़े हैं!
लाख रूपये सेलेरी वाले हाई प्रोफाइल बंदे जो अपना रोना भी नही रो सकते उनको पता ही नहीं है की लाकडाउन खुलने के बाद उनके कार की इएमआई जमा होने भर का पैसा रहेगा या नहीं ।
तमाम वालंटियर अपनी जान का परवाह ना करते हुए खाने बाँट रहे हैं ।
एक मुख्यमंत्री गमछा ओढ़े बीस घंटे काम कर रहा है ....
फिर भी उनको देश से सिस्टम से कोई शिकवा नहीं है ।
देश का हर नागरिक (कुछ को छोड़ कर) कोरोना से लड़ने के लिए हर रूप से तत्पर है ।
वहीं आप के पेट में बस इस बात से दरद उठ रहा है की सरकार ने मंहगाई भत्ता काटने का निर्णय क्यों लिया।
यकीन मानिये आप में और उस अहमद फ़राज़ मे कोई अंतर नही है जो लाकडाउन में मस्जिद मे नमाज़ ना पढ़ पाने के लिए देश से द्रोह ठाने बैठा है ।
मेरी प्यारी दादी श्री मति चमेली तिवारी पत्नी डॉ राम जी तिवारी युवराजपुर ग़ाज़ीपुर - लव तिवारी
जन्म स्थान- मेरी दादी श्री मति चमेली तिवारी का जन्म लगभग 80 दशक पूर्व एशिया के सबसे बड़े ग्राम गहमर के बाघ पट्टी में हुआ था । इसके पिता श्री लाल मोहर उपाध्याय जो एक सरकारी संस्था डाक विभाग में कार्यरत थे। इनके बाबा पण्डित शीतल शरण उपाध्याय जो टाइम्स ऑफ इंडिया के प्रथम सम्पादक थे। और जिन्होंने पण्डित मदन मोहन मालवीव जी को शिक्षा भी दी थी। जिसके कारण मालवीव जी उन्हें अपना गुरु मानते थे। गहमर गांव में दादी का घर भी एक फेमस लैंडमार्क के रूप में जाना जाता है। उनके घर के आधार पर पूरा टोला का नाम बाघ पट्टी बोला जाता है।
स्वर्गीय चंद्रदेव सिंह बी.डी.ओ. साहब युवराजपुर ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश- लव तिवारी
उपखण्ड और ब्लॉक्- ग्रामीण विकास विभाग और पंचायती राज संस्थानों के उद्देश्य के लिए एक जिला उप-विभाजन है। अपने जिले गाजीपुर में कुल 6 तहसील के साथ 16 विकास खंड है:-
बी डी ओ खण्ड विकास अधिकारी- ब्लॉक डेवलपमेंट ऑफिसर ब्लॉक का अधिकारी है। ब्लॉक डेवलपमेंट ऑफिसर्स ब्लॉकों की योजना और विकास से संबंधित सभी कार्यक्रमों क्रियान्यवन की निगरानी करते हैं। जिला के सभी क्षेत्रों में योजनाओं के विकास और कार्यान्वयन के समन्वय मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ) द्वारा प्रदान किया गया है। बीडीओ कार्यालय विकास प्रशासन के साथ-साथ नियामक प्रशासन के लिए सरकार का मुख्य संचालन दल है।
ऐसे ही सुलझे व्यक्तित्व के धनी थे आदरणीय स्वर्गीय बाबा श्री चन्द्रदेव सिंह जी गांव के सभी लोग इन्हें बीडीओ साहब और हम सब बच्चे प्यार से बीडीओ बाबा कहते थे। सामाजिक और
शनिवार, 25 अप्रैल 2020
अच्छे पहलवान व संगीत गायन के साथ भोजन के कई व्यंजनों के शौकीन थे बाबा स्वर्गीय राम बड़ाई सिंह- लव तिवारी
कभी कभी गांव जाना होता है । गांव पहुँचते है गांव में वो रौनक जो पहले थी वो अब देखने को नही मिलती इसका मुख्य कारण है गांव के बड़े बुजुर्ग जिनके साथ हमारा उठना बैठना था वो अब स्वर्गवासी हो गये है। अत्याधुनिक संसाधनों से युक्त इन नई पीढ़ी के युवक की दिनचर्या भी टेलीविशन और मोबाइल तक सीमित रह गई है इसी लिए गांव पहुँचते मुझे गांव अब पहले जैसा नही लगता।
बुजुर्ग किसी भी गांव व क्षेत्र जे शान होते है। इसी कड़ी में आइये बताते एक ऐसे बुजुर्ग की जिनकी सानिध्य में हमनें बचपन के समय को गुजारा और उनके अनुभव से बहुत कुछ सीखा उन सख्श का नाम स्वर्गीय श्री राम बड़ाई सिंह जो एक उत्तर प्रदेश के सरकारी संस्था सिंचाई विभाग में कार्यरत थे । बाबा को पहलवानी के साथ अच्छे व्यजनों को खाने के साथ गाने का भी शौक था।
कुश्ती और पहलवानी- कुश्ती एक प्रचीन खेल है इस खेल का आयोजन हमारे गांव में हर वर्ष दशहरा के मेला पर होता है।- एक अति प्राचीन खेल, कला एवं मनोरंजन का साधन है। यह प्राय: दो व्यक्तियों के बीच होती है जिसमें खिलाड़ी अपने प्रतिद्वंदी को पकड़कर एक विशेष स्थिति में लाने का प्रयत्न करता है। पूरे जिलो के कई गांवों के साथ उत्तर प्रदेश के कई जिलों से नामी गामी पहलवान इस कुश्ती के आयोजन में भाग लेते है। पिछले वर्ष तो हरियाणा क्षेत्र से आई हुई महिला पहलवान ने भाग लेकर कुश्ती के इस आयोजन को और खूबसूरत बना दिया।
बाबा कुश्ती के कुशल पहलवान थे और बचपन मे कई कुश्ती आयोजनों के किस्से हमे सुनते और बताते। मैंने बाबा को कभी कुश्ती लड़ते तो नही देखा लेकिन कुश्ती के आयोजन की मेजबानी करते थे और दो पहलवानो के बीच होने वाली कुश्ती में किसकी जीत और किसकी हार हुई इस बात में निर्णयकारी की भूमिका को बखूबी निभाते देखा। बचपन मे ग्रामीणों को एक विशेष त्यौहार नागपंचमी जिसको गांव के भाषा मे पच्चईया बोला जाता है उस दौरान बाबा हम लोगो को बचपन मे कुछ पहलवानी के दावों जैसे बकुड़िया को सिखाते और बताते थे।
गायन और संगीत के प्रति रुचि- बाबा को संगीत के प्रति बहुत लगाव था गीत और संगीत को बहुत अच्छे सुनते और गाते थे। बाबा को आल्हा के गीतों का बहुत ज्ञान था । जब भी हमको सुनना होता था हम दोनों भाई उनके द्वार पर जाकर कहते बाबा आल्हा थोड़ा सुनाइये आप भी बाबा बहुत चाव से गाते और सुनाते थे।
संगीत प्रति रुचि के संदर्भ में बाबा के द्वार के पास ही भगवान भोले शंकर का मंदिर है । हर सप्ताह के मंगलवार एवं शनिवार को मन्दिर पर भजन और कीर्तन का आयोजन होता था जिसमे हम दोनों भाई भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते थे। बाबा अंत तक भजन कीर्तन का आनंद लेते थे। और सभी लोगों के साथ ही उस भजन सभा को छोड़ते थे बाबा के पसंद - भजन, भोजपुरी निर्गुण , शिव भजन तथा आल्हा रूदल के गाने जो वो खुद गाते थे।
भोजन और व्यजनों के शौकीन - वो पहलवान ही क्या जो खाने का शौकीन न हो। बाबा को भी भोजन बहुत प्रिय था। बाबा दूध से बनी सारे व्यजंन के बहुत पसंद थे । और भोज के द्वारा व्यजनों को खाना और भोज के बीत जाने के बाद भोज का आकलन करने का मज़ा हम लोग बाबा के साथ करते थे। वो आनंद आज के दौर के बड़े होटलो के व्यजनों को खाने के बाद भी नही किया जा सकता , जो आनंद बाबा के साथ उस दौर में हमने अनुभव किया वो हमें और कही नही मिला।
बाबा के साथ दादी भी है नीचे की तस्वीर में बाबा के साथ दादी के स्नेह और दुलार को भी नही भुला जा सकता ।
लेखक- लव तिवारी
युवराजपुर ग़ाज़ीपुर
गुरुवार, 23 अप्रैल 2020
पिजड़े में बंद कर असहाय जन्तुओ के साथ मानव करता है दुर्व्यवहार - लव तिवारी
ये पोस्ट मेरी सोच है , हम लोग करीब एक माह से घरों में बंद हैं, इस बीच हमे घर मे कई सारी मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। जब कि हम अपने घरों मे हैं, अपने अनुसार जी रहे हैं ,खा रहे हैं। जरा उन जीवों के बारे में सोचिये की जो आपके शहरों के बीचों-बीच हमारा मनोरंजन करते हैं
अजायबघर,चिड़ियाघर में बन्द हो के।मुझे ऐसा लगता है कि उनका घर जंगल या कोई नेशनल पार्क है,अगर हम प्रकृति के बनाये नियम को अपने हिसाब से नियंत्रित करने का प्रयास करते हैं।तो किसी न किसी रूप में प्रकृति का गुस्सा भी झेलते है।जितना हक हमारा इस धरती पर है। उतना ही उन जानवरों का भी। हम उनको जानवर समझते हैं, और वो हमें। अपने माथे पर अभिमान का तिलक लगाकर,अपने ताकत के बल बुते, जानवरों को कैद करके उनका प्रदर्शन बंद कर देनी चाहिये।
उनको आज़ाद कर देना चाहिए।
चिड़िया घर बन्द हो जाने चाहिए।।
चलो लौट चलें प्रकृति की ओर।।
लेखक- लव तिवारी
COVID 19 ने बताया जीवन को वास्तविक रूप में कैसे जीये और क्या खाये- लव तिवारी
न कोई दवा और न कोई इलाज। सिर्फ नियमित सादे भोजन के साथ एक एंटीबायोटिक की गोली का सेवन करने से आठ कोरोना संक्रमितों को नया जीवन मिला है। यह घटना उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के कोटवा अस्पताल में रखे गए संक्रमितों को समय पर नाश्ता और खाना देने के साथ पीने के लिए आरओ का पानी दिया जाता है। खाने में इम्युनिटी बढ़ाने का पूरा ख्याल रखा जाता है।
भोजन की क्या थी व्यवस्था-
इस बात से हम सभी परिचित है कि संतो द्वारा बनाये गए भोजन एवं उनके प्रकार पूर्ण रूप से शारीरिक स्वास्थ्य की और विशेष लाभप्रद होते है। इसी आधार पर मरीजो को भोजन की व्यवस्था दी गयी सुबह सात बजे चाय के साथ बिस्किट व कोई नमकीन दी जाती है। इसके बाद नौ बजे उन्हें हल्का नाश्ता जैसे पोहा, सादी पकौड़ी आदि दिया जाता है। दोपहर करीब 12 बजे उन्हें खाना मिलता है। इसमें दाल, रोटी, चावल और सब्जी होती है। जो भारतीय समुदाय के मुख्य व्यंजन है दाल कभी अरहर की होती है तो कभी मिक्स। कभी-कभी राजमा के साथ अन्य उपयोगी एवं पौष्टिक आहार आदि भी दिया जाता है। दोपहर बाद तीन से चार बजे के बीच उन्हें खाने के लिए फल मिलता है। इनमें संतरा, केला के साथ अन्य मौसमी फल होते हैं। पांच बजे के आसपास फिर चाय, बिस्किट और नमकीन दिया जाता है। इसके बाद रात में करीब नौ बजे फिर सादा खाना दाल, रोटी, चावल और सब्जी खाने में मिलता है। पूरे 14 दिनों तक यहीं उनका रुटीन होता है।
बड़े शहरों के नव युवक के साथ एक नए तरह के विशेष आहार की भोजन की नई प्रणाली का विकास हुआ है। जो भारतीय भोजन से पूर्ण रूप से हट कर है। कई लड़कियों को मैंने दिन के भोजन में बर्गर पिज्जा और कई चाइनीज भोजनो के साथ देखा है । और हँसी के पात्र वो सब तब होते है जब ये फ़ास्ट फूड का सेवन कर अपने शरीर को स्लिम एवं पतले करने के चक्कर में लिफ्ट होते हुए भी कई मंजिल सीढ़ी चढ़ कर अपने कार्यालय आफिस में पहुचते है। जैसा कि आप जानते है कोविड-19 में यह स्प्ष्ट हो चुका है भारतीय जन समुदायों में उनके भोजन एवं रहन सहन के आधार पर अन्य देशों की अपेक्षा रोगो से लड़ने की क्षमता बहुत ज्यादा एवं शक्तिशाली है। फिर क्यों हम शरीर के विनाश एवम जीभ के स्वाद के लिए अपने मुख्य भोजन का तिरस्कार कर विदेशी एवं हानिकारक रहित भोजन का सेवन करें। इस महामारी ने हमे सही रूप से जीना एवं पैसा का सदुपयोग करना सिखाया है।
नशे से दूर है भारतीय जनता- कोविड 19 में नशे को पूर्ण रूप से प्रतिबंधित कर दिया है। जहाँ शराब और उनके ठेको को पूर्ण रूप से बंद कर दिया गया है वही सुर्ती बीड़ी सिगरेट के साथ गुटका गांजा एवम चरस जैसे बड़े नशा उपयोगी वस्तुएं भी पूर्ण रुप से प्रतिबंधित हो गयी है। इससे लोगो मे कुछ खलबली तो है लेकिन लोगो के पैसे के साथ शरीर की पूर्ण रूप से रक्षा हो रही है। मेरा मानना है कि सरकार इस महामारी के निपटने के बाद भी इस तरह के दिशा निर्देश को अपनाए जिससे देश के जनता नशा मुक्त होकर पैसे का सदुपयोग एक अच्छे कार्य के प्रति करे।
लेखक- लव तिवारी
ग्राम- युवराजपुर ग़ाज़ीपुर
सम्पर्कसूत्र- +91-9458668566
COVID 19 में दो गुटों में बटी पत्रकारिता और देश के साथ देश की जनता का भी बड़ा नुकसान- लव तिवारी
जिस प्रकार कुछ लोग रवीश कुमार, अभिसार शर्मा और आरफा खानम की पत्रकारिता पसंद करते हैं उसी प्रकार कुछ लोगों को अर्नब गोस्वामी, सुधीर चौधरी की पत्रकारिता पसंद हैं। दरअसल ये लोग पत्रकारिता बिल्कुल भी नहीं कर रहे हैं बल्कि एक - एक समुदाय को खुश करने में लगे हैं। एक पक्ष खबर को इस प्रकार परोसता है कि वह सरकार के खिलाफ जाती है दूसरा खबर इस प्रकार प्रस्तुत करता है कि वह सरकार को संजीवनी देने वाली होती है। आप अगर खुश हो रहे हैं कि उनका वाला असल पत्रकारिता कर रहा है तो आप निहायत खुशफहमी में हैं। एक को सरकार की घोर आलोचना के कारण रेमन मैग्सेसे पुरस्कार मिलता है तो दूसरे को घोर समर्थन करने के कारण रामनाथ गोयनका अवॉर्ड। मुझे पता है आप फिर खुश हो रहे होंगे कि उनके वाले को अच्छी पत्रकारिता की कीमत मिली है। दरअसल उपरोक्त दोनों गुटों की पत्रकारिता एक स्वस्थ पत्रकारिता नहीं है।
कुछ साल पीछे जाएँ तो पहले वाले गुट ने दूसरे वाले गुट को उभरने का खूब मौका दिया। जो कानून व्यवस्था के मामले थे उनके लिए स्थानीय सरकारों पर दबाव बनाकर इंसाफ के लिए प्रयास किए गए होते तो दूसरा वाला गुट पैदा ही न होता। परन्तु हुआ क्या ? एक पार्टी की सरकार बनते ही कुछ लोगों को भारत में डर लगने लगा, असहिष्णुता का प्रपंच रचा गया, अवॉर्ड वापसी की मुहिम चलाई गई। पहले वाले गुट को सरकार का एक भी काम आज तक पसंद नहीं आया। पहले वाले गुट ने अपनी हाँ में हाँ नहीं मिलाने वाले मीडिया संस्थानों को गोदी मीडिया कहा तो उनके समर्थकों को भक्त नामकरण से नवाजना शुरू कर दिया। इन्हीं परिस्थितियों ने दूसरा गुट तैयार किया। दूसरे गुट ने भी अनेक शब्द रचना की। उसकी खबरों में विरोधियों के लिए कामी-वामी जैसे अनगिनत शब्द जगह पाने लगे।
एक बार बैठकर सोचिए कि दोनों की अपनी – अपनी पत्रकारिता से समाज का कितना भला हुआ? जिस पत्रकारिता का काम समाज को जोड़ने और स्वस्थ रखने की होनी चाहिए उसने समाज में एक गहरी खाईं पैदा करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा। आज ऐसा होने लगा है कि एक के लिए जो खबर है दूसरे के लिए खबर बिल्कुल नहीं है। एक के लिए दो साधुओं की लिंचिंग है तो दूसरे कि लिए वो चोर हैं जिनकी हत्या की गई। आज इतने आत्ममुग्ध हो गए हैं कि हमें अपने – अपने गुट की पत्रकारिता अच्छी लगने लगी है। परन्तु इसके कितने दूरगामी विनाशकारी दुष्परिणाम देखने को मिलेंगे इसकी कल्पना का विवेक हम लोगों में शायद ही बचा है।
COVID 19 में गरीबों से सीखो कैसे होती है देश के प्रति रक्षा की समझदारी- लव तिवारी
1:49 pm
COVID 19 में गरीबों से सीखो कैसे होती है देश के प्रति रक्षा की समझदारी- लव तिवारी
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राजनीति एक विशेष पीड़ा देंने वाली बिषय है। जहाँ देश एक तरफ इस महामारी से जूझ रहा है वही देश के कुछ राजनैतिक दल इस संदर्भ में बहुत निराश जनक भाषा शैली का प्रयोग कर देश की सीधी जनता को भड़का रहे है।
गरीबी ने सिखाया है हमे भी कैसे इस देश के साथ खड़ा रहना है। एक जीता जगता उदाहरण हमारे घर के पास एक गरीब शख्स ने हमे बताया। कहा कि हम देश और मोदी जी के साथ है और हम उनके द्वारा बनाये लॉक डाउन का पालन भी तब तक करेंगे जब तक देश सुरक्षित अवस्था मे न पहुच जाये। उस व्यक्ति का मुख व्यवसाय ऑटो चालक है। ऑटो को चलाकर वो अपने व अपने परिवार का पेट पालता है और बच्चो को उच्च शिक्षा के लिए गांव से लाकर दिल्ली के अच्छे स्कूल में पढ़ाने का उच्चकोटि का काम अपने इस कमाई से करता है।
कुछ देर तक देश के इस महामारी पर चर्चा के दौरान उस व्यक्ति ने कहा कि मुझे भी कुछ न कुछ करना पड़ेगा। मुझे पता था फिर भी मैंने पूछा क्यो तो उस व्यक्ति से स्पष्ठ रुप से इस बात की जानकारी दी कि कुल 12000 रुपये हमने बचा कर रखे थे लेकिन इन 30 दिन के बाद केवल 1000 रुपये शेष है। लगता है लॉक डाउन और बढ़ेगा और बढ़ना भी चाहिए लेकिन बच्चों और अपने पेट केलिये कल से हरी सब्जी का व्यवसाय करना पड़ेगा नही तो खायेगे क्या।
आप सभी को अपने इस पोस्ट के माध्यम से सूचित करना चाहता हु कि इस 39 दिनों के लॉक डाउन में केवल एक यही व्यवसाय है जो गरीब जनता कर रही है। जिसके आधार पर सब्जी विक्रेताओं की संख्या बहुत बढ़ गयी है और इनकम बहुत कम न के बराबर। ऐसे में सरकार को इन गरीब जनता के साथ आने की जरूरत है। केवल 5 किलो चावल एवं 5 किलो गेहू ही पर्याप्त नही है किसी भी गरीब जन के लिए, अन्य वस्तुओं के लिए उन्हें थोड़ी मात्रा में धन की जरूरत है। इस विशेष परिस्थिति में सरकार को बैंकों के साथ मिलकर गरीब जनता को कुछ धन इस रूप में दिलवाना चाहिए, जिससे जनता अपने जीवन के आवश्यक जरुरतो को पुरा कर सके एवं अपने जीवन के इस कठिनाई का सामना कर सके।
जय हिंद
लेखक- लव तिवारी
कोरोना जैसे महामारी में भी राजनीति करने बाज नही आ रहे विपक्षी पार्टी के नेता गण- लव तिवारी
आज सुबह सोनिया गांधी का वीडियो संदेश देखा
एंटोनियो माइनो ने पहले लाइन यह कहा कि सरकार सभी लोगों के खाते में ₹ 7500 डाले चलो अच्छी बात है
दूसरी लाइन में यह कहा कि सरकार हमारी कोई सलाह नहीं मान रही है, यदि सरकार हमारी सलाह मानती तब भारत में कोरोना का एक भी केस नहीं हुआ होता है। चलो यह भी मान लिया कि सोनिया गांधी कौन सी वजह से अपने मायके से रूठी हुई है वह अपने मायके में किसी को सलाह नहीं दे रही हैं। वर्ना सोनिया गांधी के सलाह अगर दी होती तो इटली में इतनी मौतें नहीं हुई होती
फिर तीसरी बात एंटोनियो माइनो ने कहा कि सरकार इस देश में नफरत का वायरस फैलाना बंद करें मतलब सोनिया गांधी को जो तबलीगी जमात पर बोला जा रहा है उससे बहुत तकलीफ हो रही है उसके बाद सोनिया गांधी कैमरा बंद कर देती हैं
सोचिये इस धूर्त ईसाई महिला ने एक बात भी निर्दोष सन्यासियों की क्रूर हत्या पर एक शब्द नहीं बोला इस नीच धूर्त महिला ने एक बार भी मौलाना साद की यह कहकर आलोचना नहीं की कि तबलीगी जमात वालों को सामने आना चाहिए सरकारों का सहयोग करना चाहिए फिर भी पता नहीं कैसे आज भी इस देश में कुछ लोग कांग्रेस का समर्थन करते रहते हैं।।क्या उनकी अंतरात्मा धिक्कारती नहीं है👊🏻
ब्राह्मण होकर के ब्राह्मण का आप सभी सम्मान करो-अज्ञात
ब्राह्मण होकर के ब्राह्मण का
आप सभी सम्मान करो
सभी ब्राह्मण एक हमारे
मत उसका नुकसान करो
चाहे ब्राह्मण कोई भी हो
मत उनका अपमान करो
जो ग़रीब हो अपना ब्राह्मण
धन दे कर धनवान करो
हो गरीब ब्राह्मण की बेटी
मिलकर सब कन्या दान करो
अगर ब्राह्मण लड़े चुनाव तो
शत प्रतिशत मतदान करो
हो बीमार कोई भी ब्राह्मण
उसको रक्त का दान करो
बिन घर के कोई हो ब्राह्मण
उसका खड़ा मकान करो
केश अदालत में गर उसका
बिना फीस का काम करो
अगर ब्राह्मण दिखता भूखा
भोजन का इंतजाम करो
अगर ब्राह्मण की हो कोई फॉइल
शीघ्र काम उसका श्री मान करो
ब्राह्मण की अटकी हो राशि
शीघ्र आप भुगतान करो
ब्राह्मण को गर कोई सताये
उसकी आप पहिचान करो
अगर जरूरत हो ब्राह्मण को
घर जाकर श्रमदान करो
अगर मुसीबत में हो कोई ब्राह्मण
फौरन मदद का काम करो
अगर ब्राह्मण दिखे निर्वस्त्र
उसे वस्त्र का दान करो
अगर ब्राह्मण में दिखे उदासी
खुश करने का काम करो
अगर ब्राह्मण घर पर आये
तिलक लगा सम्मान करो
अगर फोन पर बाते करते
पहले जय परशुराम कहो
अपने से हो बड़ा ब्राह्मण
उसको आप प्रणाम करो
हो गरीब ब्राह्मण अगर तो
उसकी मदद तमाम करो
बेटा हो गरीब का पढ़ता
कापी पुस्तक दान करो
ईसवर ने गर तुम्हें नवाजा
नही आप अभिमान करो
बुधवार, 22 अप्रैल 2020
(कोविड 19 )परिस्थिति कैसी भी क्यों न हम मुस्कुराये- लव तिवारी
परिस्थिति कैसी भी क्यों न हो मुस्कराओ ! क्योंकि यह मनुष्य होने की पहली शर्त है। एक पशु कभी भी नहीं मुस्कुरा सकता। रूप कैसा भी क्यों ना हो मुस्कराओ क्योंकि मुस्कान ही आपके चहरे का वास्तविक श्रंगार है।
मुस्कान आपको किसी बहुमूल्य हार के अभाव में भी सुन्दर दिखाएगी। सामने कोई भी क्यों ना हो, मुस्कराओ क्योंकि दुनिया का हर आदमी खिले फूलों और खिले चेहरों को पसंद करता है।
मुस्कराओ ! क्योंकि क्रोध में दिया गया आशीर्वाद भी बुरा लगता है और मुस्कराकर कहे गए बुरे शब्द भी अच्छे लगते हैं।
मुस्कराओ ! क्योंकि परिवार में रिश्ते तभी तक कायम रह पाते हैं जब तक हम एक दूसरे को देख कर मुस्कराते रहते हैं।
मुस्कराओ ! क्योंकि आपकी हँसी किसी की ख़ुशी का कारण बन सकती है। मुस्कराओ ! कहीं आपको देखकर कोई किसी गलत फहमी में न पड़ जायें क्योंकि मुस्कराना जिन्दा होने की पहली शर्त भी है।
राजस्थान के सीकर में क्वॉरेंटाइन के दौरान मजदूर ने की स्कूल की साफ सफाई और पेंटिंग- लव तिवारी
राजस्थान के सीकर में एक गांव के हाईस्कूल में विभिन्न जगहों से आए मजदूरों को क्वॉरेंटाइन में रखा गया था । हम सब जानते है देश ही नही पूरा विश्व इस भयानक महामारी से जुझ रहा है। शहर में रहने वाले गांव के मजदूर को 14 दिन के लिए क्वॉरेंटाइन में रखा गया था
मजदूरों ने देखा कि लम्बे समय से स्कूल की पेंटिंग नहीं हुई है, साफ सफाई नहीं हुई है। तब उन मजदूरों ने गांव के सरपंच के सामने पेंटिंग करने का प्रस्ताव रखा। गांव केे सरपंच ने इन मजदूरों की बात मानकर सारे वस्तुओं की व्यवस्था कर दी जैसे चुना ब्रश पेंट इत्यादि और उन मजदूरों ने अपने क्वॉरेंटाइन के दौरान पूरे स्कूल की शक्लो सूरत बदल दी और इसके लिए उन्होंने कोई पैसा नहीं लिया। बल्कि सरपंच से कहा कि हम यहां पर हैं मुफ्त में खा रहे हैं तब हमारा फर्ज है कि हम कुछ न कुछ इस स्कूल को दें।एक ओर ये मजदूर हैं जिन्हें सरकारी स्कूल की इतनी चिंता है दूसरी ओर वे हैं जो सरकारी धन से ऐश कर रहे हैं और सरकारी स्कूलों को बंद करने की नीतियां बना रहे हैं। कुछ तो सीखो इन मजदूरों से ओ नीति के निर्माताओं
इन मजदूरों को इस बात का पता है जहाँ देश के विभिन्न सरकारी संस्थओं द्वारा देश के बचाव के लिए विभिन्न तरह के प्रयास किये जा रहे है। जैसे पुलिस बल द्वारा अनुसासन एवम लोगो घर में लोगो के रहने के निगरानी का दायित्व के साथ कई अहम कामों को बखूबी अंजाम दिया है । वही दूसरी ओर रोगियों के इलाज के कार्य को करते हुए डॉक्टर नर्स एवं अस्पताल के अन्य कर्मचारियों के योगदान को भी नही भुलाया जा सकता। इन सभी बातों को ध्यान में रखकर इन मजदूरों ने अपने समय का सदुपयोग कर इस सामजिक योगदान को पूर्ण रूप से पूरा किया। हम सभी एवं समाज के अन्य लोगो को भी इन मजदूरों से बहुत कुछ सीखने और समझने की जरूरत है।
लेखक- लव तिवारी
युवराजपुर ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश
मंगलवार, 21 अप्रैल 2020
देश में आपदा से जूझने के लिए जरूरी है सरकारी संस्था- लव तिवारी
जिस दिन से पूरे देश में लॉकडाउन घोषित हुआ उसी दिन से सभी लोग अपने -अपने घरों में रहकर अपना समय काट रहे हैं। हो भी क्यो न केवल एक देश व क्षेत्र इस महामारी से परेशान नही है वहीं दूसरी ओर ऐसे कई गरीब बेसहारा परिवार शहर में निवास करते हैं जो रोज मेहनत मजदूरी कर अपना जीविका चलाते थे और अपने परिवार का पालन करते हैं, लेकिन इन दिनों लॉकडाउन के चलते यह लोग भी घरों में छुप कर बैठे हैं। अब इन परिवारों के पास खाने पीने का इंतजाम खत्म हो चला है। कई लोग दिहाड़ी मजदूरी पर आश्रित है मतलब रोज कामना रोज खाना इस आधार पर कई लोग स बात से चिंतित हैं, लेकिन कोरोना वायरस की इस आपदा में शासन प्रशासन का सहयोग करने के लिए शहर के समाज सेवी संगठन आने लगे हैं। नगर सहित ग्रामीण क्षेत्रों में भी प्रशासन के साथ सामाजिक संस्थाएं अपना दायित्व निभा रही हैं। मालूम हो कि कोरोना वायरस को लेकर पीएम ने पूरे देश को लॉकडाउन घोषित कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील के बाद कई लोग अब खुलकर मदद के लिए आगे आने लगे हैं। कई लोगों ने प्रधानमंत्री राहत कोष में भी दान राशि के चेक भेजे हैं।जहाँ पूरा देश इस आपदा के साथ तैयार है वही सरकारी नौकरी पेशे के लोगो के ऊपर अहम जिम्मेदारी है । अगर सारी नौकरियों प्राइवेट हो जाएगी तो इस तरह के आपदा प्रबंधन में देश के साथ कौन खड़ा होगा।
पुलिस एवं सुरक्षाकर्मी- पुलिस और सुरक्षा कर्मी की लोकडाउन में जिमेवारी और बढ़ गयी है । मामले अगर जल्द कंट्रोल में न हुए देश को भरतीय सेना के लिए मदद के लिए उपयोग में लाना पड़ सकता है।
डॉक्टर नर्स और हॉस्पिटल कर्मचारी- डॉक्टर और नर्स की भूमिका भी बहुत अहम है । डॉक्टर और नर्सेस इस महामारी को रोकने के लिए पूर्ण रूप से समर्पित भाव से मरीज के सेवा में कार्यरत है। अपने और अपने परिवार की परवाह न करते हुए इनके योगदान को देश कभी नही भूलेगा, हो भी क्यो न इन्हें धरती का भगवान कहा जाता है।
बैंक कर्मी- देश की आर्थिक स्थिति के साथ देश मे लॉक डाउन के द्वारान किसी व्यक्ति जन को किसी भी तरह के धन की किल्लत न हो इस आधार पर बैंक कर्मी भी पूर्ण रूप से अपने कार्य को लेकर समर्पित है।
अगर बात करे तो सारे लोग में पूर्ण रूप से सरकारी कर्मचारी एवं उनके क्षेत्र के लोग इस आपदा के साथ देश के साथ समर्पण भाव से खड़े है। किसी भी राजनीतिक पार्टी से हमे एक सवाल पूछना है कि पूरे देश को अगर प्राइवेट सेक्टर के आधार पर कर दिया जाएगा या अधिकतम लोग आगे आने वाले समय मे प्राइवेट कंपनी में ही कार्यरत होंगे तो इस तरह की विकट परिस्थितियों में देश के साथ कौन खड़ा होगा।
लेखक- लव तिवारी
दिनांक- 22- अप्रैल-2020
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