तमाम लक्जरी सेमी लक्जरी गाड़ियां शो रूम के बाहर वाले खुले खेत में खड़ी खड़ी धूल फांक रहीं हैं ।
मजदूर जो दिल्ली नोएडा लखनऊ से पैदल चलकर गोरखपुर पटना दरभंगा बस्ती देवरिया पंहुचे हैं वो पता नहीं वापस अब काम पर जाएंगे या नही!
प्राइवेट कंपनी में काम रहे आधे कर्मचारियों पर तलवार लटक गयी है, पता नहीं उनकी नौकरी बचेगी या नहीं । नॉएडा में
पूरे भारत में अर्थव्यवस्था की जान कहे जाने वाले व्यापारियों के गोदाम में उनकी औकात के अनुसार लाखों करोडों का माल फंसा हुआ है, जिसमे आधा माल एक्सपायर ही होना है।
वो हजारों ठेले वाले वो टन टन टन टन करते हुए आप की जीभ के स्वाद के साथ साथ अपने बच्चों का पेट पालते थे, वो उतना ही कमाते थे की दो जून की रोटी खा सकें उनका काम पूर्णतया बंद है! खाने के लाले हैं ।
भारत की होटल टेक्सटाइल्स और ट्रवेल एजेंसी पूरे रूप से बंद है ......
लाखों मजदूर आज वहां फंसे हैं जहां उनका रोजगार बंद है, सभी रिक्शा वालों के रिक्शे खड़े हैं!
लाख रूपये सेलेरी वाले हाई प्रोफाइल बंदे जो अपना रोना भी नही रो सकते उनको पता ही नहीं है की लाकडाउन खुलने के बाद उनके कार की इएमआई जमा होने भर का पैसा रहेगा या नहीं ।
तमाम वालंटियर अपनी जान का परवाह ना करते हुए खाने बाँट रहे हैं ।
एक मुख्यमंत्री गमछा ओढ़े बीस घंटे काम कर रहा है ....
फिर भी उनको देश से सिस्टम से कोई शिकवा नहीं है ।
देश का हर नागरिक (कुछ को छोड़ कर) कोरोना से लड़ने के लिए हर रूप से तत्पर है ।
वहीं आप के पेट में बस इस बात से दरद उठ रहा है की सरकार ने मंहगाई भत्ता काटने का निर्णय क्यों लिया।
यकीन मानिये आप में और उस अहमद फ़राज़ मे कोई अंतर नही है जो लाकडाउन में मस्जिद मे नमाज़ ना पढ़ पाने के लिए देश से द्रोह ठाने बैठा है ।
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