एक बीघा जमीन
एक मार्मिक घटना जो मन को बहुत कष्ट देती है। बात है एक मजदूर किसान और उस गांव के बड़े ज़मीदार की । गरीब मजदूर किसान पूर्ण रूप से बड़े ज़मीदार पर निर्भर रहता था। उसके खेतो में काम करने के लिए उसके साथ उसका पूरा परिवार समर्पित रहता था। इस गरीब किसान को हमारे उत्तर भारत और पूर्वांचल के क्षेत्र में बनिहार कहा जाता है।
श्रम और दुःख की ये कहानी की शुरुवात खेत सम्बन्धी बातो से शुरू होती हैं। या तो श्रमिक खेत को लगान पर या फिर 10 बीघे के बदले 1 बीघा जमीन लेकर करता था। इस दुःख को आप समझिये की उस दौर में इतने अत्याधुनिक संसाधनों की कमी नही थी। और अत्याधुनिक संसाधनों के आने पर भी ज्यादा प्रभाव मजदूर किसान पर ही पड़ा है। सारे उसके रोजगार छीन गए और उन्हें डर बदर की ठोकर खाने के लिए परदेस के लिए प्रस्थान करना पड़ रहा है।
एक बीघा जमीन मेरी खुद की एक वास्तविक लेखनी है। बहुत ज्यादा तो नही क्यो की जन्म के बाद गरबी बहुत हद तक काबू में आ गयी थी लेकिन अपने बड़े बुजुर्ग और सीमावर्ती गांवों के कुछ बड़े कास्करो के पास गरीब मजदूर इस तरह के काम को अंजाम देते थे। एक बीघा के बदले उन्हें 10 बीघा के खेत की रखवाली उपज कटाई और घर तक अनाज लाने की जिम्मेवारी सब उन्ही पर थी । पहले 10 बीघा जमीन के फसल को पूर्ण रूप से ज़मीदार के घर व्यवस्थित कर अपने एक बीघा के फसल की तरफ और उसके सारे कार्यो को निवारण होता था। इस कार्य को करने में मजदूर का पूरा परिवार लग जाता था। और यही से उनके पतन शिक्षा बेरोजगारी की समस्या का सामना उन्हें आजीवन करना पड़ता था। एक पढ़ी के बाद कई अनगिनत पढिया जमीदारो के मजदूरी की भेंट चढ़ गई।
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