कभी कभी गांव जाना होता है । गांव पहुँचते है गांव में वो रौनक जो पहले थी वो अब देखने को नही मिलती इसका मुख्य कारण है गांव के बड़े बुजुर्ग जिनके साथ हमारा उठना बैठना था वो अब स्वर्गवासी हो गये है। अत्याधुनिक संसाधनों से युक्त इन नई पीढ़ी के युवक की दिनचर्या भी टेलीविशन और मोबाइल तक सीमित रह गई है इसी लिए गांव पहुँचते मुझे गांव अब पहले जैसा नही लगता।
बुजुर्ग किसी भी गांव व क्षेत्र जे शान होते है। इसी कड़ी में आइये बताते एक ऐसे बुजुर्ग की जिनकी सानिध्य में हमनें बचपन के समय को गुजारा और उनके अनुभव से बहुत कुछ सीखा उन सख्श का नाम स्वर्गीय श्री राम बड़ाई सिंह जो एक उत्तर प्रदेश के सरकारी संस्था सिंचाई विभाग में कार्यरत थे । बाबा को पहलवानी के साथ अच्छे व्यजनों को खाने के साथ गाने का भी शौक था।
कुश्ती और पहलवानी- कुश्ती एक प्रचीन खेल है इस खेल का आयोजन हमारे गांव में हर वर्ष दशहरा के मेला पर होता है।- एक अति प्राचीन खेल, कला एवं मनोरंजन का साधन है। यह प्राय: दो व्यक्तियों के बीच होती है जिसमें खिलाड़ी अपने प्रतिद्वंदी को पकड़कर एक विशेष स्थिति में लाने का प्रयत्न करता है। पूरे जिलो के कई गांवों के साथ उत्तर प्रदेश के कई जिलों से नामी गामी पहलवान इस कुश्ती के आयोजन में भाग लेते है। पिछले वर्ष तो हरियाणा क्षेत्र से आई हुई महिला पहलवान ने भाग लेकर कुश्ती के इस आयोजन को और खूबसूरत बना दिया।
बाबा कुश्ती के कुशल पहलवान थे और बचपन मे कई कुश्ती आयोजनों के किस्से हमे सुनते और बताते। मैंने बाबा को कभी कुश्ती लड़ते तो नही देखा लेकिन कुश्ती के आयोजन की मेजबानी करते थे और दो पहलवानो के बीच होने वाली कुश्ती में किसकी जीत और किसकी हार हुई इस बात में निर्णयकारी की भूमिका को बखूबी निभाते देखा। बचपन मे ग्रामीणों को एक विशेष त्यौहार नागपंचमी जिसको गांव के भाषा मे पच्चईया बोला जाता है उस दौरान बाबा हम लोगो को बचपन मे कुछ पहलवानी के दावों जैसे बकुड़िया को सिखाते और बताते थे।
गायन और संगीत के प्रति रुचि- बाबा को संगीत के प्रति बहुत लगाव था गीत और संगीत को बहुत अच्छे सुनते और गाते थे। बाबा को आल्हा के गीतों का बहुत ज्ञान था । जब भी हमको सुनना होता था हम दोनों भाई उनके द्वार पर जाकर कहते बाबा आल्हा थोड़ा सुनाइये आप भी बाबा बहुत चाव से गाते और सुनाते थे।
संगीत प्रति रुचि के संदर्भ में बाबा के द्वार के पास ही भगवान भोले शंकर का मंदिर है । हर सप्ताह के मंगलवार एवं शनिवार को मन्दिर पर भजन और कीर्तन का आयोजन होता था जिसमे हम दोनों भाई भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते थे। बाबा अंत तक भजन कीर्तन का आनंद लेते थे। और सभी लोगों के साथ ही उस भजन सभा को छोड़ते थे बाबा के पसंद - भजन, भोजपुरी निर्गुण , शिव भजन तथा आल्हा रूदल के गाने जो वो खुद गाते थे।
भोजन और व्यजनों के शौकीन - वो पहलवान ही क्या जो खाने का शौकीन न हो। बाबा को भी भोजन बहुत प्रिय था। बाबा दूध से बनी सारे व्यजंन के बहुत पसंद थे । और भोज के द्वारा व्यजनों को खाना और भोज के बीत जाने के बाद भोज का आकलन करने का मज़ा हम लोग बाबा के साथ करते थे। वो आनंद आज के दौर के बड़े होटलो के व्यजनों को खाने के बाद भी नही किया जा सकता , जो आनंद बाबा के साथ उस दौर में हमने अनुभव किया वो हमें और कही नही मिला।
बाबा के साथ दादी भी है नीचे की तस्वीर में बाबा के साथ दादी के स्नेह और दुलार को भी नही भुला जा सकता ।
लेखक- लव तिवारी
युवराजपुर ग़ाज़ीपुर
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