राजनीति एक विशेष पीड़ा देंने वाली बिषय है। जहाँ देश एक तरफ इस महामारी से जूझ रहा है वही देश के कुछ राजनैतिक दल इस संदर्भ में बहुत निराश जनक भाषा शैली का प्रयोग कर देश की सीधी जनता को भड़का रहे है।
गरीबी ने सिखाया है हमे भी कैसे इस देश के साथ खड़ा रहना है। एक जीता जगता उदाहरण हमारे घर के पास एक गरीब शख्स ने हमे बताया। कहा कि हम देश और मोदी जी के साथ है और हम उनके द्वारा बनाये लॉक डाउन का पालन भी तब तक करेंगे जब तक देश सुरक्षित अवस्था मे न पहुच जाये। उस व्यक्ति का मुख व्यवसाय ऑटो चालक है। ऑटो को चलाकर वो अपने व अपने परिवार का पेट पालता है और बच्चो को उच्च शिक्षा के लिए गांव से लाकर दिल्ली के अच्छे स्कूल में पढ़ाने का उच्चकोटि का काम अपने इस कमाई से करता है।
कुछ देर तक देश के इस महामारी पर चर्चा के दौरान उस व्यक्ति ने कहा कि मुझे भी कुछ न कुछ करना पड़ेगा। मुझे पता था फिर भी मैंने पूछा क्यो तो उस व्यक्ति से स्पष्ठ रुप से इस बात की जानकारी दी कि कुल 12000 रुपये हमने बचा कर रखे थे लेकिन इन 30 दिन के बाद केवल 1000 रुपये शेष है। लगता है लॉक डाउन और बढ़ेगा और बढ़ना भी चाहिए लेकिन बच्चों और अपने पेट केलिये कल से हरी सब्जी का व्यवसाय करना पड़ेगा नही तो खायेगे क्या।
आप सभी को अपने इस पोस्ट के माध्यम से सूचित करना चाहता हु कि इस 39 दिनों के लॉक डाउन में केवल एक यही व्यवसाय है जो गरीब जनता कर रही है। जिसके आधार पर सब्जी विक्रेताओं की संख्या बहुत बढ़ गयी है और इनकम बहुत कम न के बराबर। ऐसे में सरकार को इन गरीब जनता के साथ आने की जरूरत है। केवल 5 किलो चावल एवं 5 किलो गेहू ही पर्याप्त नही है किसी भी गरीब जन के लिए, अन्य वस्तुओं के लिए उन्हें थोड़ी मात्रा में धन की जरूरत है। इस विशेष परिस्थिति में सरकार को बैंकों के साथ मिलकर गरीब जनता को कुछ धन इस रूप में दिलवाना चाहिए, जिससे जनता अपने जीवन के आवश्यक जरुरतो को पुरा कर सके एवं अपने जीवन के इस कठिनाई का सामना कर सके।
जय हिंद
लेखक- लव तिवारी
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