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2025 ~ Lav Tiwari ( लव तिवारी )

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बुधवार, 12 फ़रवरी 2025

ये मोहब्बत बड़े बर्बादी की रस्म होती है।- रचना लव तिवारी

अपने दिल और दिमाग पर काबू पालो
ये मोहब्बत बड़े बर्बादी की रस्म होती है।

उसके लाखों दीवाने इस जमी पर।
ये बिरानिया हम जैसो को नसीब होती है।।

बात अक्सर नही समझ आती है नवजवानी में
नए परिन्दों की तो बस दुनिया अजीब होती है।

जफ़ा दर्द आँसू प्यार में शिकस्त पाने वाले की
कितना भी चाहे, उनकी दुनिया बदनसीब होती है।

कुछ आशिक होते है जिनको मिली उनकी मोहब्बत
बस कुछ है जिनकी दुनिया में खुशनसीब होती है।

गुरुवार, 16 जनवरी 2025

चुप लोग ही तो बोलते हैं जनाब जोर से भर देते हैं चुप रहकर भी दिमाग शोर से- डाॅ एम डी सिंह

चुप लोग ही तो बोलते हैं जनाब जोर से
भर देते हैं चुप रहकर भी दिमाग शोर से

खुशियां बटोर कर वे रख लेते हैं चुपचाप
गुस्सा भी तह कर रखते रहते हैं भोर से

सुनता है भला सोचिए कौन आपके सिवा
जब बोलती हैं कभी हड्डियां पोर-पोर से

महज आंसू नहीं दोस्त टपकते हैं हर घड़ी
कभी रक्त भी उबलते हैं आंखों की कोर से

मत सोचिए सिर्फ बर्फ ही जमेगी पहाड़ पर
निकलेगी फूट आग भी चोटी की ओर से

डाॅ एम डी सिंह


रजाइयों में बस्ती रचना डाॅ एम डी सिंह

रजाइयों में बस्ती :

गांव घर शहर गली खेत सड़क परती
कोहरे की धुंध में डूबी है धरती

चांद भी दिखा नहीं
सूर्य भी उगा नहीं
है खड़ा श्वेत पटल
किन्तु कुछ लिखा नहीं

नाव नदी नहर रेत सब एक करती
कोहरे की धुंध में डूबी है धरती

हाथों को हाथ ना
पैरों को साथ ना
दिखता बस कोहरा
करता कुछ बात ना

रेल बस वायुयान की खत्म हुई हस्ती
कोहरे की धुंध में डूबी है धरती

चाय की चुस्की में
मंद मधुर मुस्की में
लगी हुई आग है
हर ओर खुश्की में

जेबों में मुट्ठी रजाइयों में बस्ती
कोहरे की धुंध में डूबी है धरती

डाॅ एम डी सिंह।



सच्चाई महाकुंभ प्रयागराज उत्तर प्रदेश लेखक डॉ एम डी सिंह

सच्चाई :

गंगा जमुना सरस्वती को घाट तोड़ डुबा रही
प्रयागराज नहाने आस्था की बाढ़ आ रही

अमृतोत्सव के प्रांगण में भव्यता की चढ़ नाव
सनातन के महाकुंभ में आ दुनिया समा रही

हाथी घोड़ा ऊंट पालकी पर सवार निर्वस्त्र
नागा साधु देख सारी दुनिया चकपका रही

वैसे तो पकी ही थी दादी, तप उम्र की आंच
कल्पवास की शीताग्नि, उसको और पका रही

महाकुंभ से मोक्ष की सरकार राह आसान
मेला में अत्याधुनिक सुविधाओं से बना रही

खों-खों करते दद्दू की बारहमासी दिनचर्या
महाकुंभ पर आकर संगम में डुबकी लगा रही

साधु संतों की नगरी बसी त्रिवेणी के घाट
अद्वितीय महाकुंभ में अद्भुत दृश्य दिखा रही

दुनिया है हतप्रभ देख यहां सबको होते सम
दृग खोल यह अंतर का सारा क्लेश मिटा रही

तुलसी लिखते हैं कलयुग में साधु होंगे भूप
महाकुंभ आ देखिए सच्चाई खिलखिला रही

डाॅ एम डी सिंह


जाड़ में हाड़ कांपता- रचना कुमार अजय सिंह गीतकार एकवना घाट बड़हरा भोजपुर बिहार

✍️ जाड़ में हाड़ कांपता ✍️

जाड़ में हाड़ कांपत बा भईया,सुत रजाई तान के
बीना काम के मत निकलिह,रक्षा कर तु जान के

बेधत बड़ुऐ जाड़ा भीतरी ले,छेदत बा शरीर के
गरम कपड़ा चादर कोट,रहिह तु सुटर पहिर के
आफत बिपत आइल बा,कुछ दिन चलऽ मान के
बीना काम के मत निकलिह,रक्षा कर तु जान के

ई सर्दी रही भर जनवरी,बचके रहिह लोग बबुआ
खतम भइल खरवास अब,अइहन जइहन अगुआ
सुरक्षीत तु रहबऽ तबही बंटबऽ,दोसरा के ज्ञान के
बीना काम के मत निकलिह,रक्षा कर तु जान के

छुटत नईखे जब धऽ लेता,कसके जेकरा खांसी
गलती से भी मत खाइब लोग,कबहु खाना बासी
अजय चाह पिअत बाड़न, गिलोय डालल छान के
बीना काम के मत निकलिह,रक्षा कर तु जान के

कुमार अजय सिंह,गीतकार
एकवना घाट,बड़हरा भोजपुर
बिहार 802311
मोबाइल न०:-9934483155


महाकुम्भ तीर्थराज प्रयाग पावन संगम मकर संक्रांति लेखक- श्री राजेश कुमार सिंह श्रेयस लखनऊ उत्तर प्रदेश


धन्य भूमि भारत जस देशा l
महिमा गुन अति रूचिर विशेषा ll
एहि ठहि गड़े धर्म ध्वज दंडा l
पावन सलिल मातु बह गंगा ll
रवितनया वागेश्वरी बेनी l
गंग संग मिल भई तिरवेनी ll
हिहां देव मुनि आयहु नर ज्ञानी l
तीर्थराज प्रयाग शुभ मानी ll
श्रेयस -महाकुम्भ गुण गावा l
बार बार एहि महि सिर नावा ll

©® राजेश 'श्रेयस'
वर्ष 1987 का नवंबर माह l धरती थी तत्कालीन इलाहाबाद यानि वर्तमान प्रयागराज l तीर्थराज प्रयागराज की पावन नगरी स्थित मोतीलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज इलाहाबाद में फार्मेसी संकाय मैं मेरा दाखिला हो चुका था l प्रयाग के पौराणिक एवं पुरातन इतिहास से मैं पूरी तरह से भिज्ञ था, क्योंकि मेरे मन के अंदर आस्था की सरिता बाल्यकाल से ही प्रवाहित हो रही थी l इस कारण तीर्थराज प्रयाग से मेरा प्रेम बढ़ता ही गया l सिविल लाइन स्थित हनुमान जी के दर्शन करने की उत्कंठा बराबर बनी रहती थी l प्रत्येक रविवार और कभी-कभी तो सप्ताह में दो-तीन बार हम सभी मित्र मंदिर जाया करते थे l

एक साल कैसे बीता कुछ पता नहीं चला l वर्ष 1988 समाप्ति की तरफ था l आगामी महाकुंभ मेला की घोषणा हो चुकी थी l
हम पांच मित्र हुआ करते थे l मैं, श्री जितेंद्र सिंह, श्री मारकंडेय सिंह श्री रमेश दुबे एवं श्री राम विनय राय जो अलग-अलग जनपदों एवं शहरों के थे, लेकिन हम पांचो में अगाध प्रेम था l शुरुआती दौर में हम सभी एक साथ पिक्चर देखने जाया करते थे l लेकिन महाकुंभ की शुरुआत से पहले ही गंगा स्नान करने की धुन हम पांचो मित्रों में आयी, वह रुकी नही l अब तो हम अक्सर गंगा स्नान करने जाया करते थे l हंसी मजाक मनो विनोद करते हुए हम पांचो संगम चले जाते थे l संगम की पावन त्रिवेणी में स्थान करते हैं l इसकी रज को माथे लगाते और पुन:अपने हॉस्टल वापस चले आते थे l गांव नगर से आने वाले परिवारजन को कुम्भ के दौरान ठहराना, उनका आव भगत करना, हमें अच्छा लगता था और अच्छा भी क्यों न लगे, क्योंकि ऐसा ही संस्कार परिवार द्वारा हमारे मन में विरोपित किए गए थे l
पूर्व कुंभ मेले में हुई कई हादसों का जिक्र बचपन में मेरे पिताजी क्या करते थे l जिसके चलते मन में काफी भय रहता था l
1988- 89 के कुंभ में पूर्व की इस कहानी से अच्छी व्यवस्था देखने को मिली l इसके बाद एक के बाद एक कुंभ स्नान आया और स्थिति में काफी सुधार होता गया l

2018-19 का अर्ध कुंभ, एक नये सूर्य का आगाज हुआ l ऐतिहासिक महाकुम्भ का भव्य व्यवस्था के संग आगाज हुआ l पूरा संगम क्षेत्र सुरम्य शहर के रूप में तब्दील हो गया l इस बार मैं पुनः सपत्निक पहुंचा l गंगा स्नान पर्व को बड़े ही आस्तिक ढंग और बेहद आस्था भाव से मनाया l व्यवस्था देखने लायक था l इस बार मुझे ठहरने के लिए एक टेंट हाउस प्राप्त हो गया था और ऐसे आवास में मेरे ठहरने का यह मेरा पहला अनुभव तीर्थ क्षेत्र कुंभ दूधिया लाइट से जगमगा रहा था l
सारी व्यवस्था चाक चौबंद थी l चिकित्सा व्यवस्था से लेकर सफाई व्यवस्था की तक देखने लायक थी l एक रात हम पति-पत्नी ने यहां की सफाई व्यवस्था की टेस्टिंग करने का मन बनाया l बस मन में यही आया कि इतनी सफाई व्यवस्था आखिर है क्यों? हमने एक लपेटे हुए कागज का गुम्मा सड़क के ऊपर डाल दिया l रात के 1:00 रहे थे और हम लोग दूर से देखना चाहते थे कि इस कागज के टुकड़े का होता क्या है l महज 4 से 5 मिनट समय बीता होगा कि एक सफाई कर्मी अपने टोकरी के साथ आया और इस कागज के गोल लपेटे को उठाकर आगे बढ़ गया l हमें यहां की सफाई व्यवस्था दुरुस्त होने का प्रमाण मिल गया था l
दिन प्रतिदिन समय बदलता गया और आस्था का यह महापर्व अपने नए कलेवर के साथ अंगड़ाइयां लेता गया और आज का महाकुंभ एक नवीन स्वरूप को प्राप्त कर रहा है l जैसा कि मुझे ज्ञात हो रहा है आज से एक विशाल महा जन सैलाब प्रयागराज की पुण्य भूमि पर त्रिवेणी में स्नान करने के लिए पहुंच रहा है l अनेक दिशाओं से आने वाले तीर्थयात्रियों का संगम, मां गंगा जमुना सरस्वती के संगम पर हो रहा है l जो स्वयं में एक नवीन इतिहास रच रहा है और एक नवीन स्वरूप को प्राप्त कर रहा था l

आज यह अवगत होते हुए बड़ा हर्ष हो रहा है की आस्था का विश्व प्रसिद्ध मेला विश्व के आधुनिकतम समारोहो में से एक हो गया l श्रद्धालुओं की इतनी बड़ी भीड़ शायद ही कभी किसी स्थान पर एक साथ जुटी होगी l यह सारी महिमा श्री राम जी की है l ऐसा मेरा मानना है l

त्रेता में भगवान राम वन गमन के समय इसी प्रयाग की धरती पर आए थे l उनका इस धरती पर आना, निषाद राज से उनकी मुलाकात l महर्षि भारद्वाज के आश्रम में ठहरना,यह सब पुनर्जवित जीवंत हो रहा है -
मानस में गोस्वामी जी तीर्थराज प्रयाग के विषय में कैसे बखान करते हैं -
तब गनपति सिव सुमिरि प्रभु नाइ सुरसरिहि माथ।
सखा अनुज सिय सहित बन गवनु कीन्ह रघुनाथ॥
तेहि दिन भयउ बिटप तर बासू। लखन सखाँ सब कीन्ह सुपासू l
प्रात प्रातकृत करि रघुराई। तीरथराजु दीख प्रभु जाई॥
सचिव सत्य श्रद्धा प्रिय नारी। माधव सरिस मीतु हितकारी॥
चारि पदारथ भरा भँडारू।पुन्य प्रदेस देस अति चारू॥
छेत्रु अगम गढ़ु गाढ़ सुहावा। सपनेहुँ नहिं प्रतिपच्छिन्ह पावा॥
सेन सकल तीरथ बर बीरा। कलुष अनीक दलन रनधीरा॥
संगमु सिंहासनु सुठि सोहा। छत्रु अखयबटु मुनि मनु मोहा॥चवँर जमुन अरु गंग तरंगा। देखि होहिं दुख दारिद भंगा॥
दो० - सेवहिं सुकृती साधु सुचि पावहिं सब मनकाम।
बंदी बेद पुरान गन कहहिं बिमल गुन ग्राम॥
को कहि सकइ प्रयाग प्रभाऊ। कलुष पुंज कुंजर मृगराऊ॥
अस तीरथपति देखि सुहावा। सुख सागर रघुबर सुखु पावा॥कहि सिय लखनहि सखहि सुनाई। श्री मुख तीरथराज बड़ाई॥करि प्रनामु देखत बन बागा। कहत महातम अति अनुरागा॥
एहि बिधि आइ बिलोकी बेनी। सुमिरत सकल सुमंगल देनी॥मुदित नहाइ कीन्हि सिव सेवा। पूजि जथाबिधि तीरथ देवा॥

आज मकर संक्रांति का पावन पर्व है l इसकी महिमा का भी वर्णन गोस्वामी तुलसीदास कृत श्री राम चरित मानस में आया है-

माघ मकरगत रबि जब होई।
तीरथपतिहिं आव सब कोई।।
पूजहिं माधव पद जलजाता।
परसि अखय बटु हरषहिं गाता।।
सुनि समुझहिं जन मुदित मन, मज्जहिं अति अनुराग।
लहहिं चारि फल अछत तनु, साधु समाज प्रयाग ।।

माँ गंगा और अमृत धार माँ यमुना के साथ, अदृश्य सरस्वती के पावन संगम, समुद्र मन्थन से निकले अमृत से सिंचित क्षेत्र तीर्थराज प्रयाग में,पौष पूर्णिमा, एवं मकर संक्रांति स्नान पर्व के साथ महाकुंभ का आगाज हो गया है l
इस भव्य दिव्य महाकुंभ का पवन त्रिवेदी तट पर दर्शन करें l
प्रयागराज के त्रिवेणी तीर्थ से विकासोन्नमुख एवं समृद्ध भारत भारत के आध्यात्मिक,पौराणिक भव्य एवं विराट स्वरूप दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त करें l

राजेश कुमार सिंह 'श्रेयस'
लखनऊ, उप्र, भारत
14-01-2025


साहित्यिक जीवन परिचय श्री राजेश कुमार सिंह श्रेयस कवि लेखक समीक्षक लखनऊ उत्तर प्रदेश

राजेश कुमार सिंह "श्रेयस"
कवि, लेखक, समीक्षक
जन्मतिथि : 14 अप्रैल 1967
शैक्षिक योग्यता : बी0 एस0 सी0 ( बायो0) श्री मु. म. टा. स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बलिया, उप्र, फ़ार्मसी
एम0 एल0 एन0 मेडिकल कॉलेज, इलाहाबाद ( वर्तमान प्रयागराज )
संप्रति : चीफ फार्मेसिस्ट, चिकित्सा एवं स्वास्थ सेवाएं,लखनऊ, उप्र l
मोबाइल : 9415254888
ई मेल : rkstatetcpharma@gmail.com
वर्तमान निवास : लखनऊ, उप्र
मूल जन्म स्थान : संवरा बलिया, उप्र l
मूल लेखन विधा : काव्य ,गद्य ,लघु कहानिया एवं समीक्षा
प्रकाशित ग्रन्थ :
यश चाँदनी, ( काव्य ) मानस में गुरु गंगा महिमा ( गद्य )
स्नेह वंदन सुविचार माला ,( गद्य )
काव्य कथा वीथिका, ( काव्य संग्रह )
कविता के फूल, ( काव्य संग्रह ) गद्य ध्रुपद, (गद्य -लघुकथाएं )
तुमसे क्या छुपाना ( गद्य -उपन्यास ), मेरी अयोध्या -मेरे राम ( गद्य ),
चाक सी नाचती ज़िन्दगी ( गद्य -उपन्यास )
मेरी अयोध्या -मेरे राम ( गद्य )
रिश्ते की डोर, संकलन ( डिजिटल ई बुक )
वीरवर लक्ष्मण मानस के मौन योद्धा

शीघ्र प्रकाश्य कृति : कविता - कहानी , डूबता सूरज अचानक उग गया

भारत के इक्कीस परमवीर (साझा संकलन), जिज्ञासा प्रकाशन, गाजियाबाद l

भारत के भारत रत्न,(साझा संकलन), निकष प्रकाशन, दिल्ली l
भारत के अशोक चक्र विजेता ( साझा संकलन ) सर्वभाषा प्रकाशन नई दिल्ली l

समीक्षा- आलेख : 1- "रामदेव धुरंधर की रचनाधर्मिता" में
      आलेख शीर्षक "रामदेव धुरंधर का    
                                लघुकथा  साहित्य, साहित्यभूमि प्रकाशन, नई दिल्ली l

                              2- "भारतीय संस्कृति के उन्नयन में प्रवासी साहित्यकार ,में आलेख शीर्षक रामदेव धुरंधर द्वारा रचित ऐतिहासिक उपन्यास पथरीला सोना (खंड दो ) के कुछ अंशो की भावात्मक समीक्षा, वान्या पब्लिकेशन, कानपुर l (2021)

 3 - सम्पादकीय पुस्तक "रामदेव धुरंधर कृत : पथरीला सोना में भारतीय मजदूरों और उनकी संतानों का यथार्थ चित्रण " में आलेख शीर्षक "पथरीला सोना : भारत से मारीशस पहुचे मजदूरों और उनकी संतानों के जीवन से जुडा अमिट दस्तावेज "  वान्या पब्लिकेशन, कानपुर l(2022)

 4 श्री रामदेव धुरंधर मारीशस के समर्थ साहित्यकार, वान्या पब्लिकेशन, कानपुर l( 2023)

5  सुरेश चंद्र शुक्ल की रचना धर्मिता संपादित पुस्तक में आलेख, भूमि प्रकाशन नई दिल्ली  l( 2023)

संपादकीय पुस्तक "रामदेव की रचना धर्मिता " की वृहद् समीक्षा, (पत्र पत्रिका - विश्व विधायक एवं समीक्षा पत्रिका, अट्टहास पत्रिका )

लघुकथा :        हांडी वाला रसगुल्ला,पाण्डव टीम, टिटिहरी के  बच्चे,दर्द जो मौन है..
पुस्तक समीक्षा :
श्री धनराज माली "राही " प्रसिद्ध कहानीकार एवं ब्लॉगर "( सिरोही, राजस्थान ) के कहानी संग्रह की "लौट आना मुसाफिर " की  प्रतिनिधि कहानी लौट आना मुसाफिर की समीक्षा l 

श्री राजेश श्रीवास्तव  (निदेशक, रामायण केंद्र, भोपाल एवं मुख्य कार्यपालक अधिकारी, म.प्र मेला प्राधिकरण ) की पुस्तक "रामअयन" की समीक्षा l

मारीशस के हिंदी साहित्यकार श्री प्रहलाद रामशरण के आलेख  रामदेव धुरंधर : मारीशस हिंदी साहित्य के उद्भट ग्रन्थ " की समीक्षा l

डा. आशीष कंधवे अध्यक्ष, ( अध्यक्ष विश्व हिंदी परिषद, संपादक, गगनांचल, भारतीय सांस्कृतिक, सम्बन्ध परिषद विदेश मंत्रालय) की कविता "मै त्रिलोचन हो गया हुँ, की समीक्षा l

श्री वीरेंद्र कुमार सिंह "वीरेंद्र परमार " जी ( बरिष्ठ साहित्यकार, पूर्वोत्तर साहित्य ) की कृति "हिंदी सेवी संस्था कोश" की समीक्षा l

श्री खगेन्द्र गिरि "कोपिला " बरिष्ठ साहित्यकार (नेपाल) द्वारा लिखी पुस्तक  "नियात्रा ऋतु दर्शन "  जिसकी समलोचना की समीक्षा नेपाल के समीक्षक लेखक हीरा बहादुर खत्री जी ने की l  श्री खत्री की वृहद् समीक्षा पुस्तक की समीक्षा l

श्री राम किशोर उपाध्याय जी ( प्रख्यात साहित्यकार, अध्यक्ष युवा साहित्य उत्कर्ष मंच, नई दिल्ली एवं पूर्व आई आर एस अधिकारी )  की पुस्तक "दीवार में आले" की प्रतिनिधि रचना "फटा पैबंद " की समीक्षा l

अभिनेता एवं साहित्यकार श्री अखिलेन्द्र मिश्र के काव्य संग्रह अखिलमृतम् की समीक्षा 

वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार, कवि और लेखक, श्री सुरेश चंद्र शुक्ल "शरद आलोक " जी के कहानी संग्रह "सरहदों के पार "  समीक्षा l

डा. दीपक पाण्डेय  एवं डा. नूतन पाण्डेय  (सहायक निदेशक, केंद्रीय हिंदी निदेशालय, नई दिल्ली )द्वारा संपादित एवं संकलित पुस्तक "रामदेव की रचनाधर्मिता "  की वृहद् समीक्षा l

डा. नूतन पाण्डेय जी ( सहायक निदेशक, केंद्रीय हिंदी निदेशालय )द्वारा सम्पादित पुस्तक  पर मारिशसीय हिंदी नाट्य साहित्य और_सोमदत्त बखोरी  के  के आधार सोमदत बखोरी जी के कृतित्व पर एक आलेख l

वरिष्ठ कथाकार, समीक्षक, एवं सहायक प्रोफेसर श्री प्रकाश मिश्र के कहानी संग्रह कालेमेघा की प्रतिनिधि कहानी  "कोदैली" की समीक्षा l
  
वरिष्ठ साहित्यकार श्री हीरो वाधवानी जी राजस्थान की पुस्तक मनोहर सुक्तियाँ, की समीक्षा l

प्रख्यात कवि, उपन्यासकार एवं अंतराष्ट्रीय शब्द सृजन मंच नई दिल्ली के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. राजीव कुमार पाण्डेय जी के उपन्यास "आखिरी मुस्कान " की भावपूर्ण समीक्षा....

 जयपुर राजस्थान के साहित्यकार श्री विजय मिश्र दानिश का दोहा संग्रह "मैं तो केवल शून्य  हूँ " की समीक्षा l

 श्री नंदकिशोर वर्मा  जलदूत की पुस्तक " जलदूत के दोहे की समीक्षा l

 श्री रमाशंकर सिंह, लखनऊ की पुस्तक शारदे विपंचिका बजाइए की समीक्षा l

  श्री अनूप श्रीवास्तव, लखनऊ की पुस्तक,अंतरात्मा का जंतर मंतर की समीक्षा l

श्री अलंकार रस्तोगी, लखनऊ कृत व्यंग्य संग्रह "डंके की चोट पर" की समीक्षा l

श्री रामदेव धुरंधर (मारीशस ) कृत व्यंग संग्रह 'कपड़ा उतरता है ' की समीक्षा l 

श्री विनय विक्रम सिंह की कहानी बुधनी की चुन्नी ( चुनरी ) की समीक्षा l 

श्री कन्हैया लाल जी, लखनऊ ( काव्य ) महाभारत के विकर्ण महान की समीक्षा l

 डॉ शिवकुमार कौशिकेय कृत पुस्तक बलिया विरासत की समीक्षा l

सम्मान :       
 साहित्य श्री सम्मान ( 2020 )  काव्य रंगोली  हिंदी साहित्य पत्रिका  ,खीरी लखीमपुर, उप्र ।

काव्यकुल सम्मान ( 2020 ) काव्य कुल संस्थान गाजियाबाद l

 काव्य रंगोली राज भाषा सम्मान 2020 , काव्य रंगोली हिंदी साहित्य पत्रिका ,खीरी लखीमपुर उप्र l

 अर्थ डे हीरोएवार्ड, नीलाजहान वाटर फाउंडेशन, लखनऊ, l

   साहित्य शिल्पी सम्मान,( 2020 ) काव्य रंगोली
साहित्यिक पत्रिका, खीरी लखीमपुर उप्र, l

  हिंदी साहित्य रथी सम्मान, युवा उत्कर्ष, साहित्य मंच  नई दिल्ली l

श्रीमती कमलेश प्रशांत पुरस्कार  2020 युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच नई दिल्ली l

परम वीर सृजन सम्मान 2021 काव्य कुल संस्थान गाजियाबाद l

विशिष्ट सम्मान 2021 सृजन फाउंडेशन एवं उप्र महोत्सव, समिति, लखनऊ, उप्र l

काव्य रत्न सम्मान (2022)
अंतराष्ट्रीय शब्द सृजन, नई दिल्ली  l

अनुबंध साहित्य भूषण सम्मान ( 2022)
अखिल भारतीय अनुबंध फाउंडेशन, मुंबई ( भारत )

 ट्रू मिडिया गौरव सम्मान नई दिल्ली 2022

 यूपी महोत्सव काव्य रत्न सम्मान 2023( अमृतायन साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था)  लखनऊ l

 काव्यश्री सम्मान 2023 ( अंतरराष्ट्रीय शब्द सृजन मंच,  नई दिल्ली)

 लाइफ टाइम अचीवमेंट सम्मान 2023 साहित्यिक संस्था माध्यम एवं युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच नई दिल्ली )

साहित्य त्रिवेणी सारस्वत सम्मान 2023, लखनऊ l

 कर्तव्य परायणता सम्मान 2023,  पूज्य माँ तारा स्मृति संस्थान, नीलमथा, लखनऊ,

गोमती रत्न सम्मान 2023, नीला जहान फाउंडेशन, मिशन गोमती, अवध वन प्रभाग एवं जिला गंगा समिति, लखनऊ l

अनागत शब्द साक्षी 2024
अनागत कविता मार्तण्ड सम्मान 2024
अखिल भारतीय अनागत साहित्य संस्थान, लखनऊ l

साहित्य त्रिवेणी सारस्वत सम्मान 2024, लखनऊ l

श्याम सुन्दर दास सम्मान ( 2023-24)-(₹1,00,000/-)
राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान, उप्र, लखनऊ l

 सृजन सम्मान ( 2024), यूपी प्रेस क्लब एवं उ0प्र0 साहित्य सभा l

वाग्धारा सम्मान 2024 नई दिल्ली, माध्यम एवं युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच, नई दिल्ली l

 लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड 2024, नीला जहान  फाउंडेशन एवं मिशन गोमती लखनऊ l 

 मुंशी प्रेमचंद कथा सम्मान 2024, युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच ( पंजीकृत न्यास ) नई दिल्ली l



रविवार, 12 जनवरी 2025

महाकुम्भ- लेखक माधव कृष्ण गाजीपुर

महाकुम्भ

भारतीय मनीषियों ने ज्ञान और प्रकाश को सर्वोच्च स्थान दिया है. लेकिन लगातार बदल रहे समय, परिस्थितियों में ज्ञान प्रासंगिक नहीं रह जाता. उसमें जड़ता आ जाती है. न्यूटन के जड़त्व के नियम के अनुसार, गति की स्थिति में परिवर्तन का विरोध करने की यह प्रवृत्ति जड़ता है. प्रत्येक वस्तु तब तक स्थिर या एक सीधी रेखा में एक समान गति में रहेगी जब तक कि उसे किसी बाहरी बल की कार्रवाई से अपनी स्थिति बदलने के लिए मजबूर नहीं किया जाता है. जड़ता कट्टरता, मतान्धता और अन्धविश्वास को जन्म देती है. ठहरा हुआ पानी भी सड़ने लगता है. जैसे नदी अपने स्रोत से जुड़ी रहकर भी गतिशील रहती है और अपनी गंदगी को दूर करती है, उसी प्रकार हम भी परम्पराओं से जुड़े रहकर आधुनिक दृष्टिबोध के साथ अपना निर्मलीकरण करते हैं.

भारतीय संस्कृति ने ज्ञान की गतिशीलता और प्रासंगिकता के लिए नियमित अर्ध कुम्भ, कुम्भ और महाकुम्भ मेलों की परम्परा रखी. यही उस नियम का ‘बाहरी बल’ है. इन मेलों का ऐतिहासिक मूल महानतम दार्शनिक आदि शंकर द्वारा स्थापित विद्वान संन्यासियों की संस्था में है जो नियमित रूप से विभिन्न सिद्धांतों की विवेचना और वाद-विवाद के लिए गठित की गयी थी. इन पर विमर्श होने के बाद स्वीकृत सिद्धांत सभी सम्प्रदायों द्वारा स्वीकार किये जाते थे. ज्ञान, भक्ति, वैराग्य पर किसी विशेष वर्ग का अधिकार न रहे और यह सबके लिए सुलभ रहे, इसलिए इन मेलों को सार्वजनिक स्थान पर संगम के किनारे आयोजित किया जाता है जहाँ रहकर कोई भी व्यक्ति ज्ञानसभा का लाभ उठा सकता है.

संगम का अर्थ ही है: सम्मिलन. जैसे अपनी विभिन्नताओं के बाद भी गंगा, यमुना और सरस्वती एकरूप होकर नहाने वालों को लाभ पहुंचाती हैं, उसी प्रकार अपनी सांस्कृतिक और वैयक्तिक विभिन्नताओं के बाद भी प्रत्येक मनुष्य आध्यात्मिक रूप से एक है. ऋग्वेद के मन्त्र 10/191/3 के अनुसार, “संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम् | देवा भागं यथा पूर्वे सञ्जानाना उपासते.” हम सब एक साथ चलें, एक साथ बोलें, हमारे मन एक हों, जिस प्रकार पहले के विद्वान/देवता अपने नियत कार्य के लिए एक होते थे, उसी प्रकार हम भी साथ में मिलते रहें. एक होकर रहने में ही सबका हित है। हम जब अपने ज्ञान के साथ अपनी कुटिया में बैठे रहते हैं, तब ज्ञान की व्यावहारिक उपयोगिता सिद्ध नहीं होती है. इसलिए ज्ञान को लेकर जगद्गुरु श्रीकृष्ण की भांति जीवन-युद्ध के कुरुक्षेत्र में उतरना पड़ता है. जिस आध्यात्मिकता से मनुष्य मात्र की प्रत्येक समस्या का समाधान नहीं मिल सकता, वह आध्यात्मिकता व्यर्थ वायवीय चिन्तन से अधिक कुछ नहीं है.

महाकुम्भ में कुम्भ का अर्थ है: कलश या घड़ा. यह कलश हमारे शरीर का प्रतीक है. संत रामानंद के महान शिष्य ने भी शरीर के लिए इस रूपक का प्रयोग किया है: जल में कुंभ कुंभ में जल है, बाहर भीतर पानी। फूटा कुंभ जल जल ही समाया , यह तथ कथ्यो ज्ञानी।। कामना, क्रोध और लोभ के वशीभूत होने के कारण इस कुम्भ में विकार, दुर्गुण जैसे विष भरते जाते हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अमृत की कुछ बूँदें संगम में गिर गयी थीं. महाकुम्भ में स्नान करने से शारीरिक अशुद्धियाँ दूर होती हैं, विभिन्न संतों की अमृतमयी वाणी और उनके साहचर्य से मानसिक शुद्धि होती है. और इस प्रकार हमारे कुम्भ या शरीर में पुनः अमृत भर जाता है. ‘जस की तस धर दीन्ही चदरिया’ के लिए आवश्यक है आत्मा पर जमती जा रही धूल को साफ़ करना, और यही महाकुम्भ का उद्देश्य है.

महाकुम्भ के जीवित कैनवास पर पारम्परिक संगीतों, दर्शन, धर्म, उल्लास, अनुष्ठानों, प्रार्थनाओं, दान इत्यादि के मानवीय रंगों से सत्य की शाश्वत खोज के चित्र उकेरे जाते हैं. भौगोलिक, वैयक्तिक, धार्मिक, भाषाई और सांस्कृतिक सीमाएं लांघकर आने वाले करोड़ों लोगों के “मैं कुछ हूँ” का भाव महाकुम्भ में विगलित हो जाता है. मैं कुछ हूँ या फिर देखने वाला किसी दृश्य से एकात्मता स्थापित कर ले, इसे ही महर्षि पतंजलि ने अपने योगदर्शन में ‘अस्मिता’ नामक क्लेश बताया है. इस क्लेश के कारण ही हमने स्वयं को विशुद्ध आत्मा या मनुष्य मानने के स्थान पर, किसी विशेष जाति या धर्म या शरीर या लिंग या भाषा या राष्ट्र या विचारधारा का मान लिया. इस प्रकार हम अपने को विशेष और दूसरों से अलग मानकर उनसे द्वेष या राग करने लगे. ऐसे क्लेश दूर करने का एकमात्र उपाय है: क्रियायोग अर्थात तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान की त्रयी. पवित्र नदियों की त्रयी पर यह क्रियायोग बड़ी सहजता से मिल जाता है. महाकुम्भ में करोड़ों लोगों के बीच अपने कुछ होने का भान ही नहीं रहता.

मनुष्यता जिसे हम सनातन धर्म कहते हैं, की विभिन्न धाराओं की एकसूत्रता का केंद्र महाकुम्भ है. अलग-अलग मतों, इष्टों में विभाजित अखाड़ों में एक अखाड़ा गुरुनानक देव जी के पुत्र चंद्रदेव जी का उदासीन अखाड़ा भी है. यह तथ्य भारतभूमि पर पनपने वाले सभी धर्मों सम्प्रदायों की एकता का शंखनाद करता है. जाति, वर्ण, वर्ग और धार्मिक उपेक्षा संगम की पवित्र जलधारा में बह जाती हैं. तीन नदियों की एक धारा दर्जनों घाटों से बहती है और उसमें सैकड़ों जातियों के करोड़ों मनुष्य अपनी अहमन्यता छोड़कर नहाते हैं. अस्तित्त्व के सनातन प्रवाह में महाकुम्भ का जीवंत महोत्सव हमसे दुराग्रह, जड़ता और संकीर्णता त्यागकर ज्ञान-भक्ति-वैराग्य का अमरत्व लेने के लिए प्रेरित करता है. यह अमृत ही हमें सदा चलने वाले देवासुर संग्राम में आसुरी शक्तियों को परास्त करने के लिए आवश्यक ऊर्जा और शक्ति देता है. महाकुम्भ हमें आत्मावलोकन का अवसर देता है. हम सब एक हैं और महाकुम्भ इसका जीवंत दस्तावेज है.

-माधव कृष्ण, २४ दिसम्बर २०२४, गाजीपुर

In Annual Function of The Presidium International School Ashtabhuji Colony Badi Bagh Lanka Ghazipur


युवा ज्योति के दिव्य रूप स्वामी विवेकानन्द जी लेखक राजेश कुमार सिंह श्रेयस

युवा ज्योति के दिव्य रूप स्वामी विवेकानन्द जी
( स्वामी विवेकानंद जी की जयंती पर विशेष )

विवेकवान व्यक्ति का विवेक ही यह तय करता है, उसके जीवन की गति कैसी होगी l उसकी दिशा क्या होगी, और वह समाज के लिए कौन सी दिशा देने वाला है l उसके विचारों का दयारा कितना व्यापक है l उसके भीतर विचारों के संप्रेषण की क्षमता कितनी है l
इतना तो तय है कि प्रत्येक विवेकी व्यक्ति के अपने कुछ नीति नियम और उसके निर्णय होते हैं l उसके मन में कुछ सात्विक विचार होते हैं l सात्विक विचार का अर्थ ऐसे सकारात्मक विचार से है जो स्वयं के अतिरिक्त आमजन मानस के लिए भी हितकर होते हैं l
विवेक के विषय में बात करें तो मानस में लिखा है कि बिन सत्संग विवेक न होइ l आता ऐसे विवेक की व्यक्तियों को साधु व्यक्तियों का सानिध्य प्राप्त होता है, जो किसी रूप में ईश्वरी प्रेरणा एवं कृपा का प्रतिफल होता है l
ऐसे ऐसे ही विवेक की प्रतिमूर्ति, माँ भारती के आत्मतत्व युवा ज्योति के दिव्य रूप स्वामी विवेकानंद जी के रूप में दिव्य प्रकाशपुंज 12 जनवरी 1862 को भारत की पावन धरा पर उदित होता है जिसकी ज्ञान ज्योति से यह धरती आलोकित हो उठती है l भारतीय सनातन संस्कृति के इस प्रणेता की जीवन की यात्रा न सिर्फ भारतीय संस्कृति का दर्शन करती है, बल्कि भारतीय दर्शन को भी व्याख्यायित करती है l
भारतीय अध्यात्म की शक्ति कितनी प्रबल और सर्वग्राह्य है, इसका वैचारिक स्वरूप कितना व्यापक निर्मल और उज्जवल है , इसको लिखने के लिए इसको समझने के लिए स्वामी विवेकानंद के मुख से निकले एक-एक शब्दों को बड़े ध्यान से श्रवण करना होगा और उसे पर विचार करना होगा l इस युवा आध्यात्मिक संत द्वारा 11 सितंबर 1893 को शिकागो की धर्म सभा मे किया गया उद्घोष, प्रेषित विचार आज भी पूरे विश्व में गूंजते हैं -

इस युवा नायक का प्रथम संबोधन मेरे प्यारे अमेरिका निवासी भगिनी एवं भ्रातृगण इतना प्रभावशाली हुआ कि इस सभा में बैठा जन समुदाय कि उसका प्रभाव आज तक विद्वान है l

अपने संबोधन के अंतिम भाग में स्वामी विवेकानंद जी गीता का उद्धरण देते हुए कहते हैं-

" विश्व का सबसे महान ग्रंथ गीता इस बात का साक्षी है कि संसार में जब तक एकत्व नहीं तब तक संसार में कुछ नहीं l भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हैं - हरि अर्जुन चाहे कोई व्यक्ति किसी प्रकार का भी हो? उसमें चाहे मेरे प्रति श्रद्धा हो अथवा ना हो या वह मेरा विरोध करता हो सादाबरी वह जाने अथवा अनजाने में मेरे पास आए तो मैं उसको अपने में मिला लेता हूँ l गीता का यह उपदेश इस बात को याद दिलाता है-
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाभ्यहम् l
मम वत्मार्नुवर्तन्ते मनुष्या: पार्थ सर्वश: ll
जो मेरी और आगमन करता है चाहे वह किसी प्रकार से हो मैं उसको प्राप्त होता हूं लोग भिन्न-भिन्न मार्ग द्वारा प्रयत्न करने के बाद मुझे ही प्राप्त होते हैं l"

युवा ज्योति के दिव्य रूप स्वामी विवेकानंद के रूप में स्थापित इस इस देव प्रतिभा का एक-एक शब्द भारतीय युवाओं के लिए किसी प्रेरणा से कम नही है l

स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि-
"उत्साह से हृदय भर लो और सब जगह फैल जाओ l काम करो l काम करो l पचास सदियाँ तुम्हारी और ताक रही है l भारत का भविष्य तुम पर निर्भर है l काम करते जाओ l "
यहां स्वामी विवेकानंद ने कर्म की प्रधानता और कर्म करने पर जोर दिया है जो की गीता में भी कहा गया है l
स्वामी जी आगे कहते हैं कि इस संसार में हाथ पैर हाथ भर कर चुपचाप बैठने से काम नहीं चलेगा l उन्नति के लिए निरंतर प्रयत्न करो l एक ने एक दिन अवश्य सफलता प्राप्त करोगे l
मनुष्य को अपने जीवन में किस हद तक जाकर सक्रिय रहना है, इस पर स्वामी जी के विचार कुछ इस प्रकार है -

" उठो जागो जब तक तुम अपने अंतिम देर तक नहीं पहुंच जाते हो तब तक सक्रिय रहो और तब तक निश्चिन्त न हो '
त्याग से ही प्राप्ति संभव है ऐसा कहते हुए स्वामी जी कहते हैं-
"महान कार्य महान त्याग से ही संपन्न होते हैं l "
स्वामी विवेकानंद पूरे संसार के लिए करने की बात करते हैं -
" हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि हम सभी संसार के ऋणी हैं संसार हमारा कुछ नहीं चाहता l हम सबके लिए यह तो एक महान सौभाग्य है कि हमें संसार के लिए कुछ करने का अवसर मिले l संसार की भलाई करने में हम वास्तव में अपनी भलाई करते हैं l" 

  स्वामी विवेकानंद ने भारत के उत्तर से दक्षिण तक भ्रमण किया और उन्होंने हर एक स्थान से पहुंचकर कुछ न कुछ संदेश पूरे भारत को दिया l भारत के युवाओं को दिया l
 स्वामी जी का मानना था कि अगर हम अपनी विद्या और ज्ञान को लेकर अपने घरों में,अपने आश्रम में रहेंगे, तो हम संसार को क्या दे पाएंगे  l 
 इसका एक उदाहरण स्वामी जी की गाजीपुर यात्रा है l जनपद गाजीपुर जिला मुख्यालय से सटे हुए कुर्था नाम का एक गांव है जो की गंगा के किनारे बसा है l इस गांव में एक मंदिर है जो की परम संत पौहारी बाबा ( पवनहारी बाबा ) का समाधि स्थल भी है l इस गांव की एक विशेष विशेषता है कि आज भी यह गांव पूर्ण रूप से शाकाहारी गांव l इस गांव में पैदा होने वाला शिशु से लेकर बुजुर्ग तक मांसाहार का सेवन नहीं करता  l मैंने उसे मंदिर का भ्रमण किया है l वहां जाने के बाद जो अभिलेख मुझे प्राप्त होते हैं उसे ज्ञात होता है कि स्वामी विवेकानंद यहां भी आए थे और पूरे एक महीने यहां रुके l वह एक महीने सिर्फ इसलिए रुके कि उन्हें पोहारी बाबा से कुछ जानना था l 
 पौवारी बाबा उसमें ध्यान में थे, जब वह जगह तो स्वामी जी ने उनसे बस इतना ही कहा कि अगर आप जैसे संत इस तरह से समाधि एवं कंधराओं में रहेंगे तो भारत को क्या दे पाएंगे l आपको अपनी आध्यात्मिक शक्ति और अपना आध्यात्मिक ज्ञान इस देश की युवाओं को देना होगा l भारत आप जैसे संतों से बहुत सारी अपेक्षाएं कर रहा है l 

 विवेकानंद जी के साहित्य में भी पवनहारी बाबा का जिक्र आता है  l 
 स्वामी विवेकानंद  श्री हनुमान जी को  अपना आदर्श मानते हैं-
 स्वामी जी कहते हैं-

" अब तुम्हें महावीर के जीवन को अपना आदर्श बनना होगा l देखो वह कैसे श्री रामचंद्र की आज्ञा मात्र से विशाल सागर को लांघ गए l उन्हें जीवन या मृत्यु से कोई नाता न था l वे संपूर्ण रूप से इन्द्रियजित थे और उनकी प्रतिभा अद्भुत थी l अब तुम्हें अपना जीवन दास्य भक्ति से उसे महान आदर्श पर खड़ा करना होगा l उसके माध्यम से क्रमशः अन्य सारे आदर्श जीवन में प्रकाशित होंगे l गुरु की आज्ञा का सर्वतोभावेन पालन और अटूट ब्रह्मचर्य बस यही सफलता का रहस्य है l हनुमान एक और जिस प्रकार सेवा दश के प्रतीक है उसी प्रकार दूसरी ओर सिंह विक्रम के भी प्रतीक है l सारा संसार उनके सम्मुख श्रद्धा और भय से झुकाता है l

 युवाओं के इस प्रेरणा स्वरूप ने अपने ज्ञान का प्रचार और प्रसार पूरे भारत में या विश्व में किया l यद्यपि अत्यंत ही अल्पायु में 4 जुलाई 1902 इस महाविभूति का अवसान हो गया लेकिन उस दिव्य ज्योति का दिव्य प्रकाश आज भी भारत के कान-कान में समाया हुआ है l उन्नत भारत -  विकास उन्नमुख भारत अपने इस युवा आदर्श को आज याद करते हुए स्वामी विवेकानंद जी की जयंती को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाता है l 

   ©® राजेश कुमार सिंह 'श्रेयस' 
         लखनऊ, उप्र (भारत )