गुरुवार, 30 जून 2016

भारत का लाचार एवं बेबस किसान

नब्ज काटी तो खून लाल ही निकला
सोचा था सबकी तरह ये भी बदल गया होगा

बदलने की सबसे जादा प्रवित्ति राजनैतिक दल के नेताओ की होती है , चाहे वो कोई दल हो, आइये बात करते है #बीजेपी की बदलाव भरी निति का आज कल सुनाने को मिल रहा है #केंद्र_सरकार के #कर्मचारियों के बेतन की बढ़ोतरी , जो 7 वा बेतन आयोग के लगाने केंद्र सर्कार के कर्मचारियों को होड़ लगी है की कब वेतन बड़ कर मिले , वही दूसरी ओर #किसान तेरी कौन सुनेगा, तपती धरती, अनचाहे मौसम के वो #खौफ़नाक मंजर जो महीनो और कड़ी मेहनत पर पानी फेर देते है आज का सरकार की मंसा भी मौसम के खौफ़नाक मंजर जैसी ही हो गयी है ,जहा कर्मचारी की न्यूनतम वेतन 18,000 से 20,000 रूपये है वही प्रति हेक्टेयर खेत की जुताई करने वाले किसान की मासिक 1600 रूपये जो कर्मचारियों से13 गुना कम है,जब कि किसान का पूरा परिवार खेती के कामों में पूर्ण या आंशिक रूप से लिप्त होता है वही और सबसे जादा अनिश्चताओ का खेल भी आप के ही भाग्य में लिखा है, मौसम और फसल ने साथ दिया तो इस बरस $बिटिया का रिश्ता अच्छे घर में  हो जाएगा,

#भारत_सरकार और उनके #वित्त_मंत्री से निवेदन है भारत की 70 से 80 प्रतिशत लोग किसान है , उनके बारे में भी थोडा ध्यान करे, इस मुद्दे पर मीडिया भी शांत है डिजिटल इंडिया मेक इन इंडिया ग्रो अप इंडिया का ये गरीब असहाय और लाचार किसान
#जय_जवान #जय_किसान
प्रस्तुति-  #लव_तिवारी

मंगलवार, 28 जून 2016

भारत और महाभारत

*दुर्योधन और राहुल गांधी* -
                           दोनों ही अयोग्य होने पर भी सिर्फ राजपरिवार में पैदा होने के कारन शासन पर अपना अधिकार समझते हैं।

*भीष्म और आडवाणी* -
                       कभी भी सत्तारूढ़ नही हो सके फिर भी सबसे ज्यादा सम्मान मिला। उसके बाद भी जीवन के अंतिम पड़ाव पे सबसे ज्यादा असहाय दिखते हैं।

*अर्जुन और नरेंद्र मोदी*-
                     दोनों योग्यता से धर्मं के मार्ग पर चलते हुए शीर्ष पर पहुचे जहाँ उनको एहसास हुआ की धर्म का पालन कर पाना कितना कठिन होता है।

*कर्ण और मनमोहन सिंह* -
                      बुद्धिमान और योग्य होते हुए भी अधर्म का पक्ष लेने के कारण जीवन में वांछित सफलता न पा सके।

*जयद्रथ और केजरीवाल*-
                           दोनों अति महत्वाकांक्षी एक ने अर्जुन का विरोध किया दूसरे ने मोदी का। हालांकि इनको राज्य तो प्राप्त हुआ लेकिन घटिया राजनीतिक सोच के कारण बाद में इनकी बुराई ही हुयी।

*शकुनि और दिग्विजय-*
                    दोनों ही अपने स्वार्थ के लिए अयोग्य मालिको की जीवनभर चाटुकारिता करते रहे।

*धृतराष्ट्र और सोनिया* -
                      अपने पुत्र प्रेम में अंधे है।

*श्रीकृष्ण और कलाम-*
                     भारत में दोनों को बहुत सम्मान दिया जाता है परन्तु न उनकी शिक्षाओं को कोई मानता है और न उनके बताये रास्ते का अनुसरण करता है।

--यह है *भारत और महाभारत*

सोमवार, 27 जून 2016

राजनीति की आड़ में पार्टियों के समाज के प्रति ग़लत अभिधारणा

हैरत हुई गा़लिब #मस्जिद मे देखकर
ऐसा भी क्या हुआ कि खुदा याद आ गया

ग़ालिब साहब के शायरी में जो जिक्र है की कभी ख़ुशी में हम भगवान या खुदा को याद नहीं करते,  #दुःख, #विपत्ति ,#निराशा या कोई बड़ी उपलब्धि को पाने की बात में अक्सर ख़ुदा या भगवान का जिक्र किया जाता है , उसी तरह के हालात सभी #राजनैतिक दलो की है, उन्हें भी हम वोट के समय चुनाव के समय किसी #ख़ुदा या भगवान से कम नजर नही आते, और बाद की हाल तो आप सभी मित्रो को पता ही है , वैसे ख़ुदा या भगवन की बात करे तो अगर हम सच्चे दिल से पूजा अर्चना या फिर इबादत करते है तो हमारी मनोकामना और मुराद पूरी होती नजर आती है , लेकिन इसका पूर्ण रूप से विपरीत राजनैतिक दलों के साथ है वो आप की मुराद या मनोकामना की पूर्ति या झांसा वोट देने के कुछ समय तक ही करते है, हा कुछ खास व्यक्ति और सगे सम्बन्धी की मुरादे जरूर पूरी की जाती है,

कुछ वर्ष पहले समाज का कुछ ही वर्ग शिक्षित था और सारे निर्णय समाज के एक विशेष व्यक्ति द्वारा किया जाता था जिसका परिणाम धीरे धीरे दुष्प्रभावी और निर्थक ही निकाला, पिछले कुछ दिनों में मेरा राजनितिक अनुमान है कि भारत देश में 50 % से ऊपर या उससे जादा की राजनीती जातिवाद एवं सम्प्रदायवाद के आधार पर लड़ी जाती है, जिसका दुष्परिणाम हमारे और आप के बिच में ही है, इस तरह के राजनैतिक विचार धरा को बदल के ही एक सही समाज का निर्माण संभव है

जय हिन्द जय भारत
प्रस्तुति लव तिवारी

बुधवार, 22 जून 2016

राजनीति के आधार पर बटता भारत देश

तुझे देखकर बस यही ख़याल करता हु "राहुल"
के मेरे हर दर्द की वजह भी तू है, दवा भी तू।

ऐसे कई अनगिनत राहुल और राजनितिक विशेषज्ञ अपनी अपनी रोटिया सेकने के फ़िराक में है और देश की फ़िक्र वो क्या करेगे जो खुद ही सत्ता के लालच का प्रयोग कर देश की सम्पति को लूटते है ,और बाद में देश को लड़ने झगड़ने पर मजबूर कर रहे है देश की राजनीती की उतनी विशेष जानकारी तो नहीं है लेकिन सोशल मीडिया पर बने कुछ अपने दोस्तों की मानसिकता और आचरण का पता लग गया है हर एक व्यक्ति राजनितिक विशेषज्ञ की भूमिका को एक नए सिरे से अंजाम देने के फ़िराक में है चाहे उसके लेखनी में देश की अखंडता और एकता का नाश हो

ऊपर के लिखे हुए लाइन दर्द की वजह इस लिए है कि तेरे वजह से देश की अखंडता और एकता पर आच आ रही है और मर्ज की दवा इस लिए कि अगर तो सुधर गया तब तो वाकई में तेरे जैसा हकीम भी नहीं है दुनिया में जो मेरा इलाज़ कर सके

धन्यबाद
प्रस्तुति लव तिवारी

तुम्हारी यादों के साथ बारिश का खुशनुमा मौसम

तुम्हारी स्मृति में
बंद किताबो में एक सूखे फूल की वो टूटे पंखुड़ियों का समूह तुम्हारे जीवन में कुछ पल होने का याद दिलाता है, वो पल आज भी उसी तरह महसूस होते है और तुम्हारी नटखट और खूबसूरत अदाओ को याद दिलाते है , उन्ही यादो के खूबसूरत पल में एक पल ये भी था कि जिंदगी भले रूठ जाय, पर प्रियतम तुम न रुठोगी, मगर  आज बारिश की चंद बूदों की खुशनुमा अहसास तुमारी यादो के एक बार फिर से तजा कर दिया, ये बारिश भी क्या अजीब ढंग से जिंदगी के दोनों पहलुओ को बया कराती है हलकी और रिमझिम बारिश जहा तुमारे खूबसूरत और हसींन अदाओ की एक झलक को याद दिलाती है, वही तेज हवाओ और घनघोर बारिश तुमारे रूखेपन की, जिस तरह भारी बारिश घर के साथ फसल और अन्य कई कारको पर बुरा प्रभाव डालता है ,उसी तरह तुमारे रूखेपन और नाराजगी ने मेरे भी कई मसलो को उलझन में डाल रखा है , उजड़े बस्ती और विरानिओ को तो अकसर हमने बस्ते देखा है ,और अकसर पतझड़ के बाद बसंत बहार का मौसम इसी अनोखी आस का सहारा लिए हम भी बेसब्री से तैयार है कब तुम आऊँगी और हमारे जीवन में भी बहार लाओगी
धन्यबाद
प्रस्तुति लव तिवारी

शुक्रवार, 17 जून 2016

समाज के प्रति निःस्वार्थ भाव की सेवा

शारीरिक श्रम एवं मानसिक श्रम से हमने लोगो को अपने व्यक्तिगत विकास की परिभाषा लिखते हुए देखा है , बच्चों का वह बड़ा समूह जो पाठशाला का रुपरेखा को भी नहीं देखा हो और अगर देखा भी होगा तो किताबी ज्ञान के अलावा कुछ भी नहीं, यहाँ बच्चों को ज्ञान के साथ संस्कार एवं समाज में समाज के प्रति निःस्वार्थ भाव की सेवा का जो बीज आज के इस बिगड़ते समाज को प्रवीण तिवारी Praveen Tree ने दिया है उसे देखकर मन प्रफुल्लित हो जाता है, गर्मी के दिनों में राहगीरों को प्याऊ के माध्यम से शीतल जल से प्यास बुझाने के साथ गरीब परिवार के बच्चों को दिन का भोजन की व्यवस्था भी,  राहगीरों और समाज को एक सन्देश की धरती पर आने का मक़सद अपना स्वार्थ ही नहीं बल्कि समाज में निःस्वार्थ सेवा भी है,

इस समाज में एक पक्ष राजनीती भी है चाहे वो किसी देश या राज्य की कोई भी पार्टी हो उसका मुख्य उदेश्य समाज के बिगड़ते रूप समाजिक व्यवस्था को सही एवं सुचारू रूप से करने की है इसका उल्टा असर है , अभी हमने माननीय प्रधानमंत्री के एक भाषण में सुना की अगर हम देश के 125 करोड़ जनता एक साथ मिल कर काम करे तो देश की एक अलग तस्वीर होगी, मैं प्रधानमंत्री जी से पूछना चाहता हु देश की जनता भी एक हो जायेगी और देश का विकास भी होगा , लेकिन क्या सारी राजनैतिक पार्टी एक हो सकती है , नहीं कभी नहीं एक तो छोड़िये भारतीय सविधान ने मुर्ख को भी एक नयी पार्टी बनाने का अधिकार है ,पार्टी बनाकर समाज को बाटने का भी , ऊपर दिए हुये तस्वीर के माध्यम से मैंने यह  कहने का प्रयास किया है कि यहाँ समाजसेवी नेता की जरुरत है न कि समाज विरोधी,
प्रस्तुति- लव तिवारी
ग़ाज़ीपुर

बुधवार, 15 जून 2016

तेज धुप गर्म मौसम और रिक्शा वाला

इस 42 से 48 डिग्री #तापमान में सड़कें जल रहीं..गर्म हवा और लूह से हाल बेहाल है.
वहीं कुछ लोग हैं जो बिना #धूप-छाँव की परवाह किये सड़क पर अपने काम में लगे हैं... धूप में जल रहे हैं...कन्धे पर फटा गमछा..और पैरों में टूटी चप्पल पहने धीरे से पूछ रहे.."कहाँ चलना है भइया.फिल्म सिटी 16 नॉएडा ."?
आइये तीस रुपया ही दिजियेगा।"

इसी बीच कोई आईफोन धारी आता है अपने ब्युटीफुल गरलफ्रेंड के साथ..और अकड़ के कहता है.."अरे..हम जनवरी में आये थे तब बीस रुपया दिए थे बे....कइसे तीस रुपया होगा" चलो पच्चीस लेना"
#गर्लफ्रेंड मुस्कराती है..मानों उनके ब्वायफ़्रेंड जी ने 5 रुपया नहीं 5 करोड़ डूबने से बचा लिया हो..वो हाथ पकड़ के रिक्शे पर बैठतीं हैं..और बहुत ही प्राउड फील करती हैं...
यही ब्वायफ़्रेंड जी जब #KFC,मैकडोनाल्ड और पिज़्ज़ा हट में उसी गर्लफ्रेंड के साथ कोल्ड काफी पीने जाते हैं.तो बैरा को 50 रुपया एक्स्ट्रा देकर चले आते हैं..
वही गर्लफ्रेंड जी अपने बवायफ्रेंड जी की इस उदारता पर मुग्ध हो जातीं हैं...वाह..कितना इंटेलिजेंट हैं न.
आदमी कितनी बारीक चीजें इग्नोर कर देता है..जाहिर सी बात है की जो बैरा को पचास दे सकता है..वो किसी गरीब बुजुर्ग #रिक्शे वाले को दस रुपया अधिक भी तो दे सकता है..
लेकिन सामन्यतया आदमी का स्वभाव इतना लचीला नहीं हो पाता..
क्योंकि अपने आप को दूसरे की जगह रखकर किसी चीज को देखने की कला हमें कभी नहीँ सिखाई गयी।
और आज सलेक्टिव संवेदनशीलता के दौर में ये सब सोचने की फुर्सत किसे है.
कई बातें हैं...बस यही कहूंगा की..इस #प्रचण्ड गर्मी में रिक्शे वालों से ज्यादा मोल भाव मत करिये..
जब बैरा को पचास देने से आप गरीब नहीं होते तो रिक्शे वाले को पांच रुपया अधिक देने से आप गरीब नहीं हो जायेंगे..कोई #गाजीपुर का लल्लन,कोई #बलिया का मुनेसर, कोई #सीवान का खेदन या फिर देश के किसी भी जगह से अपना घर-दुआर छोड़ #बेल का शरबत, दही की #लस्सी,आम का #पन्ना, और #सतुई बेच रहा है..एक सेल्फ़ी उस लस्सी वाले के साथ भी तो लिजिये।
जरा झांकिए इनकी आँखों में एक बार गौर से...
इसके पीछे..इनकी माँ बहन बेटा बेटी की हजारों उम्मीदें आपको उम्मीद से घूरती मिलेंगी..
केएफसी कोक और मैकडोनाल्ड का पैसा पता न कहाँ जाता होगा.. लेकिन आपके इस बीस रुपया के लस्सी से.और दस रुपया के बेल के शरबत से .5 रुपये के नींबू पानी से किसी खेदन का तीन साल का बबलुआ इस साल पहली बार स्कूल जाएगा.
किसी मुनेसर के बहन की अगले लगन में शादी होगी.
किसी खेदन की मेहरारू कई साल बाद अपने लिए नया पायल खरीदेगी..
इतनी गर्मी के इतनी सी संवेदना बची रहे..
हम आदमी बने रहेंगे।

शनिवार, 11 जून 2016

बिकाऊ मीडिया सलीम खान

सलीमखान(सलमान के पिता) द्वारा  पत्रकारोको/मिडियाको करारा थप्पड़..

आज कलम का कागज से ""
मै दंगा करने वाला  हूँ,""
.
मीडिया की सच्चाई को मै ""
नंगा करने वाला हूँ ""
.
मीडिया जिसको लोकतंत्र का ""
चौंथा खंभा होना था,""
खबरों की पावनता में ""
.
जिसको गंगा होना था ""
आज वही दिखता है हमको ""
वैश्या के किरदारों में,""
.
बिकने को तैयार खड़ा है ""
गली चौक बाजारों में""
.
दाल में काला होता है ""
तुम काली दाल दिखाते हो,""
.
सुरा सुंदरी उपहारों की ""
खूब मलाई खाते हो""
.
गले मिले सलमान से आमिर,""
ये खबरों का स्तर है,""
.
और दिखाते इंद्राणी का ""
कितने फिट का बिस्तर है ""
.
म्यॉमार में सेना के ""
साहस का खंडन करते हो,""
.
और हमेशा दाउद का""
तुम महिमा मंडन करते हो""
.
हिन्दू कोई मर जाए तो ""
घर का मसला कहते हो,""
.
मुसलमान की मौत को ""
मानवता पे हमला कहते हो""
.
लोकतंत्र की संप्रभुता पर ""
तुमने कैसा मारा चाटा है,""
.
सबसे ज्यादा तुमने हिन्दू ""
मुसलमान को बाँटा है""
.
साठ साल की लूट पे भारी ""
एक सूट दिखलाते हो,""
.
ओवैसी को भारत का तुम ""
रॉबिनहुड बतलाते हो""
.
दिल्ली में जब पापी वहशी ""
चीरहरण मे लगे रहे,""
.
तुम एश्श्वर्या की बेटी के ""
नामकरण मे लगे रहे""
.
'दिल से' दुनिया समझ रही है "'"
खेल ये बेहद गंदा है,""
.
मीडिया हाउस और नही कुछ""
ब्लैकमेलिंग का धंधा है""
.
गूंगे की आवाज बनो ""
अंधे की लाठी हो जाओ,""x
.
सत्य लिखो निष्पक्ष लिखो ""
और फिर से जिंदा हो जाओ

शुक्रवार, 10 जून 2016

राजनितिक पार्टियो के आधार पर बिखंडित समाज

#राजनीती  एवं राजनीतिक #पार्टियो का जो भी मतलब हो , लेकिन मेरे शब्दों में ये #समाज में #बिखण्डन करने कुछ #असामाजिक लोगों का समूह है , इस बात की पुष्टि जैसे हम और आप सभी #फेसबुक पर अच्छे दोस्तों की तरह व्यवहार करते है एक दूसरे की पोस्ट लाइक करना एवं कमेंट करना, लेकिन राजनितिक मत के आधार पर हर एक व्यक्ति का मत अलग अलग है , #ज्ञान, #नैतिक #तर्क और #सामजिक आधार पर अगर मत होतो स्वाभाविक है उसे स्वीकारा जा सकता है , लेकिन मेरे द्वारा यह देखा गया है  भाई आप यादव है तो आप समाजवादी पार्टी के कट्टर समर्थक है #ब्राम्हण , #छत्रिय है तो बीजेपी , वैश्य शूद्र है तो #बसपा, #आम आदमी पार्टी भी है एक केजरीवाल साहब की वो तो अपने को आम आदमी की सरकार मानती है लेकिन 4 गुने वेतन बृद्धि की बात अपने विधायको के पक्ष में करती है,  सविधान में नयी पार्टी के गठन में किसी व्यक्ति के शैक्षिण योग्यता का भी जिक्र नहीं है और चपरासी की भर्ती के लिए 10 वी पास होना जरुरी है सभी पार्टियो का यह उद्देश्य हर एक वर्ग में पैठ बनाया जाय,  मुझे भी मेरे कई मित्रो ने हमें मोदी भक्त की उपमा दी हुयी है, चलिए हम भी  भक्त शब्द से कोई अप्पति नहीं है , हा कभी कभी इस बात का जरूर डर लगता है की भक्त के जगह कोई और गलत शब्दों का प्रयोग न हो,
धन्यबाद
लव तिवारी

गुरुवार, 9 जून 2016

तुम्हारी स्मृति - लव तिवारी

तुम्हारी स्मृति
जगमगाते शहर में बारिश का अनचाहा मौसम , जब  तुम  भीगते हुए अपने गेसुओं  को लहराते तो खूबसूरती और सादगी की एक अनमोल सी झलक मेरे ह्रदय को स्पर्श कराती हुयी आखो को एक खुशनुमा अहसास दिलाती है
लेकिन दुःख की बात यह है ये बारिश एक तरफ लहलहाते  हुए खेतो की वो मंजर जो कुछ ही दिनों बाद खलिहान का रूप देने को है , इस पर बारिश की बूदों का मतलब साफ है कि ये हमें बेबसी और उजड़े आलम के सिवाय हमारे सपनो की जो हमने पिछले कुछ  दिनों पहले खेतो को देख कर महसूस की थी  उनके न पुरे होने का अहसास दिलाती है ,
प्रस्तुति - लव तिवारी

रविवार, 5 जून 2016

भारत में राजनिति की दुर्गम स्थिति

लम्बा सफर और सफ़र के साथी मोबाइल फ़ोन और कुछ किताबे , किताबो को लेकर एक विशेष रोचक बात जहाँ में है  किताबो में जो बात है वो कही और नहीं, पुरे सफ़र किताबो के सहारे  तो नहीं गुजारी जा सकती , फिर क्या किताब के साथ मोबाइल फ़ोन का जिक्र किया था हमने, अक्सर सफ़र को रोचक और यादगार बनाने जे लिए मोबाइल फ़ोन में पुराने फिल्मो का कुछ बेहतरीन कलेक्शन होते है , आज के सफ़र में एक फ़िल्म सूत्रधार को देखने और भारतीय राजनीती की मिलती जुलती मिशाल को दर्शाती इस फ़िल्म की विशेष कहानी है

भारतीय राजनीती भी इसी तरह के सूत्रधार पर आधारित रह कर सीमट सी गयी है जैसे फ़िल्म में  कुमार जब तक राजनीती में नहीं रहता उसे देश सेवा और अपने गांव क्षेत्र का विकास चाहिए होता है लेकिन राजनीती में जाने के बाद वो भी कई साजिश और संयत्र को अंजाम देता है, वास्तविकता को दर्शाती एक जब तक कोई व्यक्ति नेता नहीं रहता उसमे देश प्रेम और सेवा की भावना होती है जैसे वो नेता बनता है उसे अपने कुर्सी और राजनीति में अपने और ऊँचे और बड़े पदों की पाने की लालसा बढ़ती जाती है, इस काम को अंजाम देने के लिए उसके द्वारा विभिन्न प्रकार के अनैतिक कार्य को अंजाम देना पड़ता है , भारतीय पूर्व प्रधानमंत्रियों में मेरे सबसे योग्य और निष्टावान वक्तित्व के दो प्रधानमंत्री मेरे आदरणीय है एक तो स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री और दूसरे माननीय अटल बिहारी वाजपेयी जी ,  भारतीय सामाजिक व्वस्था को सही ढंग से चलने के लिए संविधान ने मुख्य रूप से  कार्यपालिका , न्यायपालिका और व्वस्थापलिका का गठन किया और जब व्वस्थापलिका का पूरा दायित्व जब भारत के ऐसे राजनीतिज्ञों के हाथ होगी जो फ़िल्म सूत्रधार जैसे कार्यो को अंजाम देगे , मैंने किसी राजनैतिक पार्टी का इस पोस्ट में नाम नहीं लिया है इस पोस्ट को अन्यथा न ले
प्रस्तुति
धन्यबाद - लव तिवारी

शनिवार, 4 जून 2016

आँखे फेर लेता है मुझको अब देख कर वो यूँ

आँखे फेर लेता है मुझको अब देख कर वो यूँ
जैसे सदियों पहले उसने, दोस्ती मुझसे तोड़ी है..

दर्द अपनों ने दिया रोज़ आज किसी गेर ने दी है तो
इतनी ताजुब क्यों हो ? ये बात कोनसी बड़ी है ?..

हज़ार दर्द हों सीने में, जी भर आया हो जीने में
फिर भी हँस देना, सभी के बस का ये कमाल थोड़ी है...

कभी स्याही हुई खत्म कभी हाथ में हुई पीड़न
पर दर्द दिल का रितिका ने, लिखनी कब छोड़ी है..




गुरुवार, 2 जून 2016

सुभाष चंद्र बोस नेताजी और हिटलर

एक बार नेताजी हिटलर को पहली बार मिलने जर्मनी गये, तो हिटलर के आदमियों ने उन्हें बाहर प्रतीक्षा हॉल में बैठा दिया।
नेताजी उसी दौरान बैठे बैठे किताब पढ़ने लगे।
थोड़ी देर बाद एक आदमी आया हिटलर का हम शक्ल बनकर और नेताजी के साथ बात कर के चला गया। नेता जी ने कोई भाव व्यक्त नहीं किया, थोड़ी देर के बाद दूसरा आदमी हिटलर के वेश में आकर नेताजी से हिटलर बन कर बात की।नेता जी ने उसको भी कोई भाव नहीं दिया.... इस तरह एक के बाद एक कई बार हिटलर के वेश धारण कर के उनके हमशक्ल आ के खुद को हिटलर बता कर बात करते रहे लेकिन नेताजी फिर भी बैठे बैठे किताब पढते रहे हिटलर को मिलने के लिए ( जबकि आम तौर पर दूसरे लोग हिटलर के हमशक्ल को मिलते ही, खुद हिटलर को मिलके आये हैं ऐसे भ्रम में वापस लौट आते थे).... आखिर में खुद हिटलर आया और आते ही हिटलर ने नेताजी के कंधे पर हाथ रखा.... नेताजी तुरंत बोल उठे.... हिटलर....!!!! ...
हिटलर भी आश्चर्य में पड़ गया इतने सारे मेरे हमशक्ल आये फिर भी आप मुझे कैसे पहचान गये... जब की हमारी पहले कभी कोई मुलाकात नहीं हुई।।
नेताजी ने तब जवाब दिया कि जिसकी आवाज़ से ग्रेट ब्रिटेन के प्रधानमंत्री भी कांपते हैं वो सुभाष चंद्र बोस के कंधे पर हाथ रख ने कि गुस्ताखी इस दुनिया में सिर्फ हिटलर कर सकता है दुसरा कोई नहीं और ना ही हिटलर का आदमी भी।
गुलाम भारत के आजाद फौजी को हम सब का कोटि कोटि नमन
नमम उस हिन्दुस्तानी शेर को जिसेने हमारे हिंदुस्तान को आजाद कराया
जय हिन्द
वन्दे मातरम्
भारत माता की जय ।

न जी भर के देखा न कुछ बात की बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की- निदा फ़ाज़ली

न जी भर के देखा न कुछ बात की

बड़ी आरज़ू थी मुलाक़ात की

कई साल से कुछ ख़बर ही नहीं
कहाँ दिन गुज़ारा कहाँ रात की

मैं चुप था तो चलती हवा रुक गई
ज़ुबाँ सब समझते हैं जज़्बात की

सितारों को शायद ख़बर ही नहीं
मुसाफ़िर ने जाने कहाँ रात की

@ निदा फ़ाज़ली

बुधवार, 1 जून 2016

बचपन की कुछ यादों के साथ -कोई लौटा दे वो मेरे बीते हुए दिन- लव तिवारी

आज वक्त के इस आइने में हमारे बीते हुए कल 90 दशक की तस्वीर चाहे कितनी ही पुरानी हो गई हो पर जब भी सामने आती है ढेर सारी यादे ताज़ा हो जाती हैं, और यदि यादे अगर बचपन की हो तो अलग ही मज़ा आता है, इन तस्वीरों में बड़े भाइयो के साथ की कुछ तस्वीर है अभी भी मुलाकात होती है हम सब में लेकिन उम्र के साथ मिलने और जीने के लहजे बदल गए फिर जिंदगी की भाग दौर में रोटी दाल की फ़िक्र भी तो है , कुछ बचपन की लाइन जैसे-“अक्कड़-बक्कड़  बम्बे बो अस्सी नब्बे पूरे सौ, सौ में लगा धागा, चोर निकल के भागा” 2 मामा मामी के दुकान मामा ले आये बदाम मामी तोड़ तोड़ के खायी मामा खड़े ललचा , ये तस्वीर  भी ननिहाल की है अक्सर मामा जी को चिड़ाने वाले क्रियाकलाप भी किये जाते थे ,कितनी बार अपने सपनों का घर बनाते तो कभी गुड्डे– गुडियों की शादी कराते, कभी लडकियों की चोटी खीचकर उन्हें परेशान करते, तो उस पर पापा की वो डांटे और वो गलती पर मम्मी को मनाना, कभी बारिश में कागज़ की नाव,तो कभी राह चलते पानी में बेमतलब पैर छप-छपाना, जब याद करते है उन पालो को तो किशोर कुमार का वो गीत याद आता है- “कोई लौटा दे वो मेरे बीते हुए दिन"  सच कहूँ तो मुश्किल ही लगता है उन दिनों का लौट पाना,
प्रस्तुति - लव तिवारी