आँखे फेर लेता है मुझको अब देख कर वो यूँ
जैसे सदियों पहले उसने, दोस्ती मुझसे तोड़ी है..
दर्द अपनों ने दिया रोज़ आज किसी गेर ने दी है तो
इतनी ताजुब क्यों हो ? ये बात कोनसी बड़ी है ?..
हज़ार दर्द हों सीने में, जी भर आया हो जीने में
फिर भी हँस देना, सभी के बस का ये कमाल थोड़ी है...
कभी स्याही हुई खत्म कभी हाथ में हुई पीड़न
पर दर्द दिल का रितिका ने, लिखनी कब छोड़ी है..
जैसे सदियों पहले उसने, दोस्ती मुझसे तोड़ी है..
दर्द अपनों ने दिया रोज़ आज किसी गेर ने दी है तो
इतनी ताजुब क्यों हो ? ये बात कोनसी बड़ी है ?..
हज़ार दर्द हों सीने में, जी भर आया हो जीने में
फिर भी हँस देना, सभी के बस का ये कमाल थोड़ी है...
कभी स्याही हुई खत्म कभी हाथ में हुई पीड़न
पर दर्द दिल का रितिका ने, लिखनी कब छोड़ी है..
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