धरती मइया और गंगा किनारे मोरा गाँव की हिरोइन गौरी खुराना नहीं रहीं। नहीं रहीं अभिनेता कुणाल सिंह के साथ सुपरहिट जोड़ी रही गौरी। वह पिछले कई माह से बीमार चल रही थीं। चार बंगला, अंधेरी (वेस्ट) मुंबई स्थित अपने आवास 'सुमेरु' में उन्होंने अंतिम सांस ली।
भोजपुरी सिनेमा के पहले और दूसरे दौर में असीम कुमार-कुमकुम, सुजीत कुमार-प्रेमानारायन, राकेश पांडेय-पदमा खन्ना या भोजपुरी सिनेमा के नये दौर में निरहुआ-पाखी हेगड़े/ निरहुआ-आम्रपाली, खेसारी-काजल राघवानी की जोड़ी जिस ढंग से लोकप्रिय है और सुपरहिट फिल्में दे रही है, उसी तरह 80 के दशक में कुणाल-गौरी खुराना की जोड़ी थी।
2002 में जब मैं अपनी किताब ' भोजपुरी सिनेमा के संसार' के लिए कुणाल सिंह से बातचीत कर रहा था तो उन्होंने गौरी खुराना के चुलबुलापन और बिंदासपन की अनेक कहानियां सुनाईं थीं।
निर्माता अशोक चंद जैन गौरी को लक्की सिक्का मानते थे। इसलिए उन्होंने धरती मईया और गंगा किनारे मोरा गांव से प्रसिद्धि पाने और धन कमाने के बाद, बहुत दिन बाद ( लगभग 20 साल बाद ) गंगा के पार सइयां हमार में भी गौरी को शामिल किया था, भले वह अतिथि भूमिका थी। शायद यह गौरी की अंतिम फ़िल्म भी है।
वैसे तो दर्जनों भोजपुरी फिल्में हैं गौरी के खाते में मगर मुझे 'दूल्हा गंगा पार के' वाली गौरी सबसे अच्छी लगीं।
अच्छी लगीं यह कहते हुये कि ' काहे जिया जरवलs चल दिहलs हमें बिसार के/ एतना बता द ए दूल्हा गंगा पार के '
गौरी खुराना के भला के बिसार पाई। भोजपुरी सिनेमा के इतिहास में एगो सुपरहिट अभिनेत्री का रूप में उनकर नाव चमकत रही।
श्रद्धांजलि !
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