परेशां चांदनी क्यों हो रही है
उदासी बाल खोले सो रही है
बहा कर अश्के ग़म चश्मे तमन्ना
बड़े अनमोल मोती खो रही है
है मेरी चश्मे गिरियां का यह अहसां
लहू दामन का तेरे धो रही है
महोअंजुम हो या खुर्शीदे ताबाँ
ज़रूरत आपकी सबको रही है
खुले सर बेटियां निकली हैं घर से
हया पर्दे के पीछे रो रही है
चिराग़ ए दिल जलाया है किसी ने
रिदाये शब मुनव्वर हो रही है
मैं शाख़े गुल लगाने में हूं अहकम
मगर दुनिया तो कांटे बो रही है
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