नवगीत - अक्षय पाण्डेय
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सुनो लड़कियो !
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संस्कार की कुत्सित छन्नी से
ना ऐसे छनना,
सुनो लड़कियो!
जो भी बनना
ज्योति मौर्य ना बनना।
लड़की मंगल-घट
पूजा की थाली होती है,
धरती-सी खुद में
मर्यादित नेह सॅंजोती है,
तार-तार ना करना
घर की मर्यादा ना हनना।
आती-जाती हुई हवा के
संग नहीं बहना,
रिश्तों का ईमान बचाना
जीवन का गहना,
अकलुष रहना
कभी न दूषित महापंक में सनना।
गहो न वो ऊॅंचाई जिससे
लोग दिखें छोटे,
अपने ही सिक्के
अपनी नज़रों में हों खोटे,
फली हुई शाख़ों का हमनें
कभी न देखा तनना।
ooo
- अक्षय पाण्डेय
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