कहा चला ए मेरे जोगी, जीवन से तू भाग के
किसी एक दिल के कारण यू सारी दुनिया त्याग के
छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए
ये मुनासिब नही आदमी के लिए
प्यार से भी जरुरी काम है
प्यार सबकुछ नही जिन्दगी के लिए
तन से तन का मिलन हो ना पाया तो क्या
मन से मन का मिलन कोइ कम तो नही
खुशबू आती रहे दूर ही से सही
सामने हो चमन कोइ कम तो नही
चांद मिलता नहीं, सब को संसार मे
है दिया ही बहोत रोशनी के लिए
कितनी हसरत से तकती ये कलिया तुम्हे
क्यो बहारो को फिर से बुलाते नही
एक दुनिया उजाड़ ही गयी है तो क्या
दूसरा तुम जहा क्यो बसाते नही
दिल ना चाहे भी तो साथ संसार के
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