निज भाषा के अभिलाषी हैं
हम सब तो हिन्दी भाषी है
बचपन से हिन्दी बोले हैं
शब्दों से शरबत घोले हैं
बड़ी सरलता से आती है
बोलचाल में मन भाती है
सर्वप्रथम ग्यारह स्वर आते
भाषा का प्रारम्भ बताते
अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ
ओ औ के संग ऋषि को लेले
अयोगवाह अं अः अक्षर हैं
हालांकि ये दोनो स्वर हैं
तत्पश्चात व्यंजन छत्तीस
अन्य तीन अतिरिक्त हैं मिश्रित
कुल उनतालिस व्यंजन सुन्दर
महायोग में बावन अक्षर
क ख ग घ ङ बोलो
कंठ तनिक कंठव्य के खोलो
च छ ज झ ञ लिख ले
ध्वनि यदि तालव्य से निकले
ट ठ ड ढ ण का वर्णन
देख ज़रा मूर्धन्य का दर्पण
त थ द ध न दंतव्य
जीभ का दांतों तक गंतव्य
प फ ब भ म का उदगम
ओष्ठय वर्ण होंठों का संगम
य र ल व अंतः स्थल
कहलाते हैं व्यंजन दुर्बल
श ष स और ह बस निकले
उष्म वर्ण घर्षण से पिघले
क्ष त्र ज्ञ और श्र का दर्शन
ये सब हैं संयुक्त व्यंजन
ड़ और ढ़ यूं तो बाहर हैं
मिश्रित ये अतिरिक्त अक्षर हैं
अक्षर से अक्षर उच्चारित
बावन वर्णों पर आधारित
हिन्दी है पहचान हमारी
हिन्दी हमको जान से प्यारी
देश की मिट्टी पर सो लेंगे
हम तो बस हिन्दी बोलेंगे
यही मातृभाषा हम सबकी
यही क्षेत्रभाषा हम सबकी
यही राजभाषा हम सबकी
यही राष्ट्रभाषा हम सबकी
*इरशाद जनाब खलीली*
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