हया का क़ीमती ज़ेवर उतार लोगे क्या
वफ़ा के जिस्म में नश्तर उतार लोगे क्या
किसी को शौक़ कभी मौत का नहीं होता
तुम अपने सीने में ख़न्जर उतार लोगे क्या
सुना है चांद पे दुनिया बसाने जाते हो
वहां जमीं पे समुंदर उतार लोगे क्या
यही निशाने तक़द्दुस है एक औरत का
हया की आज ये चादर उतार लोगे क्या
किसी की चाहे जनख़दाँ में डूबने के लिए
नज़र में फिर कोई पैकर उतार लोगे क्या
जो रुए हुस्न मिटा दे बस एक ठोकर से
तुम आईने में वह पत्थर उतार लोगे क्या
ख़ला में आज भी करते हो जुस्तजू किसकी
फ़लक से चाँद ज़मीं पर उतार लोगे क्या
जवां लबों के तबस्सुम तो तुमने छीन लिये
बदन का रंग खुरुचकर उतार लोगे क्या
तुम अपनी आंखों से अब देख भी नहीं सकते
फिर अपनी रूह में मंज़र उतार लोगे क्या
अमीरे क़ौम अगर तुम हो रहबर में भी
ज़रा सी बात पे लश्कर उतार लोगे क्या
मैं अपनी जान हथेली पे लेके चलता हूं
तुम अपने जिस्म से ये सर उतार लोगे क्या
बवक़्ते शाम चढ़े हो दरख़्त पर अहकम
किसी परिंदे का तुम घर उतार लोगे क्या
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