नवगीत - अक्षय पाण्डेय
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क्या मिला हमको ?
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हैं यथावत्
अधजले सपने हमारे,
क्या मिला हमको?
जिन खिली रंगीनियों पर
हम फ़िदा हैं,
जो हमारे देवता हैं
जो ख़ुदा हैं,
उन्हीं के कारण
बने हैं हम बिचारे,
क्या मिला हमको?
मंच पर उनकी अदा
कितनी निराली,
हम बजाते रहे
नीचे बैठ ताली,
भीड़ बन कर
हम लगाते रहे नारे,
क्या मिला हमको?
हमीं बनते सीढ़ियाॅं
संसद भवन की,
क्या दशा 'जनतंत्र' में है
आज 'जन' की,
'तंत्र' जीते
यहाॅं 'जन' मन सदा हारे,
क्या मिला हमको?
ooo
- अक्षय पाण्डेय
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