गीतों की गन्ध
अनजाने बादल,
मुँडेरों पर छा गए।
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मर्यादा लक्ष्मण की
हम सबने तोड़ दी,
सोने के हिरनों से
गाँठ नई जोड़ दी,
रावण के मायावी,
दृश्य हमें भा गए।
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स्मृति की गलियों में,
कड़वाहट आयी है,
बर्फ़ीली घाटी की
झील बौखलाई है,
विष के संवादों के
परचम लहरा गए।
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बुलबुल के गाँव, धूप
दबे पाँव आती है,
बरसों से वर्दी में
ठिठुर दुबक जाती है,
अन्तस के पार तक
चिनार डबडबा गए।
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टेसू की छाती पर
संगीनें आवारा,
पर्वत के मस्तक पर
लोहित है फव्वारा,
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