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पाल बाँधना
छोड़ दिया है
मची हुई है
अफरा-तफरी
मछुआरों के गाँव मे ।।
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आवारागर्दी में बादल
मौसम भी
लफ्फाज हुआ ,
सतरंगी खामोशी ओढे
सूरज इश्क-
मिजाज हुआ ,
आग उगलती
नालें ठहरीं
अक्षय वट की छाँव में ।
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लुका -छिपी के
खेल-खेल में
टूटे अपने कई घरौदे ,
औने -पौने
मोल भाव मे
चादर के सौदे पर सौदे ,
लक्ष्य वेध का
बाज़ारू मन
घुटता रहा पड़ाव में ।
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तेज़ाबी संदैशों में
गुम हैं तकदीरें
फूलों की ,
हवा हमारे घर को
तोड़े , साँकल नहीं
उसूलों की ,
शहतूतों पर
पलने वाले
बिगड़े बस अलगाव में !
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मची हुई है
अफरा-तफरी
मछुआरों के गाँव में ।।
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पाल बाँधना छोड़ दिया है
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