क्या ज़मीं ने कहा ख़ुदा जाने
आसमाँ क्यों झुका ख़ुदा जाने
भीगी आंखें हैं दिल धड़कता है
याद क्या आ गया ख़ुदा जाने
उसने देखा था इक नज़र मुझ को
दिल को क्या हो गया ख़ुदा जाने
बस धुआं उठते मैंने देखा था
आशियाँ कब जला ख़ुदा जाने
जी रहा हूं मैं रोज़ मर मर के
ज़िन्दगी है यह क्या ख़ुदा जाने
हौसले भी तो मेरे पस्त न थे
क्यों क़लम रुक गया ख़ुदा जाने
सर झुकाने का हुक्म है मुझको
बन्दगी का सिला ख़ुदा जाने
जिसको चाहा वही हुआ दुश्मन
है यह क्या माजरा ख़ुदा जाने
जाने क्या हो गया है अहकम को
शोर कैसा उठा ख़ुदा जाने
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