तेरी तस्वीर को दिल से लगाकर
रात की तन्हाइयों में तुम्हें अपना बनाकर
कई उलझे किस्सों को भी सुलझाकर
गैरो से छीन कर तुम्हें अपना बनाकर
मैं अक्सर तुम्हें सोचकर खुश हो लेता हूं
आदमी में कैसा जो तुम्हारी याद में रो लेता हूँ।
आदमी मैं कैसा...........
आदत कैसे सुधारू तुम्हारे अपना बनाकर
दिल की तड़प की हर हद में जाकर
इस दौर में कोई अपना दूर रहता है क्या
इस दर्द भरे बात को भी अपना मानकर
मेरी अमानत तू किसी गैर के पास आज भी है।
जहन में रखकर तुम्हारी तस्वीर को चूम लेता हूं।
आदमी में कैसा जो तुम्हारी याद में रो लेता हूँ।
आदमी में कैसा..........
कितने जन्मों से तुम्हे अपना बनाकर
ज़माने के दस्तूर से तुझे न अपनाकर
कई घाव जख्म अपने सीने में दबाकर
इस जमाने की हर बिगड़ी बात भुलाकर।
जिस भी परेशानियों से तुम मुझसे दूर रहते हो।
इस तकलीफ़ भरे घांव को भी संजो लेता हूं।
आदमी में कैसा जो तुम्हारी याद में रो लेता हूँ।
आदमी में कैसा..........
बलिया के प्रसिद्ध लेखक रचनाकार श्री सर्वेश कुमार तिवारी श्रीमुख जी के साथ गोपालगंज भोजपुरी महोत्सव में
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