"ऐ मुसाफिर ! जिंदगी से अपना यही वास्ता रखना,
फलक तक पहुंचेगा तू,बस एक यही रास्ता रखना,
लड़खड़ा न जाए तुम्हारे कदम मंजिल ए सफर में,
साथ चल रहे हमराहियों से थोड़ा फासला रखना,
जीत होती है कछुए की और हार जाता है खरगोश,
इसलिए चलते वक्त रफ्तार थोड़ा आहिस्ता रखना,
शोहरत मिलने के बाद बदल जाते हैं लोग अक्सर,
इन सभी से अलग अपने व्यवहार में साईस्ता रखना,
बहुत ख्वाहिशें हैं तुम्हारे अपनों की तुमसे "नीरज"
चाहे रहना कहीं भी इस जहाँ में, उनसे राब्ता रखना,। "
(साईस्ता - नम्र, शिष्ट।
राब्ता - रिश्ता, सम्बंध।)
नीरज कुमार मिश्र
बलिया
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