अब नादानियां नहीं सहता कोई,
मीठी वाणीयां नहीं बोलता कोई,
बच्चे भी सम्भल कर बोलने लगे हैं,
बातें, बचकानियां नहीं करता कोई,
लोग स्मार्ट फोन, लैपटॉप में लगे हैं,
मौखिक, कहानियां नहीं कहता कोई,
फ्लैट्स में दुबक कर बैठे हैं नौनिहाल,
मुहल्ले में शैतानियां नहीं करता कोई,
लोगों को खुशियां ही सुनना पसंद है,
दुःख दर्द परेशानियां नहीं सुनता कोई,
एहसान करने वालों का दौर बीत गया,
मदद औ मेहरबानियां नहीं करता कोई,
ढ़ाई आखर प्रेम सिर्फ दिखावा हो गया है,
एक दूजे हेतु कुर्बानियां नहीं करता कोई,।"
नीरज कुमार मिश्र
बलिया
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