चेहरा तुमसा जहाँ में कहा है।
मोहब्बत का ही तो रंगीन समा है।
आदते न बिगड़ जाए मेरी तुमसे।
चाह कर भी नही करते जो मोहब्बत जवां है।।
मेरा दिल भी बस आपके एहसासों से धड़कता है
इसमें अब मेरी क्या खता है।।
आदमी मैं भी न था इतना बेचैन कभी
आप के मिलने से जमाना क्यों ख़फ़ा है।
तेरा चेहरा क्यो याद आता है मुझे हरपल।
क्या इसमें भी कोई आप की साजिश बया है।
गज़ल 2
रुख़सत गम की अब तन्हाई क्या करेंगी
आप का साथ है तो रुस्वाई क्या करेंगी
मेरा तो साथ है तुमसे जन्मों जन्मों तक
साथ हो तुम तो मौत की परछाई क्या करेंगी
आदमी किसको भला और बुरा कहु इस वक्त,
दोस्त ही साथ न दे तो दर्द की दवाई क्या करेंगी
तुम रहो मेहरबान मुझपर यही चाहत है मेरी
दुनियां की इस भीड़ रूपी लड़ाई हमपर क्या करेंगी।।
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