छाए बादल
दौड़-धूप कर आए बादल
सूरज को ढक छाए बादल
मोर मुदित हैं दादुर हर्षित
झींगुर हर्ष कर रहे प्रदर्शित
वायु बना रथ दौड़ रहा है
मेघदूत हो रहे आकर्षित
खूब सभी को भाए बादल
सूरज को ढक छाए बादल
ताल तलैया कूप भर रहे
लोग नदी को देख डर रहे
पानी -पानी हुई धरा है
मेघराज हर्षनाद कर रहे
साथ दामिनी लाए बादल
सूरज को ढक छाए बादल
देखो हुई प्रकृति बावली
हरियाली भी है उतावली
बादल सखे को देख काला
लो धरती भी हुई सांवली
सागर के हैं जाए बादल
सूरज को ढक छाए बादल
रचना-डॉ एम डी सिंह
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