प्रेम किया पूर्णिमा से,अमावस वाली रात थी
चाँद मेरे साथ था, घनघोर बरसात थी,
तड़प रहा था आसमां, चाँदनी बदहवास थी
कड़कड़ाती बिजली को भी चूमने की आस थी
बादलों की गड़गड़ाहट में बारिस की अट्टहास थी
प्रेम किया पूर्णिमा से,अमावस वाली रात थी
तन्हाई नग्न थी, ख़ामोशी मग्न थी
यादों का तांडव था, दिल में द्वन्द थी
सन्नाटे का बसेरा था, उम्मीदों का सबेरा था
सपनों के गाँव में, दोनों का डेरा था
साँसों की सरसराहट में संबंधों की सौगात थी
प्रेम किया पूर्णिमा से,अमावस वाली रात थी
जुगनुओं का पहरा था, राज बड़ा गहरा था
झिंगुरों की झनझनाहट थी समय भी ठहरा था
धड़कनो का शोर था, चित्त में चित्तचोर था
प्यार के अफ़साने थे, बहकने के बहाने थे
अंगड़ाई के कारवां में ख़यालों की ज़मात थी
प्रेम किया पूर्णिमा से,अमावस वाली रात थी
रचना- नृपजीत सिंह
युवराजपुर ग़ाज़ीपुर उत्तर प्रदेश
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