पतित पावनी गंगा बहती, सुंदर भेष परिधान यहाँ।
वह है अपनी प्यारी घरती, जिसको कहते गांव जहां।।
शहर के चकाचौंध और जरूरतों के मद्देनजर गांव की जीवन से हम दूर हो गए, लेकिन गांव आज भी हमारी सुंदर यादों को सँजोये जहन में बसता है। काली, दोमट, बलुई दोमट एवं बलुई मिट्टी को सुशोभित करते हुए गंगा मईया के तट पर बसा धरती का एक मात्र ऐसा गांव जहाँ चार तरह उपजाऊ मिट्टी पायी जाती है। कला, संस्कृति, खिलाड़ी और साहसी लोगों से परिपूर्ण अपने गांव की महिमा न्यारी है।
एक प्यारा सा गांव जिसमें पीपल की छांव।
छाव वो आशिया था एक छोटा मकान था।। छोड़कर गांव को उस घनी छांव को।
शहर के हो गए भीड़ में खो गए है।।
जन्मभूमि युवराजपुर ग़ाज़ीपुर उत्तरप्रदेश
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