एक बार किसी गाँव के गरीब बस्ती में आग लग गई। सर ढकने की एक ही जगह थी और उसे भी आग के लपटों में जलता देख बस्ती वालों का कलेजा फटा जा रहा था। केवल झोपड़ी नहीं जली थी, उस झोपड़ी के साथ ही कपड़े, अनाज और वो नकदी भी जल के राख हो चुकी थी जो उन्होंने बेटी की शादी , बेटे की पढाई के लिए जोड़ रखे थे। प्रधान जी आये थे देखने, बोले की दरबार में आना, उचित मुआवजा दे देंगे। पर वहाँ जाने पर उन्हें अंदर ही नहीं जाने दिया गया।
अगले दिन मदद भिजवाई थी प्रधान जी ने पर वो नाकाफी थी।
सबसे ज्यादा दुःख तो इस बात का था कि अनाज का एक दाना नहीं बचा था जिसे पकाकर बच्चों को खिला सके। शुरु के २-४ दिन पड़ोसियों ने खाना भिजवा तो दिया पर धीरे - धीरे वो भी बंद हो गया। गरीब का परिवार अब सुबह खाता तो शाम को भूखा ही सो जाता।
गाँव के पूर्व प्रधान जो कि अब शहर रहते थे उन्हें यह सूचना मिली तो उन्होंने प्रधान जी को चिट्ठी लिखी कि हम आपके पास ₹१० हजार नकदी और कुछ अनाज जिसमें चावल, गेहूं और अरहर की दाल है भिजवा रहे आप उन्हें दिलवा दीजियेगा। प्रधान जी भी कैसे मना करते चिट्ठी तो पोस्टमास्टर जी के सामने पढ़ी गई थी।
पूरे गाँव में ये खबर फैल गई, सब के चेहरे पर मुस्कान थी कि चलो अब सब ठीक हो जायेगा।
उम्मीद की रोशनी में दो दिवस कैसे निकल गए पता ही नहीं चला। शाम को प्रधान जी ने मीटिंग बुलाई और बताया कि पूर्व प्रधान ने ₹10 हजार का बोलकर ₹8500 ही भेजा है और अनाज में चावल और मटर की दाल है जबकि उन्होंने अरहर की दाल देने को बोला था। उन्होंने आप सबकी गरीबी का मज़ाक बनाया है, हम इसे नहीं सहेंगे। इसलिए हमनें उनके पैसे और अनाज वापस भिजवा दिये।
गाँव के कुछ बुद्धिजीवी प्रधान जी को सही साबित करने में जुट गए क्योंकि पूर्व प्रधान से उनकी कुछ ज्यादा बनती नहीं थी। सब एक दूसरे से बात करते हुए अपने - अपने घर गए, खाना खाये और सो गए। पर बस्ती वालों को आज भी भूखा पेट ही सोना पड़ा।
आप सब ही फैसला करिये और बताइये कि इसमें उन बस्ती वालों का क्या दोष ?
👉कहानी लिखने का पहला प्रयास है, आप सबके बहुमुल्य सुझाव आमंत्रित हैं 🙏
#शुभ रात्रि 💐@💐
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