लिखते है मिटाते है फिर पन्ने बिखर जाते है।
इस दुनिया की रीत यही है देखो कैसे सम्भल पाते है।।
मजदूरों से काम था जब मालिक में था अपनापन।
दुःख इस दौर में देखो कैसे सब बदल जाते है।।
गरीबों की आह लेकर धन दौलत किस काम है।
इन लोगो को कौन समझाए सब यही रह जाते है।।
दुनिया से रुखसत के समय कोई तुम्हारा साथ न देगा।
घर वाले भी केवल मरघट तक ही साथ निभाते है।।
रचना- लव तिवारी
दिनांक- 18- मई- 2020
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