श्राद्ध की श्रद्धा
दाढ़ी पर झंखाड़ है झाड़ी,
गाल को घेरे उजले बाल,
सतिल जल स्वधा पितृ गण,
ब्राह्मण का है यही कमाल ,
दाढ़ी पर झंखाड़ है झाड़ी,
गाल को घेरे उजले बाल।।
सुबह है उठना स्नान है करना,
नवीन व्यंजन पड़ा बनाना ,
अक्षत जल से अर्पण तर्पण ,
देव ऋषि को जरूर बुलाना ,
पितृगण से अनुनय विनय ,
सतिल जल स्वधा जंजाल,
दाढ़ी पर झंखाड़ है झाड़ी ,
गाल को घेरे उजले बाल ।।
व्यंजन की अब बात सुनो ,
मंडप में बस लाना है ,
अर्पित आचमन पितृगण को ,
काग को छत पर बुलाना है ,
स्वान गऊ हो तृप्ति व्यंजन से,
पितृ पक्ष करना हर हाल ,
दाढ़ी पर झंखाड़ है झाड़ी ,
गाल को घेरे उजले बाल ।।
अर्पण तर्पण किया समर्पण ,
देख न पाया कौन है पाए ,
कौन-कौन ले लिए हैं हिस्सा,
हम अंधों को ना दिखलाये,
रही तन्यता श्राद्ध मान्यता,
सनातन चलता अपनी चाल ,
तृप्ति आत्मा से कष्ट दूर हो ,
खुश दिल तृप्ति संतृप्ति कमाल ,
दाढ़ी पर झंखाड़ है झाड़ी ,
गाल को घेरे उजले बाल,
सतिल जल स्वधा पितृ गण ,
ब्राह्मण का है यही कमाल ।।
कन्हैयालाल
शिक्षक
जनता उच्चतर माध्यमिक विद्यालय जंगीपुर गाज़ीपुर
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बहुत-बहुत धन्यवाद
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