... .दशहरा
दशवदन को निरंतर जलाते रहे,
मात्र रंजन ही मन का मनाते रहे।
राम बनने की तो मात्र है कल्पना,
रावणी वृत्ति भीतर सजाते रहे।
जानकी का हरण कर लिया था मगर ,
साथ उनके किया न बुरा आचरण।
आज हैं हर घरों में जो रावण छिपे,
तब के रावण से इनमें हुआ है क्षरण।
मन का रावण जले तो बने बात कुछ,
मात्र पुतला जलाने से क्या फायदा।
राम के पदचिन्हों पै चलना नहीं,
तो दशहरा मनाने से क्या फायदा।
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