ॐ या देवी सर्वभुतेषु बुद्धिरुपेण संस्थिता।।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः ।।
भारत त्योहारो का देश है, यंहा पर्त्येक अवसर को त्योहार के रूप में मनाकर अपनी ख़ुशी का इजहार किया जाता हैI हमारे देश के त्योहार केवल धार्मिक अवसरों को ध्यान में ही रखकर नही मनाये जाते बल्कि ऋतु परिवर्तन के मौके का भी पर्व के रूप में ही स्वागत किया जाता हैI
ऋतु परिवर्तन का ऐसा ही एक त्यौहार है बसंत पंचमीI यह ऋतु अपने साथ कई परिवर्तन लेकर आती हैI कभी सुखकर दरकती धरती, तो कभी उसे रिमझिम फुहारों से भिगोकर मनाने कि चेस्टा करते देख, कभी शरद कि कुनकुनी धुप तो घने कोहरे मैं किसी उदास मन सी उलझी उलझी यह धरतीI मानो जैसे जो कुछ भी इंसान के मन में चल रहा है, यही प्रकृति में भी प्रतिबिंबित हो रहा हैI
बसंत पंचमी के अवसर पर चारो ओर पीली सरसों लहलहाने लगती है तथा मानव मन भी ख़ुशी से झूमने लगता हैI बसंत पंचमी के दिन से शरद ऋतु कि विदाई के साथ पेड़-पौधों और प्राणियों में नवजीवन का संचार होता हैI सभी गीतों में मदमस्त होकर झूमने लगते हैंI ये गीत होते है प्रेम के, यौवन के, यौवन कि मस्तियों के खिलने के, बिखरने के, छितरा जाने के भी, ज्यों हरे-भरे खेतों में सरसों के फूल अपनी पीली आभा के साथ मीलों-मील छितरा जाते हैं, क्योंकि यह बसंत के पर्व का अवसर होता हैI इस मौसम में कोयलें कूक-कूककर बावरी होने लगती हैं, भौरें इठला-इठलाकर मधुपान करते हैंI
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