ये हैं मुकेश।
जाति से ब्राह्मण हैं, नाम मुकेश मिश्र है। बनारस में अपनी पढ़ाई-लिखाई पूरी करने के लिए हफ्ते में तीन दिन रिक्शा चलाकर धन अर्जित करते हैं।
इनके पिता जी का देहांत हो चुका है। मुकेश जी बनारस में रहकर अपने एक छोटे भाई को पालिटेक्निक (सिविल) करवा रहे हैं। मुकेश स्वयं Net Exam निकाल चुके हैं और Economics (अर्थशास्त्र) विषय से अभी वर्तमान समय में Phd कर रहे हैं।
जब मैंने मुकेश मिश्र से एक मुलाकात में पूछा कि--- आप की पारिवारिक दुर्दशा पर क्या कभी कोई सरकारी मदद आपको मिला है ?
उन्होंने हँस कर मुझे जवाब दिया--- "क्या सर जी, ब्राह्मण हूं जन्म से। भीख मांग लूंगा, यह करना हमारा स्वभाव है। हमने भीख मांगकर देश का निर्माण किया है। दान ले कर दूसरे को और समाज को दान में सब कुछ दिया है। हम सरकार से अपेक्षा क्यों करें ? हम स्वाभिमान नहीं बेच सकते। हम आरक्षण के लिये गिड़गिड़ा नहीं सकते। हम मेहनत कर सकते हैं। रिक्शा चलाने में अपना स्वाभिमान समझते हैं। किसी का उपकार लेकर जीना पसन्द नहीं है।परशुराम के वंशज हैं। हम पकौड़ा तल कर अपने और अपने भाई की पढ़ाई पूरी कर सकते हैं, करेंगे। आप देखियेगा, कल हम खड़े हो जायेंगे। पीएचडी पूरी कर कहीं लग जायेंगे। रिक्शा भी चलाते हैं । मेहनत से पढ़ाई भी पूरी करते हैं।पीएचडी मेरी तैयार है। टाइप वगैरह के लिये थोड़ा और रिक्शा चलाऊंगा। भाई की पढ़ाई भी पूरी होने वाली है। माता की सेवा भी करता हूं। मां को कुछ करने नहीं देता। वे बस हमें दुलार कर साहस दे देती हैं। आप तो जानते ही हैं कि भारत के अन्दर ब्राह्मण जाति का अर्थ नेताओं की नजर में सिर्फ एक गुलाम होता है। सरकार सिर्फ दलित एवं पिछड़े वर्गों के लिए कार्य करती है। मेरे साथ चलिए, मैं ऐसे हजारों ब्राह्मण नवयुवकों से आप सभी को मिला सकता हूँ जोकि बनारस जैसे धार्मिक शहर में मजदूरी कर रहे हैं और अपनी पढ़ाई कर रहे हैं। सभी स्वाभिमान से अपना काम करते हैं। किसी के आगे गिड़गिड़ाते नहीं। सभी तेज हैं। किसी प्रकार के पाखंड में नहीं जीते। अपने लक्ष्य के लिये मेहनत करते हैं। कोई काम छोटा-बड़ा नहीं होता। आवश्यकता है लक्ष्य भेदने की। हम सब खुश हैं स्वाभिमान से जीने पर।"
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