भारतीय धर्म और संस्कृति में 5 साही स्नान का बहुत महत्व है , मकरसंक्रांति , अमस्वा, शिव रात्रि , और बसन्त पंचमी । मकर संक्रांति को हम खिचड़ी का त्यौहार भी कहते है। पुरानी मान्यताओ के आधार पर एक गरीब ब्रम्हाण जो कई दिन से भूखा था और एक गांव में भिक्षा के दौरान उसे थोड़े थोड़े मात्रा में कई अन्य मिले । सब अन को एक साथ मिलकर उसने खिचड़ी पकाई और बाद में उसको स्प्रेम भाव से खाने बैठ गया। तभी से मकर संक्रांति को खिचड़ी पर्व के रुप मे मनाते है। और जन आदरणीय जन सम्पन्न होते हो वो ब्रम्हाण दान के साथ ब्रम्हाण भोजन भी कराते है।
विज्ञान के आधार पर हिन्दू धर्म का मात्र एक ही त्यौहार है जिसकी दिन और समय निहित है। जब सूर्य की किरणें मकर रेखा पर सीधे पड़ती है तो उस विशेष दिन को हम मकरसंक्रांति पर्व (खिचड़ी) पर्व को मनाते हैं। लड़के इस पर्व का आनंद पतंग उड़ा कर था गांव में लड़कियां खेतो में साग खा कर इस पर्व को हर्षो उल्लास से मानते/मनाती है।इसका एक वैज्ञानिक कारण यह भी है कि जब सूर्य की किरणें मकर रेखा पर पड़ती है तो वो शरीर के लिए बहुत लाभदायक होती है । शरीर पर सूर्य के प्रकाश का पड़ना बहुत उपयोगी एवम स्वस्थ वर्धक है।
बचपन मे मैं जब गांव में रहता था तब तक इस पर्व का आनंद हमने जम कर लिए अब परदेश में इस पर्व की केवल अनौपचारिकता ही रह गयी है। खिचड़ी के दिन का इनंतेजार हम बड़े उत्सुकता से करते थे और करे भी क्यो न सुबह सुबह दादा स्वर्गीय पंडित राम सिंहासन तिवारी जी के साथ गंगा स्नान के लिए निकल जाते थे स्नान के बाद खिचड़ी पर्व की शुरुवात दही चुरा के साथ अपने घर पर होती थी। अगर किसी विशेष व्यक्ति जन के आग्रह पर और बाबा के आदेशानुसार हमे किसी दूसरे के घर भी दही चुरा को खाने के लिए जाना पड़ता था। लोगो के द्वारा अन दान का सिलसिला भी उस दिन होता था। जिससे लोगों के स्प्रेम मुलाकात के जो आनंद मिलते थे वो अब आधुनिक जमाने मे नही के बराबर ही या थोड़े ही रह गए है। सुबह के भोजन के बाद दोपहर में लड़कों के झुंड के साथ हम खेतो में साग खाने निकल जाते थे और दिन भर साग खाने के उपरांत कुछ साग घर के लिए भी लाये जाते थे। रात्रि भोजन में खिचड़ी का सेवन कर के सो जाते थे इस तरह मकरसंक्रांति (खिचड़ी) का त्यौहार का आनन्द हम बचपन मे खूब अच्छे ढंग से करते थे।
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