सिंहासन
जब परिस्थितियां शौर्य शक्ति और पराक्रम दिखाने को वाध्प करें तो सिंहासन को याद करना चाहिए। युद्ध में जाते समय सैनिकों को यह आसन अवश्य करके निकलना चाहिए। जब हमारे भीतर अनचाहे विचारों का जंगल पनपने लगे और हमारी चेतना अनेक दोषपूर्ण वैचारिक चिंताओं रूपी जंंगली जानवरों के हमले से जूझ रही हो तो आप सिंहासन करके गगनवेधी गर्जना कीजिए। सच मानिए किसी भी औषधि से तेज असर इस आसन का आपके मन को शंकाओं से मुक्त कराने में दिखेगा।
सिंह की शक्ति उसके जबड़ों में है, गर्दन में और पंजों में है। उससे भी ज्यादा पूरे जंगल को हिला देने की ताकत उसकी गर्जना में है। मुंह खोल, जीभ निकाल, सर ऊपर कर, गले से निकाली जा रही उसकी गंभीर आवाज दूर तक अपना लोहा मनवाती है।
आवाज की शक्ति से अपने मन- मस्तिष्क को शक्ति देते हमने खिलाड़ियों को खूब देखा है। मां काली और नरसिंह इसी सिंहशक्ति के वाहक हैं।
वज्रासन में बैठकर, घुटनों पर पंजों का दबाव बढ़ाते हुए गर्दन को अकड़ा कर, जीभ पूरी तरह बाहर निकाल, गले से आवाज निकालते हुए इस आसन को संपन्न किया जाता है।
दो-तीन मिनट तक किए जाने वाले इस आसन द्वारा हम अपनी अंतःचेतना को
आंतरिक उपद्रवों से निपटने की अपार शक्ति प्रदान कर सकते हैं।
(अपनी पुस्तक 'समग्र योग सिद्धांत एवं होमियोपैथिक दृष्टिकोण'से।)
डाॅ.एम डी सिंह
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