संतों की है कमी नहीं
जिसका भी जमीर जिंदा हो, भारत का सम्मान करें।
हिन्दू,मुस्लिम,सिक्ख,ईसाई, जय-जय हिंदुस्तान करें।।
सब अपनी पूजा पद्धति को, अंतर्मन से अपनाएं।
कहीं प्रार्थना, गुरुवाणी हो, आरती और अजान करें।।
सबको घर देने वाला वह, उसका तुम मत बनवाओ।
हफ्ते में एकबार सभी के, घर जाकर गुणगान करें।।
इज्जत सबकी अपनी समझें, तभी बचा पाएंगे हम।
पीड़ित जन के काम आ सकें, चाहे रात बिहान करें।।
मजहब देख गरीबी आती, ऐसा देखा नहीं कभी।
जितना भी हो सके किसी से,असहायों को दान करें।।
मेरा तो विश्वास बड़ा है, डिगने वाला नहीं कभी।
'परहित' बड़ा धर्म है भैया, जितना हो अवदान करें।।
हम सब 'दूब' पूजने वाले, 'कुश' पूजा सामाग्री में।
'कौवों' से पूर्वज को पाती, भेज गजब सन्धान करें।।
ऐसा कुछ होने ना पाए कि, मानवता डर जाए।
अद्भुत देश अलग संस्कृति,आ जाओ अभिमान करें।।
हर मजहब में सभी धर्म में, संतों की है कमी नहीं।
उनके संघर्षों से सीखें, मिलकर खूब बखान करें।।…
रचनाकार श्री प्रमोद श्रीवास्तव "अनंग"
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