जी हाँ, हमारे बाप का है हिन्दुस्तान !
शायर राहत इंदौरी ने लिखा था....
"सभी का खून है शामिल यहाँ की मिट्टी में
किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है "~
राहत इंदौरी का यह शेर इन दिनों CAA व NRC के नाम पर जेहादियों द्वारा की जा रही हिंसा के समर्थन में खूब लिखा व बोला जा रहा है।
मैं स्वंय भी यह मानने रहा वाला हूँ कि भले ही कुछ धर्म आक्रमणकारी व आतंकवादी/आतातायी के रूप में यहां आये, बावजूद इसके, हमारी कायरतापूर्ण दरियादिली के कारण खंड खंड होने के बाद बचा भारत अब सभी जाति, धर्म, मत व पंथों का है।
लेकिन यह केवल बोलने मात्र से बात नहीं बनती, अपितु विखंडन के पश्चात बचे राष्ट्र को पुनः विखंडित करने के उद्देश्य से प्रत्यक्ष रूप में आज जो कुछ गलत घट रहा है, आप आँख मूंदकर उससे निरपेक्ष नहीं बने रह सकते।
आज के परिप्रेक्ष्य में राहत इन्दौरी के शेर का यह विस्तार समसामयिक लगता है:
“ख़फ़ा होते हैं हो जाने दो, घर के मेहमान थोड़ी हैं !
जहाँ भर से लताड़े जा चुके हैं , इनका मान थोड़ी है !!
ये कान्हा राम की धरती है, सजदा करना ही होगा !
मेरा वतन ये मेरी माँ है, लूट का सामान थोड़ी है !!
मैं जानता हूँ, घर में बन चुके हैं सैकड़ों भेदी !
जो सिक्कों में बिक जाए वो मेरा ईमान थोड़ी है !!
मेरे पुरखों ने सींचा है लहू के कतरे कतरे से !
बहुत बांटा मगर अब बस, ख़ैरात थोड़ी है !!
जो रहजन थे उन्हें हाकिम बना कर उम्र भर पूजा !
मगर अब हम भी सच्चाई से अनजान थोड़े हैं ? !!
बहुत लूटा फिरंगी ने, कभी बाबर के पूतों ने !
ये मेरा घर है मेरी ज़ान, मुफ्त की सराय थोड़ी है... !!
बिरले मिलते है धर्मनिरपेक्ष मुसलमां दुनिया में !
हर कोई अब्दुल हमीद और कलाम थोड़ी है !!
कुछ तो अपने भी शामिल है वतन तोड़ने में !
अब ये कन्हैया और रविश, मुसलमान थोड़ी है !!
नहीं शामिल है तुम्हारा खून इस मिट्टी में !
ये तुम्हारे बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है !!
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