राजनिति में सक्रिय होना कोई बुरी बात नहीं , लेकिन हार कर निष्क्रिय होना ये गलत बात है, किसी भी गांव का एक ही प्रधान होता है और प्रत्याशी अनेक ,तो क्यों नहीं हारे प्रत्याशी विपक्ष का काम करके, आने वाले नए प्रधान को उसके कार्यो में सहयोग और अगर वो कार्यो के प्रति असंवैधानिक, धोखा धड़ी करता है ,तो इन कार्यो को रोके , यहाँ सब उल्टा होता है प्रत्याशी चुनाव से पहले उत्तेजित होकर गांव के विकास की राजनीती करता है और हार जाने पर द्वेष और बदले की भावना की राजनीति, और हर एक प्रत्याशी को चाहिए की वो सक्रीय होकर राजनिति में सहयोग करके गांव को विकास की एक नयी राह दे , और किसी भी छेत्र के नव निर्मित प्रधान को ये चाहिए को उन प्रत्याशी से मिले जिनकी सामाजिक गरिमा ,कार्य अनुभव, योग्यता हो ,और उनके सहयोग की भी जरुरत गांव के विकास में उपयोगी हो , साथ में ये भी पुराने प्रधानो के द्वारा किये गए अनैतिक कार्य और संसाधनों का दुरपयोग का हिसाब ले, पुरे प्रदेश और देश राजनितिक व्यवस्था चरमरा सी गयी , और नए निर्मित प्रधान केवल अपने कार्यकाल के बारे में सोचते और यह प्रक्रिया निरतंर चलती जाती है, इस प्रकार की राजनिति से केवल गांव के विकास में ही नहीं रुकावट आती है बल्कि आगे आने वाली पढ़ी भी इस प्रकार के राजनितिक दल दल में फसती जाती है, इसका दुस प्रभाव निरतंर देखने को मिलाता है ,इस पोस्ट को किसी राजनितिक पार्टी या किसी प्रत्याशी के गरिमा को आहत करने के लिए नहीं लिखा गया है ,इसका उद्देश्य जागरूकता और सामजिक ब्यवस्था को सही करना है
प्रस्तुति- लव तिवारी
+919458668566
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें