मतलबी जमाना और बेगानों का बसर है।
शहद की मिठास लिए उगलता जो जहर है।।
एक तमन्नाओं की ख्वाईश लिए बेचैन थे बचपन में।
उन विपरीत परिस्थियों को सँजोता यही वो शहर है।
सबकों अपनी चिंता है और अपने है बेगानें यहाँ।
इंसानियत है हैवान यहाँ बस लोगों का कहर है।।
सब गलत कामों से ढक देते है अच्छाइयों को भी।
इस बात से परेशान हम ये कैसा लोगों का ठहर है।।
गांव ही है सबसे न्यारा हो जाती अगर जरूरत पूरी।
शहर में कभी नही जाता जो आधुनिकता का बसर है।।
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