भोलानाथ गहमरी
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जन्मतिथि: 19 दिसंबर ( 1923 )
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लोक धुनों पर आधारित गहमरी जी के गीतों में आंचलिक यानी माटी की आत्मा मुखर होती है । उनके हिंदी गीतों की पहली किताब 'मौलश्री' का प्रकाशन 1959 में हुआ ।1969 में भोजपुरी का उनका पहला गीत-संग्रह 'बयार पुरवइया' प्रकाशित हुआ, जिसकी भूमिका आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखी । उनका दूसरा भोजपुरी गीत-संग्रह 'अंजुरी भर मोती' 1980 में प्रकाशित हुआ । इस किताब की भूमिका अजीमुश्शान शायर रघुपति सहाय 'फिराक' गोरखपुरी ने लिखा था। फिराक साहब गहमरी जी के भोजपुरी गीतों से इतने प्रभावित हुए कि उन्हें कहना पड़ा -- जो मिठास भोजपुरी में है वो दुनिया की किसी भाषा में नहीं।
'सजना के अंगना', 'बबुआ हमार', 'बैरी भइल कंगना हमार', 'बहिना तोहरे खातिर' आदि भोजपुरी फिल्म के अलावे, उत्तर प्रदेश सरकार के चलचित्र विभाग के फिल्म 'विवेक' और 'सबेरा' के गीत और संवाद गहमरी जी ही ने लिखे हैं। इसके लिए उन्हें भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी व उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल बी. सत्यनारायण रेड्डी के हाथों पुरस्कृत किया जा चुका है।
गहमरी जी का अधिकांश गीत-सृजन लोक-धुन पर होता था। भोजपुरी के सुप्रसिद्ध लोक-गायक मुहम्मद खलील ने जिंदगीभर भोलानाथ गहमरी के गीत गाये ।
उत्तरप्रदेश के गाजीपुर जिले ने माटी की कई अनमोल रत्न दिये । डॉ. विवेकी राय, श्रीकृष्ण राय ‘हृदयेश’, भोलानाथ गहमरी, गिरिजाशंकर राय ‘गिरिजेश’, सरोजेश गाजीपुरी, प्राध्यापक अचल, गजाधर शर्मा ‘गंगेश’, रामवचन शास्त्री ‘अँजोर’, आनन्द सन्धिदूत, हरिवंश पाठक ‘गुमनाम’, वंशनारायण सिंह ‘मनज’, विनय राय आदि ने भोजपुरी के रचनात्मक आंदोलन को उल्लेखनीय ऊंचाई दी ।
गहमरी की कलम ने भोजपुरी के अमर और अदभुत गीत लिखे । ‘भीजे जो अँचरा त भीजे हो, कहीं भींजे ना कजरा’, ‘गोरिया कवना घाटे दुइ-दुइ भरेलू गगरी’, ‘एक साँस झाँके खिड़की खोलि हबेली, गंध छितिरावे जइसे चम्पा-चमेली’ आदि अविस्मरणीय हैं । वह रूप-रस-गंध के सप्राण, हमारी युगीन चेतना और भाव-बोध के कवि थे ।
वरिष्ठ लोकधर्मी पत्रकार रविशंकर तिवारी जो राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भोजपुरिया मानस के प्रतिनिधि हैं, ख्यात टाइम एनेलाइजर देवेश दुबे के साथ लोक वीथिका की तैयारी कर रहे हैं । अपनी जातीय स्मृतियों को जगाना अपने अस्तित्वबोध और खुद की डिस्कवरी भी है । उन्होंने कहा - नये साल 2021 में फगुआ के आस - पास ही हम सब दिल्ली में जुटेंगे, कार्यक्रम स्थल का नाम होगा - महेंदर मिसिर नगर ।
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कवने खोंतवा में लुकइलू, आहि रे बालम चिरई
आहि रे बालम चिरई
बन-बन ढुँढ़लीं ढ़ली दर-दर ढुँढ़लीं
ढुँढ़ली नदी के तीरे
साँझ के ढुँढ़लीं, रात के ढुँढ़लीं
ढुँढ़ली होत फजीरे
मन में ढुँढ़लीं, जन में ढुँढ़लीं
ढुँढ़ली बीच बजारे
हिया-हिया में पइठि के ढुँढ़लीं
ढुँढ़लीं बिरह के मारे
कवने अँतरा में समइलू, आहि रे बालम चिरई
आहि रे बालम चिरई
गीत के हम हर कड़ी से पुछलीं
पुछलीं राग मिलन से
छंद-छंद लय-ताल से पुछलीं
पुछलीं सुर के मन से
किरिन-किरिन से जा के पुछलीं
पुछलीं नील गगन से
धरती औ पाताल से पुछलीं
पुछलीं मस्त पवन से
कवने सुगना पर लोभइलू, आहि रे बालम चिरई
आहि रे बालम चिरई
मंदिर से मसजिद तक देखलीं
गिरिजा से गुरुद्वारा
गीता अउर कुरान में देखलीं
देखलीं तीरथ सारा
पंडित से मुल्ला तक देखलीं
देखलीं घरे कसाई
सगरी उमिरिया छछनत जियरा
कब ले तोहके पाईं
कवने बतिया पर कोहँइलू, आहि रे बालम चिरई
आहि रे बालम चिरई
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