मेरा ब्लॉग मेरी रचना- लव तिवारी संपर्क सूत्र- +91-9458668566

गौत्र- गोत्र शब्द का अर्थ होता है वंश । कुल l ~ Lav Tiwari ( लव तिवारी )

Flag Counter

Flag Counter

मंगलवार, 19 सितंबर 2017

गौत्र- गोत्र शब्द का अर्थ होता है वंश । कुल l


गौत्र
यह लेख उन लोगों के लिये है । जो गोत्र प्रणाली को बकवास कहते है । गोत्र शब्द का अर्थ होता है वंश । कुल lineage
गोत्र प्रणाली का मुख्य उद्देश्य किसी व्यक्ति को उसके मूल प्राचीनतम व्यक्ति से जोड़ना है । उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति कहे कि उसका गोत्र भारद्वाज है । तो इसका अभिप्राय यह है कि उसकी पीडी वैदिक ऋषि भारद्वाज से प्रारंभ होती है । या ऐसा समझ लीजिये कि वह व्यक्ति ऋषि भारद्वाज की पीढ़ी में जन्मा है । इस प्रकार गोत्र 1 व्यक्ति के पुरुष वंश में मूल प्राचीनतम व्यक्ति को दर्शाता है ।
ब्राह्मण स्वयं को निम्न
8 ऋषियों ( सप्त ऋषि + अगस्त्य ) का वंशज मानते हैं जमदग्नि । अत्रि । गौतम । कश्यप । वशिष्ठ । विश्वामित्र । भारद्वाज । अगस्त्य ।
उपरोक्त 8 ऋषि मुख्य गोत्रदायक ऋषि कहलाते है । तथा इसके पश्चात जितने भी अन्य गोत्र अस्तित्व में आये हैं
। वो इन्ही 8 में से 1 से फलित हुए हैं । और स्वयं के नाम से गौत्र स्थापित किया । उदाहरण माने कि अंगिरा की 8वीं पीडी में कोई ऋषि क हुए । तो परिस्थितियों के अनुसार उनके नाम से गोत्र चल पड़ा । और इनके वंशज क गौत्र कहलाये । किन्तु क गौत्र स्वयं अंगिरा से उत्पन्न हुआ है ।
इस प्रकार अब तक कई गोत्र अस्तित्व में है । किन्तु सभी का मुख्य गोत्र 8 मुख्य गोत्रदायक ऋषियों में से ही है ।
गोत्र प्रणाली में पुत्र का महत्व जैसा कि हम देख चुके हैं । गोत्र द्वारा पुत्र व उस वंश की पहचान होती है । यह गोत्र पिता से स्वतः ही पुत्र को प्राप्त होता है । परन्तु पिता का गोत्र पुत्री को प्राप्त नही होता । उदाहरण माने कि 1 व्यक्ति का गोत्र अंगिरा है । और उसका 1 पुत्र है । और यह पुत्र 1 कन्या से विवाह करता है । जिसका पिता कश्यप गोत्र से है । तब लड़की का गोत्र स्वतः ही गोत्र अंगिरा में परिवर्तित हो जायेगा । जबकि कन्या का पिता कश्यप गोत्र से था ।
इस प्रकार पुरुष का गोत्र अपने पिता का ही रहता है । और स्त्री का पति के अनुसार होता है । न कि पिता के अनुसार । यह हम अपने दैनिक जीवन में देखते ही हैं । कोई नई बात नहीं !
परन्तु ऐसा क्यों ? पुत्र का गोत्र महत्वपूर्ण । और पुत्री का नहीं । क्या ये कोई अन्याय है ? बिलकुल नहीं ।
देखें । कैसे गुण सूत्र और जीन Chromosomes and Genes
गुण सूत्र का अर्थ है वह सूत्र जैसी संरचना । जो सन्तति में माता पिता के गुण पहुँचाने का कार्य करती है ।
हमने 10वीं कक्षा में भी पढ़ा था कि मनुष्य में 2 3 जोड़े गुण सूत्र होते हैं । प्रत्येक जोड़े में 1 गुण सूत्र माता से । तथा 1 गुण सूत्र पिता से आता है । इस प्रकार प्रत्येक कोशिका में कुल 4 6 गुण सूत्र होते हैं । जिसमें 2 3 माता से व 2 3 पिता से आते हैं ।
जैसा कि कुल जोड़े 2 3 हैं । इन 2 3 में से 1 जोड़ा लिंग गुण सूत्र कहलाता है । यह होने वाली संतान का लिंग निर्धारण करता है । अर्थात पुत्र होगा । अथवा पुत्री ?
यदि इस 1 जोड़े में गुण सूत्र xx हो । तो सन्तति पुत्री होगी । और यदि xy हो । तो पुत्र होगा । परन्तु दोनों में x समान है । जो माता द्वारा मिलता है । और शेष रहा । वो पिता से मिलता है । अब यदि पिता से प्राप्त गुणसूत्र x हो । तो xx मिलकर स्त्री लिंग निर्धारित करेंगे । और यदि पिता से प्राप्त y हो । तो पुल्लिंग निर्धारित करेंगे । इस प्रकार x पुत्री के लिए । व y पुत्र के लिए होता है । इस प्रकार पुत्र व पुत्री का उत्पन्न होना पूर्णतया पिता से प्राप्त होने वाले x अथवा y गुण सूत्र पर निर्भर होता है । माता पर नहीं ।
अब यहाँ में मुद्दे से हटकर 1 बात और बता दूँ कि जैसा कि हम जानते हैं कि पुत्र की चाह रखने वाले परिवार पुत्री उत्पन्न हो जाये । तो दोष बेचारी स्त्री को देते हैं । जबकि अनुवांशिक विज्ञान के अनुसार पुत्र व पुत्री का उत्पन्न होना पूर्णतया पिता से प्राप्त होने वाले x अथवा y गुण सूत्र पर निर्भर होता है । न कि माता पर । फिर भी दोष का ठीकरा स्त्री के माथे मढ दिया जाता है । ये है मूर्खता ।
अब 1 बात ध्यान दें कि स्त्री में गुण सूत्र xx होते हैं । और पुरुष में xy होते हैं । इनकी सन्तति में माना कि पुत्र हुआ ( xy गुण सूत्र ) इस पुत्र में y गुण सूत्र पिता से ही आया । यह तो निश्चित ही है । क्योंकि माता में तो y गुण सूत्र होता ही नहीं । और यदि पुत्री हुई । तो ( xx गुण सूत्र ) यह गुण सूत्र पुत्री में माता व पिता दोनों से आते हैं ।
1. xx गुण सूत्र xx गुण सूत्र अर्थात पुत्री । xx गुण सूत्र के जोड़े में 1 x गुण सूत्र पिता से । तथा दूसरा x गुण सूत्रमाता से आता है । तथा इन दोनों गुण सूत्रों का संयोग 1 गांठ सी रचना बना लेता है । जिसे Cross over कहा जाता है ।
2 .xy गुण सूत्र xy गुण सूत्र अर्थात पुत्र । पुत्र में y गुण सूत्र केवल पिता से ही आना संभव है । क्योंकि माता में y गुण सूत्र है ही नहीं । और दोनों गुण सूत्र असमान होने के कारण पूर्ण Crossover नहीं होता । केवल 5% तक ही होता है । और 95% y गुण सूत्र ज्यों का त्यों intact ही रहता है ।
तो महत्त्वपूर्ण y गुण सूत्र हुआ । क्योंकि y गुण सूत्र के विषय में हम निश्चित हैं कि यह पुत्र में केवल पिता से ही आया है ।
बस इसी y गुण सूत्र का पता लगाना ही गोत्र प्रणाली का एकमात्र उदेश्य है । जो हजारों लाखों वर्षों पूर्व हमारे ऋषियों ने जान लिया था ।
अब तक हम यह समझ चुके हैं कि वैदिक गोत्र प्रणाली य गुण सूत्र पर आधारित है । अथवा y गुण सूत्र को ट्रेस करने का 1 माध्यम है ।
उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति का गोत्र कश्यप है । तो उस व्यक्ति में विद्यमान y गुण सूत्र कश्यप ऋषि से आया है । या कश्यप ऋषि उस y गुण सूत्र के मूल हैं ।
चूँकि y गुण सूत्र स्त्रियों में नहीं होता । यही कारण है कि विवाह के पश्चात स्त्रियों को उसके पति के गोत्र से जोड़ दिया जाता है वैदिक हिन्दू संस्कृति में 1 ही गोत्र में विवाह वर्जित होने का मुख्य कारण यह है कि 1 ही गोत्र से होने के कारण वह पुरुष व स्त्री भाई बहिन कहलाये । क्योंकि उनका पूर्वज 1 ही है ।
परन्तु ये थोड़ी अजीब बात नहीं कि जिन स्त्री व पुरुष ने एक दूसरे को कभी देखा तक नहीं । और दोनों अलग अलग देशों में परन्तु 1 ही गोत्र में जन्में । तो वे भाई बहिन हो गये ?
इसका 1 मुख्य कारण 1 ही गोत्र होने के कारण गुण सूत्रों में समानता का भी है । आज की आनुवंशिक विज्ञान के अनुसार यदि समान गुण सूत्रों वाले 2 व्यक्तियों में विवाह हो । तो उनकी सन्तति आनुवंशिक विकारों का साथ उत्पन्न होगी ।
ऐसे दंपत्तियों की संतान में 1 सी विचारधारा, पसंद, व्यवहार आदि में कोई नयापन नहीं होता । ऐसे बच्चों में रचनात्मकता का अभाव होता है । विज्ञान द्वारा भी इस संबंध में यही बात कही गई है कि सगौत्र शादी करने पर अधिकांश ऐसे दंपत्ति की संतानों में अनुवांशिक दोष अर्थात मानसिक विकलांगता, अपंगता, गंभीर रोग आदि जन्मजात ही पाए जाते हैं । शास्त्रों के अनुसार इन्हीं कारणों से सगौत्र विवाह पर प्रतिबंध लगाया था ।अब यदि हम ये जानना चाहें कि यदि चचेरी, ममेरी, मौसेरी, फुफेरी आदि बहनों से विवाह किया जाये । तो क्या क्या नुकसान हो सकता है । इसे जानने के लिए आप उन समुदाय के लोगों के जीवन पर गौर करें । जो अपनी चचेरी, ममेरी, मौसेरी, फुफेरी बहनों से विवाह करने में 1 सेकंड भी नही लगाते । फलस्वरूप उनकी संताने बुद्धिहीन, मूर्ख, प्रत्येक उच्च आदर्श व धर्म ( जो धारण करने योग्य है ) से नफरत, मनुष्य पशु पक्षी आदि से प्रेम भाव का अभाव आदि जैसी मानसिक विकलांगता अपनी चरम सीमा पर होती है ।
या यूँ कहा जाये कि इनकी सोच जीवन के हर पहलू में विनाशकारी destructive व निम्नतम होती है । तथा न ही कोई रचनात्मक constructive सृजनात्मक, कोई वैज्ञानिक गुण, देश समाज के सेवा व निष्ठा आदि के भाव होते है । यही इनके पिछड़ेपन का प्रमुख कारण होता है । उपरोक्त सभी अवगुण गुण सूत्र, जीन व DNA आदि में विकार के फलस्वरूप ही उत्पन्न होते हैं । इन्हें वर्ण संकर genetic mutations भी कह सकते हैं । ऐसे लोग अक्ल के पीछे लठ लेकर दौड़ते हैं । वैदिक ऋषियों के अनुसार कई परिस्थतियाँ ऐसी भी हैं । जिनमें गोत्र भिन्न होने पर भी विवाह नहीं होना चाहिए ।
देखें कैसे - असपिंडा च या मातुरसगोत्रा च या पितु: ।
सा प्रशस्ता द्विजातिनां दारकर्मणि मैथुने । मनु स्मृति 3-5
जो कन्या माता के कुल की 6 पीढ़ियों में न हो । और पिता के गोत्र की न हो । उस कन्या से विवाह करना उचित है ।
उपरोक्त मंत्र भी पूर्णतया वैज्ञानिक तथ्य पर आधारित है । देखें कैसे
वह कन्या पिता के गोत्र की न हो । अर्थात लड़के के पिता के गोत्र की न हो । लड़के का गोत्र = पिता का गोत्र । अर्थात लड़की और लड़के का गोत्र भिन्न हो । माता के कुल की 6 पीढ़ियों में न हो । अर्थात पुत्र का अपनी माता की बहिन के पुत्री की पुत्री की पुत्री 6 पीढ़ियों तक विवाह वर्जित है । हिनक्रियं निष्पुरुषम निश्छन्दों रोम शार्शसम ।
क्षय्यामयाव्यपस्मारिश्वित्रिकुष्ठीकुलानिच । मनु स्मृति 3-7
जो कुल सत क्रिया से हीन । सत पुरुषों से रहित । वेद अध्ययन से विमुख । शरीर पर बड़े बड़े लोम । अथवा बवासीर । क्षयरोग । दमा । खांसी । आमाशय । मिरगी । श्वेत कुष्ठ । और गलित कुष्ठ युक्त कुलों की कन्या या वर के साथ विवाह न होना चाहिए । क्योंकि ये सब दुर्गुण और रोग विवाह करने वाले के कुल में प्रविष्ट हो जाते हैं ।
आधुनिक आनुवंशिक विज्ञान से भी ये बात सिद्ध है कि उपरोक्त बताये गये रोग आदि आनुवंशिक होते हैं । इससे ये भी स्पष्ट है कि हमारे ऋषियों को गुण सूत्र संयोजन आदि के साथ साथ आनुवंशिकता आदि का भी पूर्ण ज्ञान था ।