चेहरे से पर्दा हटा दीजिए चाँद कहने को जी चाहता है
शायर हूँ मैं ग़ज़ल कहने को जी चाहता है
नज़र से नज़र क्या मिली की मदहोश हो गये
आपके आँखो को जाम कहने को जी चाहता है
हथेली पे लगाये है जो मेहदी उसका रंग फिका है
आपके प्यार के रंग मे ही रंग जाने को जी चाहता है
फिजाओ मे लहराये जब आप की रेशमी जुल्फे
बिखरे हुए केसुओ को सवारने को जी चाहता है
कब से सुनी पड़ी है मेरे दिल की ज़मीन
बन के घटा प्यार का बरस दीजिए भीग जाने को जी चाहता है
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें