शाम तो रख लिया अब रात को मैं कैसे रखूं
इतने उदास लम्हों को एक दिल में कैसे रखूं...
हाथ आए थे चंद अश्क, छिटक के भाग गए
अपनी आंखों में उसे बांध कर भला कैसे रखूं...
यादों के बयार संग मेरे दिल तक चले आए हैं
इन गर्द गुबारों को इस जिगर में अब कैसे रखूं...
बूंद बनकर जो मेरी आंखों से दर्द बहा ले गया
ऐसे सावन को तेरे तोहफे के लिए मैं कैसे रखूं...
इतने उदास लम्हों को एक दिल में कैसे रखूं...
हाथ आए थे चंद अश्क, छिटक के भाग गए
अपनी आंखों में उसे बांध कर भला कैसे रखूं...
यादों के बयार संग मेरे दिल तक चले आए हैं
इन गर्द गुबारों को इस जिगर में अब कैसे रखूं...
बूंद बनकर जो मेरी आंखों से दर्द बहा ले गया
ऐसे सावन को तेरे तोहफे के लिए मैं कैसे रखूं...
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