तो अच्छा
पुरुष का पुरुष होना
स्त्री का स्त्री
दिखना भी वैसे ही
जीना भी उसी तरह
स्तृत्व और पौरुष दोनों के लिए
जैव संरचनात्मक परिपूर्णता की
आधारभूत परिकल्पनाएं
निष्क्लेष बनी रहें निरंतर तो अच्छा
स्त्रियां पुरुष सा होना क्यों चाहतीं
पुरुष स्त्री सा दिखने को लालायित क्यों
जननी होना अथवा जनक
जीवन के आधारभूत प्रतिष्ठान
कम ज्यादा किसका सम्मान
प्रकृति प्राकृतिक रहे तो अच्छा
स्वभाव समभाव से उलझ रहा क्यों
स्वभाव सदैव गुरुतर है
समभाव ईर्ष्यापूरित
सम होने की लालसा कैसी
स्व जैसा भी हो
दिग दिगंत में रहे प्रज्वलित
गर्व अपने होने का रहे तो अच्छा
उद्विग्न तुम क्यों सखी
उत्तप्त तुम क्यों सखे
जग तुम, तुम सा
सरल सहज
अनवरत रहे तो अच्छा
डॉ एम डी सिंह
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