कितने कमाल लगते हो
हुस्न में बेमिसाल लगते हो।
आदत किसी और कि न बिगड़े।
रोशन जहाँ के आफताब लगते हो।
अंधरे रात के उजाला बनकर
चाँदनी रात के माहताब लगते हो।
किसको मालूम है कितनो की हसरत हो तुम।
मुझसे दूर रह कर भी मेरे पास लगते हो।
दुनियाभर की हर ख़ुशी तुम्हें ख़ुदा बक्शे।
तूम इस जहाँ में अपने खास लगते हो।
ऐसी खूबसूरती का क़ायल मरते दम तक रहेगा लव।
मेरी दुनिया मेरी चाहत मेरे दिल के पास रहते हो।
आफ़ताब- सूर्य
महताब- चंद्रमा
रचना- लव तिवारी गाज़ीपुर
उत्तर प्रदेश
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