अति बिराट ब्रम्हांड में धरती एक लघु कुंज
इसे प्रकाशित कर रहा दिव्य ज्योति का पुंज
मां भू देवी को मिला अति दुर्लभ सम्मान
नर बन कर आये यहाँ नारायण भगवान।।
ये किसका अभिनन्दन करती झुक झुक कोमल पुष्प लताएँ
कौन हैं वो जिसके स्वागत में सुमन शुलभ के कोश लुटाये।।
किसके दर्शन की तृष्णा में उड़ते पंक्षी रुक रुक जाए
किसके श्री चरणों मे प्राणी में सुध बुध भूले शीश झुकायें।।
जिसके रूप अनेक है अंगित जिसके नाम
शुभ दर्शन कल्याण कर दुःख हारे सुख धाम
यही है वो मोहन जन जन का मन हरने वाला
कि आने जिसके हुआ है अलौकिक उजाला
मुस्कान से सबका मन मोह लेता है
आनंद घन अति सय आनंद देता है
चराचर पे जया दु मोहन की माया निराला
कि आने जिसके हुआ है अलौकिक उजाला
गोकुल की धरती पे त्रिभुवन का वैभव है
इस बाल लीला का वर्णन असंभव है
की श्रष्टि का पालक बना है यशोदा का लाला
कि आने जिसके हुआ है अलौकिक उजाला
रचना- रविंद जैन गायन- सुरेश वाडेकर
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