बर्बाद मंजर में बहार गुलिस्तां ढूढता हैं
ये मेरे दिल तुझमे एक फरिश्ता ढूढ़ता है
ये मेरे दिल तुझमे एक फरिश्ता ढूढ़ता है
कभी तो मेहरबाँ बन कर आओगी मेरे सामने
ये ख़्वाब भी हक़ीक़त का एक असर ढूढता है
ये ख़्वाब भी हक़ीक़त का एक असर ढूढता है
नज़र अभी तलाशती उस हसीन रुख को
जिसे देखने की चाह में हर कोई मरता है
जिसे देखने की चाह में हर कोई मरता है
मैं तुम्हें चाहूँ जमाने की हर रिवाज़ को छोड़कर
इस वाकपन को देख कर आज शहर जलता है
इस वाकपन को देख कर आज शहर जलता है
तकलीफ़ ज़माने को मोहब्बत करने वालो से अक्सर
इन्सान अपने दुःख से परेशां किसी सुख पर रहता है
इन्सान अपने दुःख से परेशां किसी सुख पर रहता है
लव तिवारी
0 comments:
एक टिप्पणी भेजें