एक तरफ धुंध भरे शहर का बाशिन्दा हूँ
तू मिल जाये इस हाल में मैं जिन्दा हूँ
लोग कहते है कि तू पहले कभी ऐसा न था
मैं सोचता हूं क्या हुआ जो शर्मिंदा हूँ
एक बस्ती में रहते थे कुछ अज़नबी
आज उनके दिलों में हरपल जिन्दा हूँ
जिंदगी के वो पल जो गांव में रह कर ज़िया ,
बड़े अफ़सोस है कि शहर का परिंदा हूँ
ग़रीबी भूख दहसत और लाचारी भी
आज के दौर ने इस हाल में मैं जिन्दा हूँ
एक तरफ खौफ़नाक सा मंजर है मेरे सामने
कैसे बताऊ उन्हें किस हाल में मैं जिन्दा हूँ
दर्द देने का रिवाज है इस बेरहम दुनिया में
रचना लव तिवारी
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